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________________ १७८ धर्मशास्त्र का इतिहास सोमयन; यहाँ पंच आह्निक यज्ञों को एक ही माना गया है, अंतः कुल मिलाकर २२ यज्ञ हुए)। गृह्यसूत्रों, धर्मसूत्रों एवं स्मृतियों में अधिकांश इतनी लम्बी संख्या नहीं मिलती। अंगिरा ने (संस्कारमयूख एवं संस्कारप्रकाश तथा अन्य निबन्धों में उद्धृत) २५ संस्कार गिनाये हैं। इनमें गौतम के गर्भाधान से लेकर पांच आहिक यज्ञों (जिन्हें अंगिरा ने आगे चलकर एक ही संस्कार गिना है) तक तथा नामकरण के उपरान्त निष्क्रमण जोड़ा गया है। इनके अतिरिक्त अंगिरा ने विष्णुबलि, आग्रयण, अष्टका, श्रावणी, आश्वयुजी, मार्गशीर्षी (आग्रहायणी के समान), पार्वण, उत्सर्ग एवं उपाकर्म को शेष संस्कारों में गिना है। व्यास (१११४-१५) ने १६ संस्कार गिनाये हैं। मनु, याज्ञवल्क्य, विष्णुधर्मसूत्र ने कोई संख्या नहीं दी है, प्रत्युत निषेक (गर्भाधान) से श्मशान (अन्त्येष्टि) तक के संस्कारों की ओर संकेत किया है। गौतम एवं कई गृह्यसूत्रों ने अन्त्येष्टि को गिना ही नहीं है। निबन्धों में अधिकांश ने सोलह प्रमुख संस्कारों की संख्या दी है, यथा--गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, विष्णुबलि, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चोल, उपनयन, वेदव्रत-चतुष्टय, समावर्तन एवं विवाह। स्मृतिचन्द्रिका द्वारा उद्धृत जातूकमे में ये १६ संस्कार वर्णित हैं-गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्त, जातकर्म, नामकरण, अन्नप्राशन, चौल, मौजी (उपनयन), व्रत (४), गोदान, समावर्तन, विवाह एवं अन्त्येष्टि। व्यास की दी हुई तालिका से इसमें कुछ अन्तर है। गृह्यसूत्रों में संस्कारों का वर्णन दो अनुक्रमों में हुआ है। अधिकांश विवाह से आरम्भ कर समावर्तन तक चले आते हैं। हिरण्यकेशिगृह्य, भारद्वाजगृह्य एवं मानवगृह्यसूत्र उपनयन से आरम्भ करते हैं। कुछ संस्कार, यथा कर्णवेध एवं विद्यारम्भ गृह्यसूत्रों में नहीं वर्णित हैं। ये कुछ कालान्तर वाली स्मृतियों एवं पुराणों में ही उल्लिखित हए हैं। अब हम नीचे संस्कारों का अति संक्षिप्त विवरण उपस्थित करेंगे। ऋतु-संगमन-वैखानस (१११) ने इसे गर्भाधान से पृथक् संस्कार माना है। यह इसे निषेक भी कहता है (६।२) और इसका वर्णन ३।९ में करता है। गर्भाधान का वर्णन ३३१० में हुआ है। वैखानस ने संस्कारों का वर्णन निषेक से आरम्भ किया है। ___ गर्भाधान (निषेक), चतुर्थीकर्म या होम-मनु (२।१६ एवं २६), याज्ञवल्क्य (१।१०-११), विष्णुधर्मसूत्र (२।३ एवं २७।१) ने निषेक को गर्भाधान के समान माना है। शांखायनगृह्यसूत्र (१११८-१९), पारस्करगृह्यसूत्र (१।११) तथा आपस्तम्बगृह्यसूत्र (८३१०-११) के मत में चतुर्थी-कर्म या चतुर्थी-होम की क्रिया वैसी ही होती है जो अन्यत्र गर्भाधान में पायी जाती है तथा गर्भाधान के लिए पृथक् वर्णन नहीं पाया जाता। किन्तु बौधायनगृह्यसूत्र (४।६।१), काठकगृह्यसूत्र (३०१८), गौतम (८११४) एवं याज्ञवल्क्य (१३११) में गर्भाधान शब्द का प्रयोग पाया जाता है। वैखानस (३।१०) के अनुसार गर्भाधान की संस्कार-क्रिया निषेक या ऋतु-संगमन (मासिक प्रवाह के उपरान्त विवाहित जोड़े के संभोग) के उपरान्त की जाती है और वह गर्भाधान को दृढ करती है। पुंसवन-यह सभी गृह्यसूत्रों में पाया जाता है; गौतम एवं याज्ञवल्क्य (१।११) में भी। गर्भरक्षण--शांखायनगृह्यसूत्र (१।२१) में इसकी चर्चा हुई है। यह अनवलोभन के समान है जो आश्वलायनगृह्यसूत्र (१।१३।१) के अनुसार उपनिषद् में वर्णित है और आश्वलायनगृह्यसूत्र (१।१३।५-७) ने जिसका स्वयं वर्णन किया है। सीमन्तोन्नयन-यह संस्कार सभी धर्मशास्त्र-ग्रन्थों में उल्लिखित है। याज्ञवल्क्य (१।११) ने केवल सीमन्त शब्द का व्यवहार किया है। विष्णुबलि-इसकी चर्चा बौधायनगृह्यसूत्र (१।१०।१३-१७ तथा १११११२), वैखानस (३।१३) एवं अंगिरा ने की है किन्तु गौतम तथा अन्य प्राचीन सूत्रकारों ने इसकी चर्चा नहीं की है। सोष्यन्ती-कर्म या होम-खादिर एवं गोभिल द्वारा यह उल्लिखित है। इसे काठकगृह्यसूत्र में सोध्यन्ती-सवन, For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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