________________
२६.
धर्मशास्त्र का इतिहास कुछ अनध्याय-कालों को 'आकालिक' कहा जाता है। आकालिक अनध्याय ६० घटिकाओं का अर्थात् पूरे २४ घंटे का होता है (देखिए, आपस्तम्बधर्मसूत्र १२३३११२५-२६, मनु ४।१०३-१०५, गौतम ४१११८ आदि)।
बिजली की चमक, वज्रपात, वर्षा आदि साथ हों तो तीन दिनों तक अनध्याय होता है (आपस्तम्बधर्म० १॥३॥ ११॥२३)। वेदों के उत्सर्जन, उपाकरण पर, गुरुजनों की (श्वशुर आदि जैसे लोगों की) मत्यु पर, अष्टका (एक प्रकार के होम) पर तथा भाई, भतीजे आदि की मृत्यु पर तीन दिनों का अनध्याय होता है। इसी प्रकार हारीत के भी वचन हैं, जिनमें थोड़ा अन्तर पाया जाता है।
आपस्तम्बधर्मसूत्र (२३।१०।४) ने माता-पिता एवं आचार्य की मृत्यु पर १२ दिनों का अनध्याय कहा है। किन्तु बौधायन ने पिता की मृत्यु पर तीन दिनों के अनध्याय की बात कही है।
स्मृतिचन्द्रिका ने कुछ ऐसे अवसरों की भी चर्चा की है जब कि एक मास, छ: मास या साल भर तक अनध्याय चलता है। आपस्तम्बधर्मसूत्र (१।३।९।१) ने उपाकर्मे के उपरान्त (जब कि वह श्रावण की पूर्णिमा के दिन किया जाय) एक मास तक रात्रि के प्रथम पहर में वेदाध्ययन करने को मना किया है।
श्लेष्मातक, शाल्मलि, मधूक, कोविदार एवं कपित्थक नामक पेड़ों के नीचे पढ़ना मना है (अपरार्क, पृ० १९२) ।
उपर्युक्त विवेचन से अनध्याय पर प्रकाश तो पड़ता है. किन्तु वेदाध्ययन पर धक्का लगता है, यह भी स्पष्ट हो जाता है। अतः अनध्याय सम्बन्धी कुछ नियम भी हैं, जिन्हें हम संक्षेप में नीचे दे रहे हैं।
___ अनध्याय वाचिक (वैदिक शब्दों का उच्चारण) एवं मानस (मन में वेद का समझना) हो सकता है। यह पहली बात है, जिसे हमें स्मरण रखना चाहिए। विशिष्ट कालों में वाचिक एवं मानस अनध्याय की व्यवस्था की गयी है (बौधायनधर्मसूत्र १२११४०-४१; गौतम १६६४६; आपस्तम्बधर्मसूत्र १।३।११।२०)।
___ आपस्तम्बश्रौतसूत्र (२४।११३७) के अनुसार अनध्याय के नियम वैदिक मन्त्रों से ही सम्बन्धित हैं। जैमिनि (१२॥३॥१८-१९) तथा आपस्तम्बधर्मसूत्र (१।४।१२।९) में भी यही बात कुछ अन्तरों के साथ पायी जाती है। इनके अनुसार यज्ञ एवं अन्य धार्मिक कृत्यों में अनध्याय के नियम लागू नहीं होते। हमने पहले ही देख लिया है कि अनध्याय के नियम ब्रह्मयज्ञ (पहले पढ़े हुए वैदिक मन्त्रों का दुहराना या पाठ) के लिए लागू नहीं होते (तैत्तिरीय आरण्यक २।१५)। मनु (२।१०५) के अनुसार अनध्याय का व्याकरण, निरुक्त नामक अंगों से कोई सम्बन्ध नहीं है। होम, जप, काम्य क्रियाओं, यज्ञ, पारायण (पढ़े हुए वैदिक मन्त्रों के पुनःपाठ) से अनध्याय कोई सम्बन्ध नहीं रखता। वास्तव में प्रथम वेदाध्ययन (वैदिक मन्त्रों के अध्ययन) एवं वेदाध्यापन से ही अनध्याय के नियम सम्बन्ध रखते हैं। स्मृत्यर्थसार (पृ. १०) के अनुसार जिनकी स्मृति दुर्बल होती है, या जिन्हें बहुत बड़ा वैदिक साहित्य स्मरण करना होता है, उन्हें प्रथमा, अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णिमा तथा अमावस को छोड़कर अन्य अनध्याय के दिनों में वेदांगों, न्याय, मीमांसा एवं धर्मशास्त्रों का अध्ययन करते रहना चाहिए। कूर्मपुराण (१४१८२-८३, उत्तरार्ध) के अनुसार वेदांगों, इतिहास, पुराणों, धर्मशास्त्रों एवं अन्य शास्त्रों के अध्ययन के लिए कोई अनध्याय नहीं होता, किन्तु पर्व के दिन इनका भी अध्ययन मना हो जाता है। स्पष्ट है, पर्वो के दिन वेदाध्ययन तथा अन्य प्रकार के शास्त्रों का अध्ययन बन्द हो जाया करता था। इस प्रकार के अनध्याय नित्य नाम से तथा अन्य नैमित्तिक अनध्याय के नाम से पुकारे जाते हैं। आजकल भी वैदिक तथा संस्कृत पाठशालाओं के पण्डितों द्वारा नित्य अनध्याय माने जाते हैं, विशेषतः अमावस्या-पूर्णिमा अनध्याय की सूचक हैं।
___अनध्याय के कुछ अवसर विचित्र एवं अनावश्यक-से लगते हैं, किन्तु कुछ के कारण तो तर्कसंगत एवं समझे . जाने योग्य सिद्धान्तों पर आधारित हैं। वैदिक अध्ययन स्मृति पर निर्भर है। वैदिक मन्त्रों को स्मरण करना मनोयोग से
ही सम्भव है। अतः मन को चंचल कर देने वाले अवसरों में वेदाध्ययन के अनध्याय की चर्चा की गयी है। किन्तु स्मृति
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International