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________________ संस्कार १७७ की मेखला पहनने (उपनयन) से दूर किया जाता है। वेदाध्ययन, व्रत, होम, त्रैविद्य व्रत, पूजा, सन्तानोत्पत्ति, पंचमहायज्ञों तथा वैदिक यज्ञों से मानवशरीर ब्रह्म-प्राप्ति के योग्य बनाया जाता है । याज्ञवल्क्य (१।१३ ) का मत है कि संस्कार करने से बीज- गर्भ से उत्पन्न दोष मिट जाते हैं। निबन्धकारों तथा व्याख्याकारों ने मनु एवं याज्ञवल्क्य की इन बातों को कई प्रकार से कहा है । संस्कारतत्त्व में उद्धृत हारीत' के अनुसार जब कोई व्यक्ति गर्भाधान की विधि के अनुसार संभोग करता है, तो वह अपनी पत्नी में वेदाध्ययन के योग्य भ्रूण स्थापित करता है, पुंसवन संस्कार द्वारा वह गर्म को पुरुष या नर बनाता है, सीमन्तोन्नयन संस्कार द्वारा माता-पिता से उत्पन्न दोष दूर करता है, बीज, रक्त एवं भ्रूण से उत्पन्न दोष जातकर्म, नामकरण, अन्नप्राशन, चूड़ाकरण एवं समावर्तन से दूर होते हैं। इन आठ प्रकार के संस्कारों से, अर्थात् गर्भार्षान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, अन्नप्राशन, चूड़ाकरण एवं समावर्तन से पवित्रता की उत्पत्ति होती है । यदि हम संस्कारों की संख्या पर ध्यान दें तो पता चलेगा कि उनके उद्देश्य अनेक थे। उपनयन जैसे संस्कारों का सम्बन्ध था आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक उद्देश्यों से, उनसे गुणसम्पन्न व्यक्तियों से सम्पर्क स्थापित होता था, वेदाध्ययन का मार्ग खुलता था तथा अनेक प्रकार की सुविधाएँ प्राप्त होती थी। उनुका मनोवैज्ञानिक महत्व भी था, संस्कार करनेवाला व्यक्ति एक नये जीवन का आरम्भ करता था, जिसके लिए वह नियमों के पालन के लिए प्रतिश्रुत होता था । नामकरण, अन्नप्राशन एवं निष्क्रमण ऐसे संस्कारों का केवल लौकिक महत्त्व था, उनसे केवल प्यार, स्नेह एवं उत्सवों की प्रधानता मात्र झलकती है। गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन ऐसे संस्कारों का महत्त्व रहस्यात्मक एवं प्रतीकात्मक था । विवाह-संस्कार का महत्व था दो व्यक्तियों को आत्मनिग्रह, आत्म-त्याग एवं परस्पर सहयोग की भूमि पर लाकर समाज को चलते जाने देना । संस्कारों की कोटियाँ हारीत के अनुसार संस्कारों की टो कोटियाँ हैं; (१) ब्राह्म एवं (२) देव । गर्भाधान ऐसे संस्कार जो केवल स्मृतियों में वर्णित हैं, ब्राह्म कहे जाते हैं। इनको सम्पादित करनेवाले लोग ऋषियों के समकक्ष आ जाते हैं । पाकयज्ञ ( पकाये हुए भोजन की आहुतियाँ), यज्ञ ( होमाहुतियाँ) एवं सोमयज्ञ आदि दैव संस्कार कहे जाते हैं। श्रीतसूत्रों में अन्तिम दो का वर्णन पाया जाता है और उनका वर्णन हम यहाँ नहीं करेंगे । संस्कारों की संख्या - संस्कारों की संख्या के विषय में स्मृतिकारों में मतभेद रहा है। गौतम ( ८1१४-२४) ने ४० संस्कारों एवं आत्मा के आठ शील-गुणों का वर्णन किया है । ४० संस्कार ये हैं- गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, अन्नप्राशन, चौल, उपनयन (कुल ८), वेद के ४ व्रत, स्नान ( या समावर्तन), विवाह, पंच महायज्ञ (देव, पितृ, मनुष्य, भूत एवं ब्रह्म के लिए), ७ पाकयज्ञ (अष्टका, पार्वण-स्थालीपाक, श्राद्ध, श्रावणी, आग्रहायणी, चैत्री, आश्वयुजी ), ७ हविर्यज्ञ जिनमें होम होता है, किन्तु सोम नहीं (अग्नघाघान, अग्निहोत्र, दर्शपूर्णमास, आग्रयण, चातुर्मास्य, निरूढपशुबन्ध एवं सौत्रामणी), ७ सोमयज्ञ (अग्निष्टोम, अत्यग्निष्टोम उक्थ्य, षोडशी, वाजपेय, अतिरात्र, आर्याम) । शंख एवं मिताक्षरा ( २१४ ) की सुबोधिनी गौतम की संख्या को मानते हैं । वैखानस ने १८ शारीर संस्कारों के नाम गिनायें हैं (जिनमें उत्थान, प्रवासागमन, पिण्डवर्धन भी सम्मिलित हैं, जिन्हें कहीं भी संस्कारों की कोटि में नहीं गिना गया है) तथा २२ यज्ञों का वर्णन किया है (पंच आह्निक यज्ञ, सात पाकयज्ञ, सात हविर्यज्ञ एवं सात १. गर्भाधानवदुपेतो ब्रह्मगर्भ संदधाति । पुंसवनात्पुंसीकरोति । फलस्थापनान्मातापितृजं पाप्मानमपोहति । रैतीरक्तगर्भापघातः पञ्चगुणो जातकर्मणः प्रथममपोहति नामकरणेन द्वितीयं प्राशनेन तृतीयं चूडाकरणेन चतुर्थ स्नापनेन पञ्चममेतैरष्टाभिः संस्कारगंभघातात् पूतो भवतीति । संस्कारतत्त्व ( पृ० ८५७) । धर्म ० २३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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