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शिशुकाल के संस्कार
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और पिता केवल होम एवं मन्त्रोच्चारण करने लगा और नाई क्षौरकम । " क्षौरकर्म मन्त्रों के साथ किया जाता है।
कुछ सूत्रों के अनुसार कटे हुए केश बैल के गोबर में रखकर गौशाला में गाड़ दिये जाते हैं, या तालाब या कहीं आस-पास जल में फेंक दिये या उदुम्बर पेड़ की जड़ में गाड़ दिये जाते हैं, दर्ममूल में (बौधायन०, भारद्वाज ०, गोभिल०) या जंगल में (गोमिल) रख दिये जाते हैं। मानवगृह्यसूत्र में लिखा है कि कटे हुए केश किसी मित्र द्वारा एकत्र कर लिये जाते हैं।
सिर के किस भाग में और कितने केश छोड़ दिये जाने चाहिए ? इस विषय में मतभेद है। बौधायनगृह्यसूत्र के अनुसार सिर पर तीन या पाँच केश-गुच्छ छोड़े जा सकते हैं, जैसा कि कुलपरम्परा के अनुसार होता है । किन्तु कुछ ऋषियों के अनुसार पिता द्वारा आदृत प्रवरों की संख्या के अनुसार ही केश छोड़े जाने चाहिए। " आश्वलायन एवं पारस्कर० के अनुसार केश कुलधर्म के अनुसार रखे जाने चाहिए। आपस्तम्बगा ० के अनुसार शिखासंख्या प्रवर- संख्या या कुलधर्म के अनुसार होनी चाहिए। काठकगृह्य० कहता है कि वसिष्ठ गोत्र वाले सिर की दाहिनी ओर, भृगु वाले पूरे सिर में, अत्रि गोत्र तथा काश्यप गोत्र वाले दोनों ओर, आंगिरस वाले पाँच तथा अगस्त्य, विश्वामित्र आदि गोत्र वाले बिना किसी स्पष्ट संख्या के शिखा रख लेते हैं, क्योंकि यह शुभ और कुलधर्मानुकूल है । २
आजकल हिन्दुओं का एक लक्षण है शिखा । किन्तु कुछ दिनों से शौकीन तबियत वाले हिन्दू शिखा रखने में लजाते हैं। देवल ऋषि ने लिखा है कि बिना यज्ञोपवीत एवं शिखा के कोई भी धार्मिक कृत्य नहीं करना चाहिए। बिना इन दोनों के किया हुआ धार्मिक कृत्य न किया हुआ समझना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति घृणावश, मूर्खतावश या अबोधता के कारण शिखा कटा लेता है तो उसका पापमोचन तप्तकृच्छ प्रायश्चित्त से हो सम्भव है । "
आश्वलायनगृह्य० (१|१७/१८ ) के मत से लड़कियों का भी चूड़ाकरण होना चाहिए, किन्तु वैदिक मन्त्रों का उच्चारण नहीं होना चाहिए। मनु (२०६६) एवं याज्ञवल्क्य ( १।१३) ने जातकर्म से चौल तक के सभी संस्कारों को लड़कियों के लिए उचित माना है, किन्तु इनमें वैदिक मन्त्रों का उच्चारण मना किया है। मित्र मिश्र ने लिखा है। fit लड़कियों का चौल भी होना चाहिए। कुलधर्म के अनुसार पूरा सिर मुण्डित होना चाहिए, या शिखा रखनी चाहिए,
२०. तेन यचूडानां कारयिता पित्रादिः स एव वपनकर्तेति सिद्धं भवति । इदानीं तु तादृशशिक्षाया अभावालोकविद्विष्टत्वाच्च समन्त्रकं चेष्टामात्रं कृत्वा नापितेन वपनं कारयन्ति शिष्टाः । संस्काररत्नमाला - पृ० ९०१ । २१. अर्थनमेकशिखस्त्रिशिखः पञ्चशिखो वा यथैवेषां कुलधर्मः स्यात् । यर्थाद शिक्षा नियातीत्येके । बौ० गु० २।४ । बहुत से गोत्रों के ऋषि या प्रवर बहुधा तीन होते हैं, किन्तु कुछ गोत्रों के एक, वो या पाँच प्रवर होते हैं। किन्तु चार की संख्या नहीं पायी जाती। विवाह के प्रकरण में हम प्रवरों के बारे में पूनः पढ़ेंगे।
२२. दक्षिणतः कपूजा वसिष्ठानाम् । उभयतोऽत्रिकाश्यपानाम् । मुण्डा भृगवः । पाचूडा अंगिरसः । वाजि - ( राजि ?) मेके । मंगलार्थं शिखिनोऽन्ये यवाकुलधर्म वा । काठकगृह्य० (४०/२-८ ) । अपरार्क एवं स्मृतिचन्द्रिका ने भी इसे उद्धृत किया है।
२३. सोपवीतिना भाव्यं सदा बद्धशिलेन च । विशिखो व्युपवीतश्च यत्करोति न तत्कृतम् ।। शिखां छिन्दन्ति ये मोहाद् द्वेषादज्ञानतोऽपि वा । तप्तकृच्छ्रेण शुष्यन्ति त्रयो वर्णा द्विजातयः ॥ हारीत ।
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