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________________ जन्मसम्बन्धी संस्कार १८७ नित करता है और हाथ जोड़कर प्रार्थना करता है कि "अमुक नाम्नः मम करिष्यमाणविवाहाख्याय कर्मणे स्वस्ति भवन्तो ब्रुवन्तु" अर्थात् आप इस कृत्य के दिन को शुभ घोषित करें, जिसे अमुक नाम वाला मैं करने जा रहा हूँ; और तब ब्राह्मण उत्तर देते हैं-"ओम् स्वस्ति” अर्थात् ओम् शुभ हो। 'स्वस्ति', 'पुण्याहम्' एवं 'ऋद्धिम्' तीनों के साथ यही क्रिया होती है और तीन-तीन बार दुहरायी जाती है। मातृका-पूजन सूत्रों में 'मातृका' (माता देवियों) की चर्चा नहीं पायी जाती। किन्तु कतिपय साधनों के आधार पर यह सिद्ध किया जा सकता है कि ईसा की आरम्भिक शताब्दियों में मातृकापूजन होता था। मृच्छकटिक नाटक में चारुदत्त अपने मित्र मैत्रेय से मातृका के लिए बलि की चर्चा करता है। गोभिल-स्मृति (११११-१२) ने १४ मातृकाओं के नाम गिनाये हैं, यथा--गौरी, पद्मा, शची, मेघा, सावित्री, विजया, जया, देवसेना, स्वधा, स्वाहा, धृति, पुष्टि, तुष्टि तथा अपनी देवी (अभीष्ट देवता)। मार्कण्डेय० (८८१११-२० एवं ३३) में मातृगण के नाम से सात माताओं (मातृकाओं) के नाम आये हैं। मत्स्यपुराण (१७९।९-३२) में एक सौ से अधिक माता-देवियों के नाम आये हैं, यथा माहेश्वरी, ब्राह्मी, कौमारी, चामण्डा आदि। वराहमिहिर की बहत्संहिता (५८५६) में मात-देवियों की मतियों की ओर संकेत है। कादम्बरी के लेखक बाण ने भी माता-देवियों की चर्चा करते हुए उनके टूटे-फूटे मन्दिरों का उल्लेख किया है। कृत्यरत्नाकर ने सात माताओं की मूर्तियों की चर्चा की है तथा देवीपुराण ने मातृका-पूजन की चर्चा करते हुए उनके प्रिय पुष्पों के नाम बताये हैं। स्कन्दगुप्त के विहार-स्थित प्रस्तर-स्तम्भ के अभिलेख में मातृका-पूजन का उल्लेख है। चालुक्य राजा सात माताओं के प्रियभक्त कहे गये हैं। कदम्ब राजा भी कार्तिकेय स्वामी एवं मातृगण के पुजारी कहे गये हैं। विश्ववर्मा के मन्त्री मयूराक्ष ने माताओं के लिए मन्दिर बनवाये थे (सन् ४२३-२४)।' मातृका पूजन की परिपाटी कब से प्रारम्भ हुई ? इस प्रश्न का उत्तर देना कठिन है। किन्तु गृह्यसूत्रों में यह वर्णित नहीं है। सर जान मार्शल ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थों में, जो मोहनजोदड़ो के विषय में लिखे गये हैं (जिल्द १, पृ० ७ एवं ४९-५२ एवं चित्र १२, ५४ एवं ५५), माता-देवियों की आकृति की ओर संकेत किया है। उनका कहना है कि आर्यों ने कालान्तर में मातृका-पूजन की परिपाटी मोहनजोदड़ो के निवासियों से सीखी, और शिव की पत्नी दुर्गा का पूजन इस प्रकार वैदिक धर्म में प्रविष्ट हो सका । ऋग्वेद (९।१०२।४) में सोम बनाने के वर्णन में सात माताओं का उल्लेख है (सम्भवतः यहाँ ये सात माताएँ सात मात्राएँ (छन्द आदि) या सात नदियाँ हैं)। . नान्दी-श्राद्ध इस पर हम श्राद्ध के प्रकरण में पढ़ेंगे। पुंसवन इस संस्कार को यह नाम इसलिए दिया गया है कि इसके करने से पुत्रोत्पत्ति होती है (पुमान् प्रसूयते येन ६. उपर्युक्त अभिलेखों के लिए देखिए क्रम से (१) गुप्त इंस्क्रिप्शंस,पृ० ४७,४९, (२) इण्डियन ऐष्टीक्वेरी, गिल्ब ६, पृ०७३ एवं एपिप्रैफिया इणिका, जिल्द ९, पृ० १०० (६०० ई०), (३) इण्डियन ऐर वेरी, जिल्ब ६ पृष्ठ २५ एवं (४) गुप्त इस्किप्शंस, पृ०७४। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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