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________________ अध्ययन का अधिकार २४९ वैश्य जाति के शिल्पविद्या शिष्यों के लिए बने थे (याश० १।१२०, शान्तिपर्व २९५/४, लघ्वाश्वलायन २२/५ ) । शूद्र जाति के विवेचन में हमने इस विषय को देख लिया है। शूद्र लोग महाभारत एवं पुराणों का कहा जाना सुन सकते थे। यह एक विचित्र बात है कि मध्य एवं वर्तमान काल की अपेक्षा प्राचीन काल में स्त्रियों की शिक्षा-सम्बन्धी व्यवस्था कहीं उच्चतर थी। बहुत-सी नारियों ने वैदिक ऋचाएँ रची हैं, यथा -- अत्रि - कुल की विश्ववारा ने ऋग्वेद का ५।२८ वाला अंश रचा है, उसी कुल की अपाला ने ऋग्वेद का ८।९१ वाला अंश रचा है, तथा घोषा काक्षीवती के नाम से ऋग्वेद का १०।३९ वाला अंश कहा जाता है। प्रसिद्ध दार्शनिक ऋषि याज्ञवल्क्य की दो स्त्रियाँ थीं, जिनमें मैत्रेयी सत्य ज्ञान की खोज में रहा करती थी और उसने अपने पति से ऐसा ही ज्ञान माँगा जो उसे अमर कर सके (बृहदारण्यकोपनिषद् २।४।१) । बृहदारण्यकोपनिषद् ( ३।६८) के अनुसार विदेहराज जनक की राजसभा में कई एक उत्तर- प्रत्युत्तरकर्ता थे, जिनमें गार्गी वाचक्नवी का नाम बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है। गार्गी वाचक्नवी ने याज्ञवल्क्य के दांत खट्टे कर दिये थे । उसके प्रश्नों की बौछार से याज्ञवल्क्य की बुद्धि चकरा उठती थी । हारीत ने स्त्रियों के लिए उपनयन एवं वेदाध्ययन की व्यवस्था दी थी। आश्वलायनगृह्यसूत्र ( ३/४ ) में जहाँ कतिपय ऋषियों के तर्पण की व्यवस्था की गयी है, वहीं गार्गी वाचक्नवी, वडवा प्रातिथेयी एवं सुलभा मैत्रेयी नामक तीन नारी शिक्षिकाओं के नाम आते हैं। नारी शिक्षिकाओं की परम्परा अवश्य रही होगी, क्योंकि पाणिनि ( ४ । १।५९ एवं ३।३।२१ ) की काशिका वृत्ति ने 'आचार्य' एवं 'उपाध्याया' नामक शब्दों के साधनार्थ व्युत्पत्ति की है । पतञ्जलि ने अपने महाभाष्य (भाग २ पृ० २०५, पाणिनि के ४।१।१४ के वार्तिक ३ पर) में बताया है कि क्यों एवं कैसे ब्राह्मण नारी 'आपिशला' (जो आपिशलि का व्याकरण पढ़ती है) एवं क्यों 'काशकृत्स्ना' (जो काशकृत्स्न का मीमांसा ग्रन्थ पढ़ती है) कही जाती है। उन्होंने "औदमेषाः” उपाधि की व्युत्पत्ति की है, जिसका तात्पर्य है "औदमेध्या नामक स्त्री-शिक्षिका के शिष्य ।" गोभिलगृह्यसूत्र (२।१।१९-२० ) एवं काठकगृह्यसूत्र ( २५-२३) से पता चलता है कि दुलहिनें पढ़ी-लिखी होती थीं, क्योंकि उन्हें मन्त्रों का उच्चारण करना पड़ता था । स्पष्ट है, सूत्रकाल में स्त्रियां वेद के मन्त्रों का उच्चारण करती थीं । वात्स्यायन के कामसूत्र (१।२1१-३) में आया है कि लड़कियों को अपने पिता के घर में कामसूत्र एवं इसके अन्य सहायक अंग (यथा ६४ कलाएँ - गान, नाच, चित्रकारी आदि) सीखने चाहिए तथा विवाहोपरान्त पति की आशा से इन्हें करना चाहिए। ६४ कलाओं में प्रहेलिकाएँ, पुस्तकवाचन, काव्यसमस्या-पूरण, पिंगल एवं अलंकार का ज्ञान आदि भी सम्मिलित थे। महाकाव्यों एवं नाटकों में नारियाँ प्रेम-पत्र लिखती दिखाई पड़ती हैं। मालतीमाधव में आया है कि नायक एवं नायिका के पिता कामन्दकी के साथ एक ही गुरु के चरणों में अध्ययन करते थे । राजशेखर आदि के काव्यसंग्रहों से विदित होता है कि विज्जा, सीता आदि ऐसी प्रसिद्ध कवयित्रियाँ थीं, जिनकी कविताएँ संगृहीत होती थीं। किन्तु कालान्तर में नारियों की दशा अधोगति को प्राप्त होती गयी। धर्मसूत्रों एवं मनु में वेदाध्ययन के मामले में उच्च वर्ण की नारियों को भी शूद्र की श्रेणी में रखा गया है। वे आश्रित मानी जाती थीं ( गौतम १८ १, वसिष्ठधर्म ० ६।१, बौधायनधर्म० २२/४५, मनु ९/३ आदि) । हम पहले ही देख चुके हैं कि विवाह को छोड़कर स्त्रियों के अन्य सभी संस्कारों में वेद मन्त्रों का उच्चारण नहीं होता था । जैमिनि ( ६ | १|१७-२१) ने वैदिक यज्ञों में पति-पत्नी को साथ तो रखा है किन्तु मन्त्रोच्चारण पति ही करता है। जैमिनि ने दोनों को बराबर नहीं माना है। शबर ने अपनी व्याप में स्पष्ट किया है कि पति विद्वान् होता है और पत्नी विद्याहीन । मेघातिथि ने मनु ( २/४९ ) की व्याख्या में एक मनोरंजक प्रश्न उठाया है कि ब्रह्मचारी लोग भिक्षा माँगते समय स्त्रियों से "भवति भिक्षां देहि" वाला संस्कृत सूत्र क्यों बोलते हैं, जब कि वे यह भाषा नहीं जानतीं ? वैदिक काल में भी स्त्रियों के प्रति एक दुराग्रह था, और उन पर प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष ढंग से व्यंग्यात्मक छीटे ३२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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