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दासप्रथा
गोद लेनेवाले के गोत्र के अनुसार हुए हों तो वे गोद लेनेवाले के पुत्र होते हैं, अन्यथा ऐसे लोग गोद लेनेवाले के दास होते हैं ।
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नारद (ऋणादान, १२) एवं कात्यायन ने घोषित किया है कि किसी वैदिक छात्र, शिक्षार्थी, दास, स्त्री, नौकर या कर्मकर (मजदूर) द्वारा अपने कुटुम्ब के भरण-पोषणार्थ लिया गया धन गृहस्वामी को देना चाहिए, भले ही यह धन उसकी अनुपस्थिति में ही क्यों न लिया गया हो ।
भनु ( ८1७० ) एवं उशना ने अन्य गवाहों के अभाव में नाबालिग, बूढ़े आदमी, स्त्री, छात्र, सगे सम्बन्धी, दास एवं नौकर को भी गवाह माना है ।
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