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________________ अभिवादन और नमस्कार २३९ धर्मसूत्र प्राचीन वैयाकरणों के नियमों को मान्यता देता है। मनु (२११२५) ने भी ऐसा ही कहा है, किन्तु उनके लिए 'अकार' शब्द सब स्वरों के बदले आ जाता है। उच्च वर्ण के लोग नीचे वर्ण के लोगों को अभिवादन नहीं करते, अतः उनके विषय में प्रत्यभिवाद का प्रश्न ही नहीं उठता। आपस्तम्बधर्मसूत्र (१।२।७।२७) के अनुसार शिष्य अपने गुरु की पत्नी के साथ वैसा ही व्यवहार करेगा जैसा कि गुरु के साथ करता है, किन्तु न तो उसके पाँव छुएगा और न उसका उच्छिष्ट भोजन करेगा। गौतम (२।३१-३२) ने भी यही बात कही है और जोड़ा है कि शिष्य गुरु-पत्नी को नहाने-धोने में न तो सहायता करेगा, न उसके पाँव पकड़ेगा और न उन्हें दबाएगा। यही बात मनु (२।२११), बौधायनधर्म० (१।२।३७), विष्णुधर्म० (३२।६) में भी पायी जाती है। मनु (२२२१२) एवं विष्णुधर्मसूत्र (३२।१३) के अनुसार २० वर्षीय शिष्य को अपने आचार्य की नवयुवती पत्नी के पैर नहीं पकड़ने चाहिए, प्रत्युत पृथिवी पर गिरकर प्रणाम करना चाहिए (अभिवादये अमुकशर्माहं भो:--कहकर)। गुरुपत्नी के अतिरिक्त अन्य स्त्रियों के विषय में निम्न नियम थे। विवाहित स्त्रियों को उनके पतियों की अवस्या के अनुसार अभिवादन करना चाहिए (आप० ध० १।४।१४।१८ एवं वसिष्ठधर्म० १३॥४२)। विष्णुधर्म० (३२।२) ने भी यही बात कही है किन्तु यहाँ पर अभिवादन केवल अपनी जाति की स्त्रियों तक ही सीमित है। गौतम (६।७-८) एवं मनु (२।१३१-१३२) के नियम भी अवलोकनीय हैं। ___ आपस्तम्बधर्मसूत्र (११२१७।३०), वसिष्ठधर्म० (१३।५४), विष्णुधर्म० (२८१३१) एवं मनु (२।२०७) के अनुसार शिष्य गुरुपुत्र के साथ वही व्यवहार करेगा जो गुरु के साथ किया जाता है, किन्तु गुरुपुत्र के पैर न पकड़ेगा और न उसका उच्छिष्ट भोजन करेगा। मनु (२।२०८) के अनुसार शिष्य गुरुपुत्र को सम्मान तो देगा, किन्तु उसके नहाने-धोने एवं पैर धोने में कोई सहायता न देगा और न उसका उच्छिष्ट खायेगा। ___आपस्तम्बधर्ममूत्र (१।२।७।२८ एवं १।४।१३।१२) के अनुसार प्राचीन काल में समादिष्ट (शिष्याध्यापक) की परिपाटी थी और गुरु के कहने पर जो अन्य व्यक्ति अध्यापन-कार्य करता था, उसको गुरु के समान ही सम्मान मिलता था।" ___गुरु एवं सम्बन्धियों के अतिरिक्त अन्य लोगों से मिलने पर क्या व्यवहार करना चाहिए, इसके विषय में आपस्तम्ब (१।४।१४।२६-२९) एवं मनु (२।१२७) का कहना है कि किसी ब्राह्मण से भेट होने पर 'कुशल' शब्द से स्वास्थ्य के विषय में पूछना चाहिए। इसी प्रकार क्षत्रिय से 'अनामय', वैश्य से 'क्षेम' एवं शूद्र से 'आरोग्य' शब्द का व्यवहार करना चाहिए। जो बड़ा हो, उसे प्रणाम मिलना चाहिए, जो समान या छोटी अवस्था का हो उसका 'कुशल मात्र अर्थात् तीन मात्रा तक)। यदि नाम व्यञ्जनान्त हो तो प्रत्यभिवाद होगा-"आयुष्मान्भव सोमशर्मा ३ न्।" यदि स्त्री अभिवादन करे, यथा "अभिवादये गार्यहं भोः" तब प्रत्यभिवाद होगा "आयुष्मती भव गागि". (अर्थात् यहाँ प्लुत नहीं है)। यदि इन्द्रवर्मा नामक क्षत्रिय अभिवादन करे तो प्रत्यभिवाद होगा "आयुष्मानेपीन्द्रवर्मा ३ न्," या "आयुष्मानेधीन्द्रवर्मन्"। यदि वैश्य इन्द्रपालित अभिवादन करे तो प्रत्यभिवाद होगा “आयुष्मानेवीन्द्रपालिता ३, या धोन्द्रपालित।" यदि शूद्र तुषजक अभिवादन करे तो प्रत्यभिवाद होगा "आयुष्मानेधि तुषजक" (अर्थात् यहाँ प्लुत नहीं है)। ६७. तथा समादिष्टे अध्यापयति । आप० ध० ११२७।२८; समादिष्टमध्यापयन्तं यावदध्ययनमुप्रसंगृहणीयात् । नित्यमहन्तमित्येके । आपस्तम्बधर्मसूत्र २४।१३।१२-१३ । www.jainelibrary.org Jain Education International Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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