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________________ बर्मशास्त्र का इतिहास के लिए समान है। महाभारत में बराबर धन, बराबर विद्या पर विशेष बल दिया गया है (आदिपर्व १३।१०, उद्योगपर्व ३३।११७)। यद्यपि भनु एवं याज्ञवल्क्य ने नपुंसकों को विवाह के लिए अयोग्य ठहराया है, किन्तु ऐसे लोग कभी-कभी विवाह कर लेते थे। मनु, याज्ञवल्क्य एवं अन्य लोगों ने इनके विवाह को न्यायानुकूल माना है और इनके (नियोग से उत्पन्न) पुत्रों को औरस पत्रों के समान ही धन-सम्पत्ति का अधिकारी माना है। देखिए मनु (९।२०३) एवं याज्ञवल्क्य (२।१४१-१४२)। ___कन्या के चुनाव के विषय में भी बहुत-सी बातें कही गयी हैं, किन्तु उपर्युक्त बातों और इन बातों में बहुत समानता पायी जाती है, यथा कुल, रोग आदि विषयों में (देखिए वसिष्ठ ११३८, विष्णुधर्मसूत्र २४।११, कामसूत्र ३।११)। शतपथब्राह्मण (१।२।५।१६) ने बड़े एवं चौड़े नितम्बों एवं कटियों वाली कन्याओं को आकृष्ट करने वाली कहा है। आश्वलायनगृह्यसूत्र (१९१३) ने ऐसी कन्या के साथ विवाह करने को कहा है जो बुद्धिमती हो, सुन्दर हो, सच्चरित्र हो, शुभ लक्षणों वाली हो और हो स्वस्थ। शांखायनगृह्यसूत्र (११५६६), मनु (३।४) एवं याज्ञवल्क्य (१३५२) ने कहा है कि कन्या को शुभ लक्षणों वाली होना चाहिए और उनके अनुसार शुभ लक्षण दो प्रकार के हैं, यथा बाह्य (शारीरिक लक्षण) एवं आभ्यन्तर। मनु (३१८ एवं १०) एवं विष्णुधर्मसूत्र (२४।१२-१६) के अनुसार पिंगल बालों वाली, अतिरिक्त अंगों वाली (यथा छ: अंगुलियों वाली), टूटे-फूटे अंगों वाली, बातूनी, पीली आंखों वाली कन्याओं से विवाह नहीं करना चाहिए, निर्दोष अंगों वाली, हंस या गज की भांति चलने वाली से, जिसके शरीर के (सिर या अन्य अंगों पर) बाल छोटे हों, जिसके दांत छोटे-छोटे हों, जिसका शरीर कोमल हो, उससे विवाह करना चाहिए। विष्णुपुराण (३।१०।१८-२२) का कहना है कि कन्या के अधर या चिबुक पर बाल नहीं होने चाहिए, उसका स्वर कौए की मांति कर्कश नहीं होना चाहिए, उसके घुटनों एवं पांवों पर बाल नहीं होने चाहिए, हेसने पर उसके गालों में गड्ढे नहीं पड़ने चाहिए, उसका कद न तो बहुत छोटा हो और न बहुत लम्बा होना चाहिए....। मनु (३।९) एवं आपस्तम्ब गृह्यसूत्र (३।१३) का कहना है कि विवाहित होनेवाली कन्या का नाम चान्द्र नक्षत्र वाला, यथा-रेवती, आर्द्रा आदि, वृक्षों या नदियों वाला नहीं होना चाहिए, उसका म्लेच्छ नाम, पर्वत, पक्षी, सर्प, दासी आदि का नाम नहीं होना चाहिए। आपस्तम्बगृह्यसूत्र (३।१४) एवं कामसूत्र (३।१।१३) के मत से उस कन्या से जिसके नाम के अन्त में र या ल हो, यथा-गौरी, कमला आदि, विवाह नहीं करना चाहिए। इस विषय में देखिए नारद (स्त्रीपुंसयोग, ३६), आपस्तम्बगृह्यसूत्र (३।११-१२) एवं मार्कण्डेयपुराण (२४१७६-७७)। भारद्वाजगृह्यसूत्र (११११) के अनुसार कन्या से विवाह करते समय चार बातें देखनी चाहिए, यथा धन, सौन्दर्य, बुद्धि एवं कुल। यदि चारों गुण न मिलें तो घन की चिन्ता नहीं करनी चाहिए, और उसके उपरान्त सौन्दर्य की भी, किन्तु बुद्धि एवं कुल में किसको महत्ता दी जाय, इस विषय में मतभेद है। किसी ने बुद्धि को और किसी ने कुल को महत्तर माना है। मानवगृह्यसूत्र (१।७।६-७) ने पांचवां विवाह-कारण भी माना है, अर्थात् विद्या, और इसे सौन्दर्य के उपरान्त तथा प्रज्ञा के पूर्व स्थान दिया है। कन्या के चुनाव में आश्वलायनगृह्यसूत्र (१।५।३), गोभिलगृह्यसूत्र (२।१।४-९), लौगाक्षिगृह्यसूत्र (१४॥ • तस्मात्कन्यामभिजनोपेतां मातापितृमती त्रिवर्षात्प्रभृति न्यूनवयसं श्लाघ्याचारे धनवति पक्षवति कुले संबन्धिप्रिये संबन्धिभिराकुले प्रसूता प्रभूतमातापितृपक्षां रूपशीललक्षणसपनामन्यूनाधिकाविनष्टबन्तनखकर्णकेशाशिस्तनीमरोगिप्रकृतिशरीरां तथाविष एव श्रुतवान् शीलयेत् । कामसूत्र ३।१२। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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