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________________ धर्मसूत्र उपस्थित किया जायगा इसके उपरान्त धर्म के संक्षिप्त नीति-संग्रह, यथा हेमाद्रि, टोडरमल. नीलकण्ठ आदि का विवेचन होगा। ___ धर्मशास्त्र के ग्रन्थों का काल-निर्णय बड़ा कठिन कार्य है। मैक्समूलर तथा अन्य विद्वानों के मतानुसार सूत्र-ग्रन्थों के उपरान्त अनुष्टुप् छन्द वाले ग्रन्थ प्रणीत हुए। किन्तु यह मत प्रस्तुत लेखक को मान्य नहीं हो सकता। उन दिनों के ग्रन्थों के विषय में हमारा ज्ञान इतना न्यून है कि इस प्रकार का सामान्योकरण समीचीन नहीं है। श्लोक-छन्द वाला ग्रन्य मनुस्मृति कुछ धर्मसूत्रों से, जैसे विष्णुधर्मसूत्र से प्राचीन और बसिष्ठधर्मसूत्र का समकालीन है। कुछ प्राचीनतम धर्मसूत्रों में, यथा बौधायन धर्मसूत्र में, लम्बे-लम्बे प्रबन्ध श्लोक-छन्द में पाये जाते हैं, और उन में कुछ तो उद्धरण मात्र हैं। यहाँ तक कि आपस्तम्ब में भी बहुत-से श्लोक पाये जाते हैं। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि श्लोक-बद्ध ग्रन्थ धर्मसूत्रों से पूर्व भी विद्यमान थे। इसके अतिरिक्त आपस्तम्ब तथा बौधायन के समय में धर्म-सम्बन्धी एक बृहत् साहित्य था, जो आज उपलब्ध नहीं है। ४. धर्मसूत्र आरम्भ में बहुत-से धर्मसूत्र कल्पसूत्र के अंग थे और उनका अध्ययन स्पष्ट रूप से चरणों (शाखाओं) में हुआ करता था। कुछ विद्यमान धर्मसूत्रों से पता चलता है कि उनके अपने चरण के गृह्यसूत्र भी रहे होंगे। सभी चरणों के धर्ममूत्र आज उपलब्ध नहीं हैं। आश्वलायन श्रौत एवं गृह्यसूत्रों का कोई धर्ममूत्र नहीं है, यही बात मानव श्रोत एवं गृह्यसूत्रों तथा शांखायन श्रौत एवं गृह्यसूत्रों के साथ पायी जाती है, अर्थात् इनके धर्मसूत्र नहीं हैं, किन्तु आपस्तम्ब, हिरण्यकेशी तथा बौधायन चरणों में कल्प-परम्परा की सम्पूर्णता पायी जाती है, अर्थात् इनके तीनों थोत, गृह्य एवं धर्म-सूत्र हैं। कुमारिल के तन्त्रवार्तिक से एक मनोहर बात का पता चलता है। उसका कहना है कि गौतम (धर्मसूत्र) तथा गोभिल (गृह्यसूत्र) का अध्ययन छन्टोग (सामवेदी लोग) करते थे, वसिष्ठ (धर्मसूत्र) का ऋग्वेदी लोग, शंख:लिखित (धर्मसूत्र) का वाजसनेयी सहिता के अनुयायी-गण तथा आपस्तम्ब एवं बौधायन के सूत्रों का अध्ययन तैत्तिरीय शाखा के अनुयायी-गण करते थे। जैमिनि (१.३.११) की व्याख्या में तन्त्रवार्तिक ने एक सिद्धान्त-सा मान लिया है कि सभी आर्यों के लिए सभी धर्मगुण तथा गृह्यसूत्र प्रमाण हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि आरम्भ में सभी चरणों में धर्मसूत्र नहीं थे, किना मानानर में कुछ चरणों ने कुछ धर्मसूत्रों को अपना लिया। धर्मसूत्रों का सम्बन्ध आर्य जाति के सदस्यों के आनार-नियमों से था, अतः कालान्तर में सभी धर्मसूत्र सभी शाखाओं के लिए प्रमाण-स्वरूप मान्य हो गये। ५३. देखिए, 'सकेड बुक आफ दि ईस्ट', जिल्द २, पृ० ९, किन्तु प्रो० मैक्समूलर एवं प्रो० ० मार० भण्डारकर (कारमाइकेल व्याख्यान, १९१८, पृ० १०५-१०७) के विरोध में देखिए, गोल्डस्टूकर का पाणिनि' (पृ. ५९, ६०, ७८)। ५४. अग्निमिद्ध्वा परिसमूह्य समिध आदध्यात् सायं प्रातयंथोपवेशम् (आपस्तम्बधर्मसूत्र, १.१.४.१६), अग्निमिद्ध्वा प्रागदभरग्नि परिस्तृणाति (आपस्तम्बगृह्यसूत्र, १.१२), एवं, इध्ममादायाघारावाधारयति दर्शपूर्णमासवतूष्णोम् (आपस्तम्बगृह्यसूत्र, २.५) । शेषमुक्तमष्टकाहोमे (बौधायनधर्मसूत्र, २.८.२०); यह बौधायनगृह्यसूत्र२.११.४२ को ओर संकेत करता है; मूर्थललाटनासाग्रप्रमाणा याजिकस्य वृक्षस्य दण्डाः (बौ० ध० सू० १.२.१६) बोधायनगृह्यसूत्र २.५.६६ को ओर संकेत करता है। ५५. तन्त्रवातिक, पृ० १७९ (पूर्वमीमांसासूत्र, १.३.११ को व्याख्या में)। धर्म-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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