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धर्मशास्त्र का इतिहास
भ्रूणहत्या करे, चोरी करे, ब्राह्मण- नारी को शस्त्र से मारे या निर्दोष नारी को मार डाले तो उसे प्राण-दण्ड मिलना चाहिए ( कात्यायन, याज्ञ० २।२८१ की व्याख्या में विश्वरूप द्वारा उद्धृत ) ।" राजाओं ने ब्राह्मणों को प्राणदण्ड दिये हैं और हमें मृच्छकटिक (९) में इसका उदाहरण भी मिलता है, जहाँ राजा पालक ने ब्राह्मण चारुदत्त को प्राणदण्ड दिया है।
(५) अधिकांश स्मृतियों के अनुसार श्रोत्रिय ( वेदज्ञानी ब्राह्मण) करों से मुक्त था । शतपथ ब्राह्मण के कुछ शब्दों से ध्वनि निकलती है कि उन दिनों भी ब्राह्मण करमुक्त थे ( शत० १३ | ६ |२| १८ ) । यही बात आपस्तम्ब धर्मसूत्र ( २।१०।२६।१० ), वसिष्ठधर्मसूत्र ( १९।२३ ), मनु ( ७।१३३ ) में भी पायी जाती है। " कौटिल्य (२1१) ने ब्रह्मदेय भूमि को ऋत्विक्, आचार्य, पुरोहित, श्रोत्रिय को दानस्वरूप देने को कहा है, और कहा है कि वह भूमि उपजाऊ होनी चाहिए और उस पर किसी प्रकार का घन-दण्ड अथवा कर नहीं लगना चाहिए। " ब्राह्मण करमुक्त क्यों रखा जाता था ? इसका उत्तर वसिष्ठर्मसूत्र में मिलता है; ब्राह्मण वेदाध्ययन करता है, वह धार्मिक शील प्राप्त करता है जिसे राजा मी पा लेता है, ब्राह्मण विपत्तियों से रक्षा करता है.....आदि।" राजा द्वारा रक्षित श्रोत्रिय जब धार्मिक गुण प्राप्त करता है तो राजा का जीवन, सम्पत्ति एवं राज्य बढ़ता है ( मनु ७ । १३६; ८1३०५) । यही बात कालिदास ने भी कही है"...... तपस्वी लोग अपने तप का छठा भाग राजा को देते हैं और यह एक अक्षय कोश है। आपस्तम्ब ( २।१०।२६।११-१७), वसिष्ठ (१९१२३), मनु (८/३९४), बृहत्पराशर (अध्याय ३ ) आदि ने ब्राह्मणों के साथ कुछ अन्य लोगों को भी अकर (करमुक्त ) माना है। किंतु ऐसे ब्राह्मण, जो खेती. ही करते थे, उन्हें कर देना पड़ता था । ब्राह्मणों पर कर के विषय में शान्तिपर्व ( ७६।२-१० ) में मनोरंजक निरूपण दिया गया है। शास्त्रज्ञ एवं सबको एक दृष्टि से देखने वाले ब्राह्मण को ब्रह्मसम कहा जाता है। ऋग्वेद, यजुर्वेद एवं सामवेद के ज्ञाता और अपने कर्तव्यों पर अडिग रहने वाले ब्राह्मण को देवसम कहते हैं (श्लोक २-३ ) । धार्मिक राजा को चाहिए कि वह अश्रोत्रिय तथा जो यज्ञ न करे उसे कर से मुक्त न करे। कुछ ब्राह्मण क्षत्रसम एवं वैश्यसम होते हैं।
५०. तथा च कात्यायनः । गर्भस्य पातने स्तंन्ये ब्राह्मण्यां शस्त्रपातने । अनुष्टां योषितं हत्वा हन्तव्यो ब्राह्मणोऽपि हि ॥ कात्यायन, विश्वरूप द्वारा याज्ञ० २।२८१ में उद्धृत ।
५१. अथातो दक्षिणानाम् । मध्यं प्रति राष्ट्रस्य यदन्यद् भूमेश्च ब्राह्मणस्य च वित्तात् । शतपथ० १३।६।२०१८; अकरः श्रोतियः । आपस्तम्ब २।१०।२६ । १०; राजा तु धर्मेणानुशासत् षष्ठं धनस्य हरेत् । अन्यत्र ब्राह्मणात् । afers १४२-४३; ब्राह्मणेभ्यः करावानं न कुर्यात् । ते हि राज्ञो धर्मकरदाः । विष्णु ३।२६-२७ ।
५२. ऋत्विगाचार्य पुरोहितश्रोत्रियेभ्यो ब्रह्मदेयान्यदण्डकराज्याभिरूपदायकानि प्रयच्छेत् । कौटिल्य २।१ । ५३. इष्टापूर्तस्य तु षष्ठमंशं भजतीति ह । ब्राह्मणो वेदमाढ्यं करोति ब्राह्मण आपक उद्धरति तस्माद् ब्राह्मणोनाद्यः । सोमोऽस्य राजा भवतीति है। प्रेत्य चाम्युदयिकमिति ह विज्ञायते । वसिष्ठ १।४४-४६; मिलाइए, शतपच ब्राह्मण के ये शब्द - सोमोऽस्माकं ब्राह्मणानां राजा । शतपथ० ५।४।२१३ एवं तस्माद् ब्राह्मणोऽनाद्यः सोमराजा हि भवति । शतपथ० ९।४।३।१६ ।
५४. यवुत्तिष्ठति वर्णेभ्यो नृपाणां क्षयि तत्फलम् । तपः षड्भागमक्षम्यं दवत्या रण्यका हि नः ।। शाकुन्तल २०१३ | ५५. विद्यालक्षणसम्पन्नः सर्वत्र समदर्शिनः । एते ब्रह्मसमा राजन् ब्राह्मणाः परिकीर्तिताः ॥ ऋग्यजुः सामसंपनाः स्वेषु कर्मस्वनस्थिताः । एते देवसमा... अओत्रियाः सर्व एव सर्वे चानाहिताग्नयः । तान् सर्वान् वार्मिंकी राजा
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