SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्मशास्त्र का इतिहास बात नहीं है। कहीं-कहीं अनुष्टुप् छन्द की ध्वनि अवश्य मिल जाती है। बोधायन एवं आपस्तम्ब के धर्मसूत्रों की भाषा की अपेक्षा गौतमधर्मसूत्र की भाषा पाणिनि के नियमों के बहुत समीप आ जाती है। लगता है, कालान्तर में इसके टीकाकारों तथा विद्यार्थियों ने पाणिनि के नियमों के अनुसार इसमे यतस्ततः हेरफेर कर दिया। किन्तु ऐसी ही बात बौधायन एवं आपस्तम्ब के धर्मसूत्रों में क्यों नहीं पायी जाती, यह कहना कठिन है। गौतमधर्मसूत्र आरम्भ में किसी विशिष्ट कल्प से सम्बन्धित नहीं था, अतः इसकी भाषा में परिवर्तन होना सम्भव था। किन्तु यह बात आपस्तम्बधर्मसूत्र के साथ नहीं पायी जाती, क्योंकि वह आपस्तम्ब कल्प का एक भाग था। टीकाकार हरदत्त ने, जिन्होंने गौतम एवं आपस्तम्ब दोनों को टीका की है और जो स्वयं एक बड़े वैयाकरण थे, स्थान-स्थान पर धर्मसूत्र के व्याकरण-सम्बन्धी दोषों की ओर संकेत किया है और पाणिनि के अनुसार चलने पर बल दिया है।" गौतमधर्मसूत्र में एक लम्बे साहित्य की ओर विस्तृत संकेत है। इसने वैदिक संहिताओं एवं ब्राह्मणों के अतिरिक्त निम्न ग्रन्थों की चर्चा की है--उपनिषद् (१९, १३), वेदांग (८.५ तथा ११. १९), इतिहास (८.६), पुराण (८. ६ तथा ११.१९), उपवेद (११.१९), धर्मशास्त्र (११. १९) । इसने सामविधान-ब्राह्मण से उद्धरण लिया है। तैत्तिरीय आरण्यक से भी छ: सूत्र ले लिये हैं। गौतम ने आन्वीक्षिकी (११.३) की ओर भी संकेत किया है। इसने ब्रह्महत्या, मदिरा-पान (सुरा-पान), गुरुशय्या-प्रयोग (गुरु-तल्प-गमन) नामक पापों के विषय में चर्चा करते हुए केवल मनु धर्माचार्य का नाम लिया है। गौतम ने इतस्ततः अन्य आचार्यों के कथनों का भी हवाला दिया है (यथा, ३. ३५, ४. १८)। 'एकेषाम्' (२८.१७ तथा ३८) एवं 'एके' (२.१५, ४० तथा.५६, ३ . १, ४.१७, ७.२३ आदि) कहकर पूर्व आचार्यों की ओर भी संकेत किया गया है। इससे स्पष्ट है कि गौतम के पूर्व धर्मशास्त्र के क्षेत्र में बहुत-से ग्रन्थ थे और उनकी पर्याप्त चर्चा थी। गौतम (११. २८) निरुक्त (११. ३) की स्मृति भी करा देते हैं।६२ गौतम के विषय में सबसे प्राचीन संकेत वौधायनधर्मसूत्र में मिलता है। उत्तर या दक्षिण में किसी नियम की मान्यता के विषय में चर्चा करते हुए बौधायन ने गौतम का हवाला दिया है और कहा है कि नियम सबके लिए, चाहे वह उत्तर का हो या दक्षिण का हो, बराबर है (गौ० घ० सू०११.२०) । एक स्थान पर यह कहते हुए कि 'यदि ब्राह्मण अध्यापन, यजमानी या दान से अपनी जीविका न चला सके तो वह क्षत्रिय की भांति जीविकोपार्जन कर सकता है', बौधायन ने गौतम की विरोधी वात की ओर संकेत किया है। किन्तु आज का विद्यमान गौतमधर्मसूत्र बौधायन वाली ही बात मानता है। "हो सकता है कि आज की प्रति में यह बात क्षेपक रूप में प्रविष्ट हो गयी हो। ६०. आक्रोशानुतहिसासु त्रिरात्रं परमं तपः (२३.२७) । ६१. गौतमधर्मसूत्र में कई एक अपाणिनीय रूप पाये जाते हैं, यथा "द्वाविंशात्" के स्थान पर "हाविशतेः" आया है (१.१४)। ६२. 'दण्डो दमनादित्याहुस्तेनादान्तान् दमयेत्।' निरुक्त में आया है 'दण्डो ददते.....दमनादित्योपमन्यवः।' ६३. अध्यापनयाजनप्रतिग्रहैरशक्तः क्षत्रधर्मेण जीवेत्प्रत्यनन्तरत्वात्। नेति गौतमोऽत्युग्रो हि क्षत्रधर्मो बाह्मणस्य । बौ०१० सू०, २. २. ६९, ७०। ६४. याजनाध्यापनप्रतिग्रहाः सर्वेषाम् । पूर्वः पूर्वो गुरुः। तदलाभे क्षत्रवृत्तिः। तदलाभे वैश्यवृत्तिः। पौ०५० सू०, ७.४-७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy