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________________ वर्णों के कर्तव्य, अयोग्यताएं एवं विशेषाधिकार (६) पाये गये धन के विषय में अन्य वर्गों की अपेक्षा ब्राह्मणों को अधिक छूट दी गयी थी। यदि कोई विद्वान् ब्राह्मण गुप्त धन पाता था तो वह उसे अपने पास रख सकता था। अन्य वर्गों के लोगों द्वारा पाये गये गुप्त धन को राजा हड़प लेता था, किन्तु यदि प्राप्तिकर्ता सचाई के साथ राजा को पता बता देता था तो उसे छठा भाग मिल जाता था। यदि राजा को स्वयं गुप्त धन प्राप्त होता था तो वह आधा ब्राह्मणों में बाँट देता था (गौतम १०।४३-४५; वसिष्ठ ३।१३-१४; मनु ८।३७-३८; याज्ञवल्क्य २।३४-३५; विष्णु ३१५६-६४ एवं नारदअस्वामिविक्रय, ७-८)। (७) यदि कोई ब्राह्मण बिना किसी उत्तराधिकारी के मर जाता था तो उसका धन श्रोत्रियों या ब्राह्मणों में बांट दिया जाता था (गौतम २८।३९-४०; वसिष्ठ १७१८४-८७; बौधायन १।५।११८-१२२; मनु ९।१८८१८९; विष्ण १७।१३-१४; शंख)। (८) अवरुद्ध मार्ग में पहले जाने में ब्राह्मणों को राजा से भी अधिक प्रमुखता प्राप्त थी। गौतम (६।२१-२२) के अनुसार मार्गावरोध के समय सबसे पहले गाड़ी को, तब क्रमश: बूढ़े, रोगी, नारी, स्नातक, राजा को जाने का अवसर देना चाहिए; किन्तु राजा को चाहिए कि वह पहले श्रोत्रिय को जाने दे। अन्य लोगों के मत भी अवलोकनीय है, यथा आपस्तम्बधर्मसूत्र (२।५।११।५-९); वनपर्व १३३।१; अनुशासनपर्व : (१०४ २५-२६); बौधायन २।३।५७; शंख, मिताक्षरा द्वारा याज्ञ० ११११७ में उद्धृत। वसिष्ठ (१३।५८-६०) ने लिखा है कि गुरु के यहाँ से सद्य: आया हुआ स्नातक राजा से पहले मार्ग पाता है, किन्तु दुलहिन को सबसे पहले मार्ग मिलता है। मनु (२।१३८-१३९) ने भी अपनी सूची दी है और स्नातक को राजा के ऊपर स्थान दिया है। यही बात याज्ञवल्क्य में भी है (१।११७) । इस विषय के लिए देखिए, मार्कण्डेयपुराण (३४।३९-४१) शंख, विष्णु (५।९१) आदि। (९) अति प्राचीन काल से ही ब्राह्मणों का शरीर परम पवित्र माना जाता रहा है, और ब्रह्महत्या अधमतम अपराध के रूप में स्वीकृत थी। तैत्तिरीय संहिता (५।३।१२।१-२) में आया है कि अश्वमेध यज्ञ करने वाला ब्राह्मण-हत्या से भी छुटकारा पा जाता है । इस संहिता ने एक स्थान (२।५।१।१) पर लिखा है कि इन्द्र ने विश्वरूप की हत्या करके ब्रह्महा' की गहित उपाधि धारण की। शतपथ ब्राह्मण (१३।३।१।१) ने भी ब्रह्महत्या को जघन्य अपराध माना है। छान्दोग्योपनिषद् (५।१०।९) ने ब्रह्महत्या को पांच महापातकों में गिना है। गौतम (२१११) ने ब्रह्महत्या करनेवाले को पतितों में सबसे बड़ा माना है, वसिष्ठ (१।२०) ने तो इसे भ्रूणहत्या कहा है, मनु बलि विष्टि च कारयेत् ॥.... एतेभ्यो बलिमावद्याद्धीनकोशो महीपतिः । ऋते ब्रह्मसमेभ्यश्च देवकल्पेभ्य एव च ॥ शान्तिपर्व ७६।२-३,५,९। ५६. चक्रि शमीस्थानुग्राह्यवधूस्नातकराजभ्यः पयो दानम्। राजा तु श्रोत्रियाय । गौतम ६।२१-२२; राशः पन्या ब्राह्मणेनासमे य समेत्य तु ब्राह्मणस्यैव पन्थाः। यानस्य भाराभिनिहितस्यातुरस्य स्त्रिया इति सवर्वातव्यः । वर्णव्यायसां घेतवणः। अशिष्टपतितमत्तोन्मत्तानामात्मस्वस्त्ययनार्थेन सर्वैरेव दातव्यः। आपस्तम्ब २।५।११५ ५-९; अन्धस्य पन्या बधिरस्य पन्या स्त्रियः पन्था भारवाहस्य पन्थाः। राज्ञः पन्था ब्राह्मणेनासमेत्य समेत्य तु बाह्मणस्यैव पन्याः॥ वनपर्व १३३।१; पत्था देयो ब्राह्मणाय गोभ्यो राजभ्य एव च । वृद्धाय भारतप्ताय गभिण्यै दुर्बलस्य च॥ अनुशासनपर्व १०४।२५-२६, इसे मिलाइए, बौधायन २॥३५७ से; शंख, मिताक्षरा द्वारा याज्ञ० ११११७ की व्यास्था में उक्त । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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