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________________ २४० धर्मशास्त्र का इतिहास पूछना चाहिए। गौतम (५।३७-३८) ने भी इसी प्रकार नियम दिये हैं। मनु" (२।१२९) ने कहा है कि परनारी तथा जो अपनी सम्बन्धी न हो उस नारी को 'भवती' कहना चाहिए। इस विषय में और देखिए आप• घ० (१।४।१४।३०) एवं विष्णुधर्म० (३२।७) । बराबर अवस्था वाली को बहिन एवं छोटी को बेटी समझना चाहिए। उद्वाहतत्त्व के अनुसार 'श्री' शब्द देवता, गुरु, गुरुस्थान, क्षेत्र (तीर्थस्थान), अषिदेवता, सिद्ध योगी, सिद्धाधिकारी आदि के नाम के साथ प्रयुक्त होना चाहिए। रघुनन्दन ने लिखा है कि जो लोग जीवित हों उन्हीं के नाम के पूर्व 'श्री' शब्द लगाना चाहिए। इस प्रकार द्विजातियों की स्त्रियों के नाम के पूर्व 'देवी' तथा शूद्र नारियों के नाम के पूर्व 'दासी' लगना चाहिए। सम्मान के भागी कौन-कौन हैं ? इस विषय में थोड़ा-बहुत मतभेद है। सम्मान करने के लक्षण हैं अभिवादन करना, मिलने के लिए उठ पड़ना, आगे-आगे चलने देना, माला देना, चन्दन लगाना आदि। मनु (२११३६) एवं विष्णुधर्म० (३२।१६) के अनुसार धन, सम्बन्ध, अवस्था, धार्मिक कृत्य एवं पवित्र ज्ञान वाले को सम्मान मिलना चाहिए, जिनमें धन से श्रेष्ठ सम्बन्ध, सम्बन्ध से अवस्था, अवस्था से धार्मिक कृत्य एवं धार्मिक कृत्य से ज्ञान है। गौतम (६।१८२०) ने कुछ अन्तर दर्शाया है। उनके अनुसार धन, सम्बन्ध, पेशा (वृत्ति), जन्म, विद्या एवं आयु को सम्मान मिलना चाहिए। इनमें क्रमशः आगे आने वाले को अपेक्षाकृत अच्छा माना गया है, किन्तु वेद विद्या को सर्वोपरि कहा गया है। वसिष्ठधर्मसूत्र (१३।५६-५७) के अनुसार विद्या, धन, अवस्था, सम्बन्ध एवं धार्मिक कृत्य वाले सम्मानार्ह हैं जिनमें प्रत्येक पहले वाला श्रेष्ठतर है अर्थात् विद्या सर्वश्रेष्ठ है। याज्ञवल्क्य ने क्रम से विद्या, कर्म, अवस्था, सम्बन्ध एवं धन को मान्यता दी है। उन्होंने धन को अन्तिम मान्यता दी है (१।११६) । विश्वरूप (याज्ञ० ११३५) के अनुसार गुरु (माता-पिता), आचार्य, उपाध्याय एवं मृत्विक् को यदि सम्मान न दिया जाय तो पाप लगता है, किन्तु यदि विद्या, धन आदि को सम्मान नहीं दिया जाय तो पाप तो नहीं लगेगा, हाँ सुख एवं सफलता न प्राप्त हो सकेगी। मनु (२।१३७) ने ९० वर्ष के शूद्र को एक विद्वान ब्राह्मण के समक्ष बच्चा माना है। और देखिए मनु (२११५१-१५३), बौधायनधर्म० (१।४।४७), गौतम (६।२०) एवं ताण्ड्यमहाब्राह्मण (१३।३।२४)। मनु (२।१५५) ने लिखा है कि पवित्र ज्ञान से ही ब्राह्मणों की श्रेष्ठता है, पराक्रम से क्षत्रिय की, अन्न-धन से वैश्यों की एवं अवस्था से शूद्र की श्रेष्ठता है। कौटिल्य (३।२०) के अनुसार विद्या, बुद्धि, पौरुष, अभिजन (उच्च कुल) एवं कर्मातिशय (उच्च वर्ण) वाले को सम्मान मिलना चाहिए। अभिवादन एवं नमस्कार में क्या अन्तर है ? अभिवादन में न केवल झुकना होता है, प्रत्युत "अभिवादये... आदि" कहना होता है, किन्तु नमस्कार में सिर झुकाकर हाथ जोड़ लेना मात्र होता है। नमस्कार देवताओं, ब्राह्मणों, संन्यासियों आदि के लिए किया जाता है। विष्णु के अनुसार ब्राह्मण को समा, यज्ञ, राजगृह में अभिवादन न करके नमस्कार मात्र करना चाहिए। नमस्कार में हाथों की आकृतियाँ निम्न रूप से होती हैं-विद्वान को नमस्कार करने में बकरी के कान की भाँति हाथ जोड़ने चाहिए, यतियों को नमस्कार करते समय सम्पुट हाथों से । एक हाथ से, मूर्ख को तथा छोटों को नमस्कार नहीं करना चाहिए। देवालय, देवमूर्ति, बैल, गौशाला, गाय, घी, मधु, पवित्र तरु (जिसके ६८. हरदत्त के अनुसार चारों वर्गों के लिए ऐसे स्वास्थ्य-सम्बन्धी प्रश्न होने चाहिए-अपि कुशलं भवतः, अप्यनामयं भवतः, अप्यनष्टपशुधनोसि, अप्यरोगो भवान् । 'कुशलानामयारोग्याणामनुप्रश्नः। अन्त्यं शूद्रस्य।' गौतम (५।३७-३८); इस पर हरदत्त का कहना है कि 'अपि कुशलभायुष्मन्निति ब्राह्मणः प्रष्टव्यः, अप्यनामयम् अत्रभवत इति क्षत्रियः, अप्यरोगो भवानिति वैश्यः, अप्यरोगोऽसीति शूद्रः।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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