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________________ शिशुकाल के संस्कार २०३ जन्म के नक्षत्रदिन में भात की आहुति देनी चाहिए ।" काठकगृह्यसूत्र ( ३६।१२ एवं १४ ) ने नामकरण के उपरान्त वर्ष भर प्रति मास होमं करने की व्यवस्था दी है। यह होम वैसा ही किया जाता है जैसा कि नामकरण या जातकर्म के समय किया जाता है । वर्ष के अन्त में बकरे तथा भेड़ का मांस अग्नि एवं धन्वन्तरि को दिया जाता है तथा ब्राह्मणों को घृत मिलाकर भोजन दिया जाता है। वैखानस ( ३।२०- २१ ) ने विस्तार के साथ वर्ष वर्धन का वर्णन किया है। उन्होंने इसे प्रति वर्ष करने को कहा है और लिखा है कि जन्मनक्षत्र के देवता ही प्रमुख देवता माने जाते हैं; और उनके उपरान्त अन्य नक्षत्रों की पूजा की जाती है। व्याहृति (भूः स्वाहा ) के साथ आहुति दी जाती है और तब धाता की पूजा होती है। इस गृह्यसूत्र ने उपनयन तक के सभी उत्सवों के कृत्यों का वर्णन किया है और तदुपरान्त वेदाध्ययन की समाप्ति पर विवाह के उपरान्त विवाह-दिन पर तथा अग्निष्टोम जैसे कृत्यों के स्मृतिदिन में जो कुछ किया जाना चाहिए, सब की चर्चा की है। जब व्यक्ति ८० वर्ष एवं ८ मास का हो जाता है तो वह 'ब्रह्मशरीर' कहलाता है, क्योंकि तब तक वह १००० पूर्ण चन्द्र देख चुका रहता है। इसके लिए बहुत-से कृत्यों का वर्णन है, जिन्हें हम स्थानाभाव के कारण उल्लिखित करने में असमर्थ हैं । विवाहवर्ष दिन के लिए वैखानस ने लिखा है कि ऐसे समय स्त्रियाँ जो परंपरागत शिष्टाचार कहें वही करना चाहिए। अपरार्क ने मार्कण्डेय को उद्धृत कर लिखा है कि प्रति वर्ष जन्म के दिन महोत्सव करना चाहिए, जिसमें अपने गुरुजनों, अग्नि, देवों, प्रजापति, पितरों, अपने जन्म नक्षत्र एवं ब्राह्मणों का सत्कार करना चाहिए। कृत्यरत्नाकर एवं नित्याचारपद्धति ने भी अपरार्क की बात कही है और इतना और जोड़ दिया है कि उस दिन मार्कण्डेय ( अमर देवता ) एवं अन्य सात चिरंजीवियों की पूजा करनी चाहिए। नित्याचारपद्धति ने राजा के लिए अभिषेक दिवस मनाने को लिखा है। निर्णयसिन्धु तथा संस्कारप्रकाश ने इस उत्सव को "अब्दपूर्ति" कहा है। संस्काररत्नमाला ने इसे "आयुर्वर्धापन" कहा है। आधुनिक काल में कहीं कहीं स्त्रियाँ अपने बच्चों का जन्म-दिवस मनाती हैं और घर के प्रमुख खम्भे या दही मथनेवाली मथानी से बच्चे को सदा देती हैं । चौल, चूड़ाकर्म या चूड़ाकरण गभी धर्मशास्त्रकारों ने इस संस्कार का वर्णन किया है। 'चूड़ा' का तात्पर्य है बाल-गुच्छ, जो मुण्डित सिर पर रखा जाता है, इसे 'शिखा' भी कहते हैं । अतः चूडाकर्म या चूड़ाकरण वह कृत्य है जिसमें जन्म के उपरान्त पहली बार सिर पर एक बाल - गुच्छ ( शिखा ) रखा जाता है। 'चूड़ा' से ही 'चौल' बना है, क्योंकि उच्चारण में 'ड़' का 'ल' हो जाना सहज माना गया है। बहुत-से धर्मशास्त्रकारों के मत से जन्म के उपरान्त तीसरे वर्ष चौल कर देना चाहिए। बौधायन० ( २०४ ), १५. आहुतानुकृति रायुष्यचरुः । संवत्सरे षट्सु षट्सु मासेषु चतुर्षु चतुर्षु ऋतावृतौ मासि मासि वा कुमारस्य जन्मनक्षत्रे क्रियेत । बौधायनगृह्यसूत्र ३।७।१ २ । १६. यदह्नि विवाहो भवति मासिके वार्षिके चाह्नि तस्मिन् यत्स्त्रिय आहुः पारंपर्यागतं शिष्टाचारं तत्तत् करोति । वैखानस ३।२१। आपस्तम्बधर्मसूत्र ( २|१|१|७) ने भी विवाह-दिन के कृत्य का वर्णन किया है, यथा-यवनयोः प्रियं स्यात्तदेतस्मिन्नहनि भुञ्जीयाताम् । १७. नित्याचारपद्धति में आया है -- "अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च बिभीषणः । कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविनः ॥ सप्तैतान् यः स्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम् । जीवेद्वर्षशतं साग्रं सर्वव्याधिविर्वाजतः ॥” निर्णयसिन्धु ने कृत्यचिन्तामणि से मार्कण्डेय के विषय में बहुत से श्लोक उद्धृत किये हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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