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________________ वर्गों के कर्तव्य, अयोग्यताएँ एवं विलेषाधिकार के अतिरिक्त किसी अन्य वस्तु का प्रयोग करते थे (ऐत० प्रा० ३५।४)। किन्तु महाभारत में बहुत-से राजा सोमप' कहे गये हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि सोम-सम्बन्धी ब्राह्मणोच्चता सर्वमान्य नहीं थी। (४) गौतम (८1१२-१३) ने लिखा है कि राजा को चाहिए कि वह ब्राह्मणों को छः प्रकार के दण्ड से मुक्त रखे-(१) उन्हें पीटा न जाय, (२) उन्हें हथकड़ी-बेड़ी न लगायी जाय, (३) उन्हें धन-दण्ड न दिया जाय, (४) उन्हें प्राम या देश से निकाला न जाय, (५) उनकी भर्त्सना न की जाय एवं (६) उन्हें त्यागा न जाय।" इन छ: प्रकार के छुटकारों का तात्पर्य यह है कि ब्राह्मण अवध्य, अबन्ध्य, अदण्डय, अबहिष्कार्य, अपरिवाद्य एवं अपरिहार्य माना जाता था। किन्तु ये छूटें केवल विद्वान् ब्राह्मणों से ही विशेष सम्बन्ध रखती थीं (मिताक्षरा, याज्ञ० २।४)। हरदत्त ने तो यहां तक लिख दिया है कि केवल वे ही विद्वान् ब्राह्मण छुटकारा पा सकते थे जो अनजान में कोई अपराध करते थे। शरीर-दण्ड के विषय में गौतम (१२।४३), मनु (१११९९-१००) बौधायन (१।१०।१८-१९) ने चर्चाएं की हैं । गौतम के मतानुसार शरीर-दण्ड नहीं देना चाहिए । बौधायन ने प्रथमतः ब्राह्मण को अदण्डनीय माना है, किन्तु अनैतिकता (ब्रह्महत्या, व्यभिचार या अगम्यगमन अर्थात् मातृगमन, स्वसृगमन, दुहितृगमन आदि, सुरापान, सुवर्ण की चोरी) के अपराधी ब्राह्मणों के ललाट पर जलते हुए लोहे के चिह्न से दाग देने तथा देश-निष्कासन की व्यवस्था दी है। ललाट पर विविध अपराधों के लिए कौन-से अंक चिह्नित किये जायें, इस विषय में कई मत हैं (मनु ९।२३७; मत्स्यपुराण २२७११६३-१६४; विष्णु ५१४-७)। मनु ने कहा है कि ब्राह्मण को किसी भी दशा में प्राण-दण्ड नहीं देना चाहिए, बल्कि उसकी सारी सम्पत्ति छीनकर उसे देश-निकाला दे देना चाहिए (८१३७९-३८०) । चोरी के मामले में याज्ञवल्क्य (२।२७०), नारद (साहस, १०), शंख के अनुसार ललाटांकन एवं देश-निष्कासन नामक दण्ड उचित माने गये हैं। ब्राह्मण पर धन-दण्ड की व्यवस्था भी पायी जाती है (मनु ८११२३)। झूठी गवाही देने, बलात्कार एवं व्यभिचार के लिए धन-दण्ड उचित माना गया है (मनु ८३३७८)। सिर मुंडाकर, ललाट पर अंक लगाकर तथा गदहे पर चढ़ाकर बस्ती में चारों ओर घुमाकर निकाल बाहर करना अनादर का सबसे बड़ा रूप माना गया है।" कौटिल्य (४८) ने मनु के समान शरीर-दण्ड को अस्वीकार कर ललाटांकन, देशनिर्वासन तथा खानों में कार्य करने की व्यवस्था दी है। यदि ब्राह्मण राजद्रोह, राजा के अन्तःपुर में प्रवेश, राजा के शत्रुओं को उमाड़ने का अपराध करे तो उसे पानी में डुबा देना चाहिए, ऐसा कौटिल्य ने लिखा है। यदि ब्राह्मण ४७. सोमोऽस्माकं ब्राह्मणानां राजा। शतपथ० ५।४।२।३; तस्माद् ब्राह्मणोऽनावः सोमराजा हि भवति । शतपथ० ९।४।३।१६। ४८ यत्तु पभिः परिहार्यों राज्ञाऽवष्यश्चाबन्थ्यश्चादयश्चाबहिष्कार्यश्चापरिवायश्चापरिहार्यश्वेति (गौतम ८०१२-१३), तदपि स एष बहुश्रुतो भवति....विनीत इति (गौतम ८०४-११) प्रतिपादिलबहभूतविषय म बाह्मणमात्रविषयम् । मिता० यान० २।४; न शारीरो ब्राह्मणवण्डः। गौतम १२३४३, अवघ्यो गाह्मणः सर्वाःपरायेषु । बाह्मणस्य ब्रह्महत्यागुरुतल्पगमनसुवर्णस्तेयसुरापानेषु कुसिन्धभगशृगालसुराध्वजास्तप्तेनायसा ललाटेंक पित्या विषयामिर्षमनम् । बी० १।१०।१८-१९, मृच्छकटिक नाटक (९) का यह श्लोक "अयं हि पातकी विप्रो न बन्यो मनुरखावीत् । राष्ट्रावस्मात निर्वास्यो विभवरक्षतः सह।" मनु (८।२८०) की ही छाया है। ४९. बाह्मणस्य पुनः 'न शारीरोजाह्मणे राति निषेषावषस्थाने शिरोमण्डनाविक कर्तव्यम् । बाह्मणस्य यो मौन्दर्य पुराभिर्वासनाकने। ललाटे चाभिशस्तांकः प्रयाणं गर्दभेन तु॥ इति मनुस्मरणात् । मिताक्षरा, पान० २३०२, मारव (साहस, १०) में भी यही बात कुछ उलट-फेर के साथ कही गयी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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