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________________ २७८ धर्मशास्त्र का इतिहास यदि किसी ब्राह्मण को चारों वर्णों वाली पलियों से पुत्र हों तो ब्राह्मणी-पुत्र को १० में से ४ भाग मिलते हैं, क्षत्राणी-पुत्र को ३ वैश्या-पुत्र को २ तथा शूद्रा-पुत्र को १ मिलता है। याज्ञवल्क्य (११९१-९२) ने भी ब्राह्मण एवं शूद्रा के विवाह को मान्यता दी है और कहा है कि उनकी सन्तान को पारशव कहा जाता है। यही मान्यता मनु (३।४४) ने भी दी है। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि प्राचीन स्मृतिकारों ने ब्राह्मण का क्षत्रिय या वैश्य कन्या से विवाह-सम्बन्ध बिना किसी सन्देह अथवा अनुत्साह के मान लिया है। किन्तु ब्राह्मण एवं शूद्र कन्या के विवाह-सम्बन्ध के विषय में कोई मतैक्य नहीं है। ऐसे विवाह हुआ करते थे, किन्तु उनकी भर्त्सना होती थी। ९वीं एवं १०वी शताब्दी तक अनुलोम विवाह होते रहे, किन्तु कालान्तर में इनका प्रचलन कम होता हुआ सदा के लिए लुप्त हो गया, और आज ऐसे विवाह अवैध माने जाते हैं। अभिलेखों में अन्तर्जातीय विवाहों के उदाहरण मिलते हैं। वाकाटक राजा लोग ब्राह्मण.थे (उनका गोत्र था विष्णुवृद्ध)। प्रभावती गुप्ता के अभिलेख से पता चलता है कि वह गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री थी (पाँचवीं शताब्दी के प्रथम चरण में) और उसका विवाह वाकाटक कुल के राजा रुद्रसेन द्वितीय से सम्पन्न हुआ था। तालगुण्ड स्तम्भ-लेख से पता चलता है कि कदम्ब-कुल का संस्थापक मयूरशर्मा था, जो स्पष्टतया ब्राह्मण था। उसके वंशजों के नाम के अन्त में 'वर्मा' आता है, जो मनु (२।३२) के अनुसार क्षत्रियों की उपाधि है। मयूरशर्मा के उपरान्त चौथी पीढ़ी के ककुत्स्थवर्मा ने अपनी कन्याएँ गुप्तों एवं अन्य राजाओं को दी। यशोधर्मा एवं विष्णुवर्धन के घटोत्कचअभिलेख से पता चलता है कि वाकाटक राजा देवसेन के मन्त्री हस्तिभोज के वंशज सोम नामक ब्राह्मण ने ब्राह्मण एवं क्षत्रिय कुल में उत्पन्न कन्याओं से विवाह किया था। लोकनाथ नामक सरदार के तिप्पेरा ताम्रपत्र से पता चलता है कि उसके पूर्वज भरद्वाज गोत्र के थे, उसके नाना केशव पारशव (ब्राह्मण पुरुष एधं शूद्र नारी से उत्पन्न) थे और केशव के पिता वीर द्विजसत्तम (श्रेष्ठ ब्राह्मण) थे। विजयनगर के राजा वृक्क प्रथम (१२६८-१२९८ ई०) की पुत्री विरूपादेवी का विवाह आरग प्रान्त के प्रान्तपति ब्रह्म या बोमण्ण बोदेय नामक ब्राह्मण से हुआ था। प्रतिहार राजा लोग हरिचन्द्र नामक ब्राह्मण एवं क्षत्रिय नारी से उत्पन्न व्यक्ति के वंशज थे। गुहिल वंश का संस्थापक ब्राह्मण गुहदत्त था, जिसके वंशज भर्तृपट्ट ने राष्ट्रकूट राजकुमारी से विवाह किया। __संस्कृत साहित्य में भी असवर्ण विवाह के उदाहरण मिलते हैं। कालिदास कृत मालविकाग्निमित्र नामक नाटक से पता चलता है कि सेनापति पुष्यमित्र के पुत्र अग्निमित्र ने क्षत्रिय राजकुमारी मालविका से विवाह किया। ब्राह्मणवंश में उत्पन्न पुष्यमित्र ने शुंग वंश के राज्य की स्थापना की थी। हर्षचरित में स्वयं बाण ने लिखा है कि उसकी भ्रमण-यात्रा के मित्रों एवं साथियों में उसके दो पारशव भाई भी थे, जिनके नाम थे चन्द्रसेन एवं मातषेण (ये दोनों बाण के पिता की शूद्र पत्नी से उत्पन्न हुए थे)। कनौज के राजा महेन्द्रपाल के गुरु राजशेखर ने अपनी कर्पूरमंजरी (१।११) में लिखा है कि उसकी गुणशीलसम्पन्न पत्नी अवन्तिसुन्दरी चाहुआण (आधुनिक चौहान या छवन) नामक क्षत्रिय कुल में उत्पन्न हुई थी। स्मृतियों एवं निबन्धकारों ने कब द्विजातियों के बीच भी असवर्ण विवाह बन्द कर दिया, इसके विषय में हमें कोई प्रकाश नही प्राप्त होता। याज्ञवल्क्य के टीकाकार विश्वरूप (९वीं शताब्दी) ने संकेत किया है कि उनके समय में ब्राह्मण क्षत्रिय कन्या से विवाह कर सकता था (याज्ञवल्क्य ३।२८३)। मनु के टीकाकार मेधातिथि ने भी निर्देश किया है कि उनके समय में (लगभग ९०० ई०) ब्राह्मण का विवाह क्षत्रिय तथा वैश्य कन्याओं से कभी कभी हो सकता था, किन्तु शूद्र कन्या से नहीं (मनु ३३१४)। किन्तु मिताक्षरा के काल तक सब कुछ वर्जित हो चुका था। आदित्यपुराण या ब्रह्मपुराण का हवाला देकर बहुत-से मध्यकालिक निबन्ध लेखक, यथा स्मृतिचन्द्रिका, हेमाद्रि आदि, कलियुग की वर्जित बातों में अन्तर्जातीय विवाह भी सम्मिलित करते हैं। आपस्तम्बस्मृति का कहना है कि दूसरी जाति की कन्या से विवाह करने पर महापातक लगता है और २४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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