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________________ २७६ धर्मशास्त्र का इतिहास अति गुणों (पुण्य) का अर्ध भाग दे देगी।" इस विषय में देखिए वैखानसस्मार्तसूत्र (५१९) । " चाहे जो भी कारण हों, कम अवस्था तक ही विवाह कर देने की प्रथा प्रथम ५वीं एवं ६ठी शताब्दियों तक बहुत बढ़ गयी थी । लौगाक्षिगृह्य (१९/२ ) में आया है कि कन्या का ब्रह्मचर्य १० वें या १२वें वर्ष तक रहता है । वैखानस ( ६ । १२) के मत से ब्राह्मण को नग्निका या गौरी से विवाह करना चाहिए। उनके मत से नग्निका ८ वर्ष के ऊपर या १० वर्ष के नीचे होती है और गौरी १० तथा १२ वर्ष के बीच में, जब तक कि वह रजस्वला नहीं होती है । अपरार्क द्वारा उद्धृत ( पृ० ८५ ) भविष्यपुराण से पता चलता है कि नग्निका १० वर्ष की होती है । पराशर, याज्ञवल्क्य एवं संवर्त इसके आगे भी चले जाते हैं । पराशर (७।६-९) के मत से ८ वर्ष की लड़की गौरी, ९ वर्ष की रोहिणी, १० वर्ष की कन्या तथा इसके ऊपर रजस्वला कही जाती है। यदि कोई १२ वर्ष के उपरान्त अपनी कन्या न ब्याहे तो उसके पूर्वज प्रति मास उस कन्या का ऋतु-प्रवाह पीते हैं। माता-पिता तथा ज्येष्ठ भाई रजस्वला कन्या को देखने से नरक के भागी होते हैं । यदि कोई ब्राह्मण उस कन्या से विवाह करे तो उससे सम्भाषण नहीं करना चाहिए, उसके साथ पंक्ति में बैठकर भोजन नहीं करना चाहिए और वह वृषली का पति हो जाता है।" इस विषय में और देखिए वायुपुराण ( ८३।४४), संवर्त (६५-६६ ), बृहत् म ( ३।१९-२२), अंगिरा (१२६ । १२८) आदि। इसी प्रकार कुछ विभेदों के साथ अन्य धर्मशास्त्रकारों के मत हैं। मरीचि के मतानुसार ५ वर्ष की कन्या का विवाह सर्वश्रेष्ठ है। यहाँ तक कि मनु ( ९१८८) ने योग्य वर मिल जाने पर शीघ्र ही विवाह कर देने को कहा है। रामायण ( अरण्यकाण्ड ४७११०-११ ) के अनुसार राम एवं सीता की अवस्थाएँ विवाह के समय क्रम से १३ एवं ६ वर्ष की थीं। किन्तु यह श्लोक स्पष्ट क्षेपक है, क्योंकि बालकाण्ड (७७।१६१७) में ऐसा आया है कि सीता तथा उनकी अन्य बहिनें विवाहोपरान्त ही अपने पतियों के साथ संभोग - कार्य में परिलिप्त हो गयीं। यदि यह ठीक है तो सीता विवाह के समय छः वर्षीय नहीं हो सकतीं। इस विषय में कि ब्राह्मण कन्याओं का विवाह ८ और १० वर्ष के बीच हो जाना चाहिए, जो नियम बने वे छठी एवं सातवीं शताब्दियों से लेकर आधुनिक काल तक विद्यमान रहे हैं । किन्तु आज बहुत-से कारणों से, जिनमें सामाजिक, आर्थिक आदि कारण मुख्य हैं, विवाह योग्य अवस्था बहुत बढ़ गयी है, यहाँ तक कि आजकल दहेज आदि कुप्रथाओं के कारण ब्राह्मणों की कन्याएँ १६ या कभी-कभी २० वर्ष के उपरान्त विवाहित हो पाती हैं । अब कुछ कन्याएँ तो अध्ययनाध्यापन में लीन रहने के कारण देर में विवाह करने लगी हैं। अब तो कानून मी बन गये हैं, जिससे बचपन के विवाह अवैधानिक मान लिये गये हैं । सन् १९३८ के कानून के अनुसार १४ वर्ष के पहले कन्या विवाह अपराध माना जाने लगा है। विवाह अवस्था सम्बन्धी नियम केवल ब्राह्मणों पर ही लागू होते थे । संस्कृत साहित्य के कवि एवं नाटककारों १३. असंस्कृतायाः कन्यायाः कुतो लोकास्तवानघे । शल्यपर्व ५२।१२ । १४. तथैव कन्यां च मृतां प्राप्तयौवनां तुल्येन पुंसा प्राप्तगृहवत्तां दहेत् । वैखान सस्मार्तसूत्र ५। ९ । १५. दशवार्षिकं ब्रह्मचर्यं कुमारीणां द्वादशवार्षिकं वा । लौगाक्षिगृह्य १९१२ । ब्राह्मणो ब्राह्मण नग्निकां गौरीं वा कन्यां वरयेत् । अष्टवर्षादा दशमानग्निका । रजस्यप्राप्ते दशवर्षादा द्वावशाद् गौरीत्यामानन्ति । वखानस ६।१२; संग्रहकारोपि । यावच्चैलं न गृहह्णाति यावत्क्रीडति पांसुभिः । यावद् दोषं न जानाति तावद् भवति नग्निका ।। स्मृतिचन्द्रिका, पृ० ८० 1 माता चैव पिता चैव ज्येष्ठो भ्राता तथैव च । त्रस्यते नरकं यान्ति दृष्ट्वा कन्या रजस्वलाम् ॥ यस्तां समुद्वहेत्कन्यां ब्राह्मणोऽज्ञानमोहितः । असंभाष्यो ह्यपांक्तेयः स विप्रो वृषलीपतिः । पराशर ७१८-९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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