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________________ अनध्याय २५९ अनध्याय की चर्चा गृह्य एवं धर्मसूत्रों तथा स्मृतियों में पर्याप्त रूप से हुई है। आपस्तम्बधर्म० (१।३।९।४ से १३९११ तक), गौतम० (१६।५।४९), शांखायनगृह्य० (४७), मनु (४११०२-१२८) एवं याज्ञवल्क्य (१॥ १४४-१५१) में अनध्याय का वर्णन विस्तार के साथ पाया जाता है। स्मृतिचन्द्रिका, स्मृत्यर्थसार, संस्कारकोस्तुम, संस्कार-रत्नमाला तथा अन्य निबन्धों में भी अनध्याय का विस्तृत वर्णन पाया जाता है। तिथियों में पहली, आठवीं, चौदहवीं, पन्द्रहवीं (पौर्णमासी एवं अमावस्या) तिथियों में दिन भर वेदाध्ययन बन्द रखा जाता था (देखिए मनु ४।११३-११४, याज्ञ० १११४६, हारीत)। प्रतिपदा को स्पष्ट रूप से मनु एवं याज्ञवल्क्य ने अनध्याय का दिन नहीं कहा है। पतञ्जलि ने महाभाष्य में अमावस्या एवं चतुर्दशी को अनध्याय का दिन कहा है। रामायण (सुन्दरकाण्ड ५९।३२) ने प्रतिपदा को अनध्याय के दिनों में गिना है। गौतम ने केवल आषाढ़, कार्तिक एवं फाल्गुन की पौर्णमासियों में ही अनध्याय की बात कही है, अन्य पौर्णमासियों में पढ़ने को कहा है। बौधायनधर्मसूत्र (१११११४२-४३) में आया है कि अष्टमी तिथि में अध्ययन करने से गुरु, चतुर्दशी से शिष्य एवं पन्द्रहवीं से विद्या का नाश होता है। ऐसी ही बात मनु (४।११४) में भी पायी जाती है। अपरार्क ने नृसिंहपुराण के उद्धरण से बताया है कि महानवमी (शुक्लपक्ष के आश्विन की नवमी), भरणी (भाद्रपद की पौर्णमासी के उपरान्त जब चन्द्र भरणी नक्षत्र में रहता है), अक्षयतृतीया (वैशाख के शुक्लपक्ष की तृतीया) एवं रथसप्तमी (माघ के शुक्लपक्ष की सप्तमी) में वेदाध्ययन नहीं होता। इसी प्रकार युगादि एवं मन्वन्तरादि तिथियों में भी अनध्याय होता है। विष्णुपुराण (३॥१४॥ १३) के अनुसार वैशाख शुक्ल तृतीया, कार्तिक शुक्ल नवमी, भाद्रपद कृष्ण त्रयोदशी एवं माघपूर्णिमा (ये क्रम से कृत, त्रेता, द्वापर एवं कलि नामक चार युगों के आरम्भ की सूचिका तिथियां हैं) नामक तिथियाँ युगादि तिथियाँ कही जाती हैं। आश्विन शुक्ल नवमी, कार्तिक शुक्ल द्वादशी, चैत्रमास की तृतीया, भाद्रपद की तृतीया, फाल्गुन की अमावस्या, पौष शुक्ल की एकादशी, आषाढ़ की दशमी, माघ की सप्तमी, श्रावण कृष्ण की अष्टमी, आषाढ़ की पूर्णिमा, कार्तिक, फाल्गुन, चैत्र एवं ज्येष्ठ शुक्ल की पंचदशी नामक चौदह तिथियाँ मन्वादि तिथियाँ कही जाती हैं (मत्स्यपुराण १७।६-८)। ज्येष्ठ शुक्ल २, आश्विन शुक्ल १०, माघ शुक्ल ४ एवं १२ की तिथियों को सोमपाद तिथियाँ कहते हैं और इन दिनों अनध्याय माना जाता है। याज्ञवल्क्य (१।१४८-१५१) ने ३७ तत्कालीन अनध्यायों की चर्चा की है। ये अनध्याय थोड़े समय के लिए माने गये हैं, यथा कुत्ता मूंकने या सियार, गदहा एवं उल्लू के बोलते रहने पर, साम-गान के समय, बाँसुरी-वादन या आर्तनाद पर, किसी अपवित्र वस्तु के सन्निकट होने पर, शव, शूद्र, अन्त्यज (अछूत), कब्र, पतित (महापातकी), घन-गर्जन, बिजली की लगातार चमक होने पर, भोजनोपरान्त गीले हाथों के कारण, जल में, अर्धरात्रि में, अन्धड़-तूफान में, धूलिवर्षण में, दिशाओं के अचानक उद्दीप्त हो जाने पर, दोनों सन्ध्याओं में प्रातः एवं सायं की संधियों में), कुहरे में, भय उत्पन्न हो जाने पर (डाकू या चोर आने पर), दौड़ते समय, दुर्गन्धि उत्पन्न हो जाने पर, किसी भद्र अतिथि के आगमन पर, गदहे, ऊंट, रथ, हाथी, घोड़ा, नाव, पेड़ पर बैठ जाने पर या रेगिस्तान में (निर्जन स्थान में) अनध्याय होता है। इसी प्रकार अन्य ग्रन्थों में भी अनध्याय सम्बन्धी विस्तार पाया जाता है। कभी-कभी यह थोड़े समय के लिए और कभी-कभी पूरे दिन या पूरी रात के लिए होता है। ग्रहण, उल्कापात, भूकम्प आदि प्रकृति-विपर्ययों में भी अनध्याय की बात कही गयी है। श्राद्ध में भोजन कर लेने के उपरान्त, श्राद्ध-दान ले लेने पर, गुरु एवं शिष्य के बीच पशु, मेढक, नेवला, कुत्ता, सर्प, बिल्ली या चूहा आ जाने पर वेदाध्ययन बन्द कर दिया जाता है। मनु (४११०) के अनुसार एकोद्दिष्ट श्राद्ध का निमन्त्रण स्वीकार कर लेने पर, राजा की मृत्यु पर या ग्रहण पर (जब सूर्य-चन्द्र के डूब जाने पर भी ग्रहण लगा रहे) तीन दिनों का अनध्याय होता है। इसी प्रकार अनध्याय के सम्बन्ध में बहुत लम्बा-चौड़ा विस्तार पाया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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