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अध्याय ११ बहुपत्नीकता, बहुभकता तथा विवाह के अधिकार एवं कर्तव्य
बहुपत्नीकता
यद्यपि वैदिक साहित्य के अवगाहन से पता चलता है कि उन दिनों एक-पत्नीकता का ही नियम एवं आदर्श था, किन्तु बहु-पत्नीकता के कतिपय उदाहरण मिल ही जाते हैं।' ऋग्वेद (१०।१४५) एवं अथर्ववेद (३।१८) में पत्नी द्वारा सौत के प्रति पति-प्रेम घटाने के लिए मन्त्र पढ़ा गया है। यही बात ज्यों-की-त्यों आपस्तम्बमन्त्रपाठ (१११५) एवं आपस्तम्बगृह्यसूत्र (९।६।८) में है, जिसमें पति को अपनी ओर करने तथा सौत से विगाड़ करा देने की चर्चा है । ऋग्वेद (१०।१५९) के अध्ययन से पता चलता है कि इन्द्र की कई रानियाँ थीं, क्योंकि उसकी रानी शची ने अपनी बहुत-सी सौतों को हरा दिया था या मार गला था तथा इन्द्र एवं अन्य पुरुषों पर एकाधिपत्य स्थापित कर लिया था। इस मन्त्र को आपस्तम्बमन्त्रपाठ (१।१६) में तथा आपस्तम्बगृह्यसूत्र (९।९) में उसी कार्य के लिए उद्धृत किया गया है। ऋग्वेद (१३१०५।४) में उल्लेख है कि त्रित कुए में गिर जाने पर कुए की दीवारों को उसी प्रकार कष्टदायक पाता है, जिस प्रकार कई पलियां कष्ट देती हैं (पतियों के लिए या अपने लिए सटकर अतीव उष्णता उत्पन्न करती हैं)। इस विषय में अन्य संकेत है तैत्तिरीय संहिता (६।६।४।३), ऐतरेय ब्राह्मण (१२।११), तैत्तिरीय ब्राह्मण (३।८।४), शतपथ ब्राह्मण (१३।४।१।९), वाजसनेयी संहिता (२३३२४, २६, २८), तैत्तिरीय संहिता (१६८१९), ऐतरेय ब्राह्मण (३३॥१) में। तैत्तिरीय संहिता (६६४३) में एक बहुत मनोरंजक उदाहरण है-"एक यशपूप पर वह दो मेखलाएँ (करषनियाँ) बांधता है, अतः एक पुरुष दो पलियाँ ग्रहण करता है, वह दो यूपों (खूटों या स्तम्भों) पर एक मेखला नहीं बांधता, अतः एक पत्नी को दो पति नहीं प्राप्त होते।" इसी प्रकार ऐतरेय ब्राह्मण (१२।११) में घोषित हुआ है। "अतः एक पुरुष को कई स्त्रियाँ हैं, किन्तु एक पत्नी एक साथ कई पति नहीं प्राप्त कर सकती।" तैत्तिरीय ब्राह्मण (३१८४४) में अश्वमेघ की चर्चा में ऐसा आया है-"पलियां (घोड़े को) उबटन लगाती हैं, पत्नियां सचमुच सम्पत्ति के समान है।" शतपथ ब्राह्मण (१३४२९) में आया है-"चार पत्नियां सेवा में लगी हैं-महिषी (अभिषिक्त रानी). वादाता (चहेती पत्नी), परिवत्ता (त्यागी हुई) एवं पालागली (निम्न जाति की)।" तैसिरीय संहिता ने भी परिवृत्ता एवं महिषी की चर्चा की है (१९८९) । वाजसनेयी संहिता (२३।२४; २६, २८) में कुछ मन्त्र ऐसे हैं
१. देलिए अग्वेद (१०१८५।२६ एवं ४६), यथा-पूषा त्वतो नयतु हस्तगृहाश्विना त्या प्रबहता रखेन। गृहापच्छ गृहपत्नी ययासी त्वं विश्वमा पदासि।...सनामी अषिदेवृष । बम्पती शम्म ग्वेद में कई स्थानों पर माया है और एक-पत्नीकता की बोर संकेत करता है, यथा-वेब ५।३१२, ८।३१।५ एवं १०६०२॥
२. सं मा तपन्त्यभितः सपत्नीरिव पर्शकाग्वेद १३१०५।८; देखिए ऋग्वेद १०।११६॥१० (आदित्पतिमकृत कनीनाम्) जहां लिखा है कि आश्विनी ने व्यवन को कई कुमारियों का पति बना दिया।
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