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________________ वर्णों के कर्तव्य, अयोग्यताएं एवं विशेषाधिकार १५५ सच बता देना चाहिए ( मनु ११।१६-१७ ; गौतम १८।२८ | ३० ; याज्ञ० ३।४२ ) । स्मृतियों में व्यर्थ में भिक्षा मांगना वर्जित माना गया है। इस विषय में शंखलिखित, वसिष्ठ ( ३।४), पराशर (१।६० ) अवलोकनीय हैं । " ( ब्राह्मणों की महत्ता - वैदिक काल में भी ब्राह्मण देवतास्वरूप माने जाते थे और केवल जन्म से ही वे अन्य वर्णों से बहुत ऊँचे थे ( तैत्तिरीय ब्राह्मण ३|७|३; शान्तिपर्व ३४३०१३-१४; मनु ४।११७ ; लिखित ३१; वसिष्ठ ३०।२-५) । धर्मशास्त्रों में भी वैदिक काल में दी गयी महत्ता यथासम्भव स्वीकृत की गयी है। स्मृतियाँ एवं पुराण ब्राह्मणों की महत्ता एवं स्तुति गान से भरे पड़े हैं। सबका लेखा-जोखा देना यहाँ सम्भव नहीं है। कुछ बानगियाँ ये हैं-देवता तो परोक्षदेवता हैं, किन्तु ब्राह्मण प्रत्यक्षदेवता हैं, यह विश्व ब्राह्मणों द्वारा धारण किया गया है, ब्राह्मणों की कृपा से ही देवता स्वर्ग में स्थित हैं, ब्राह्मणों द्वारा कहे गये शब्द झूठे नहीं होते । " मनु ( १।१००) ने ब्राह्मणों को अति उच्च माना है । मनु ने इस विषय में अतिशयोक्तियाँ भी की हैं ९ । ३१३ - ३२१ ), जन्म से ही ब्राह्मण मानसम्मान के योग्य हैं (११।८४) । पराशर ने कहा है ( ६१५२-५३ ) कि व्रतों में, तपों में, यज्ञकर्मों में जो मी दोष हों, वे सभी ब्राह्मणों की स्वीकृति से नष्ट हो जाते हैं; ब्राह्मण जो कुछ बोलते हैं, वह देवता द्वारा बोला जाता है; ब्राह्मण सर्वदेवमय हैं, उनके शब्द अन्यथा नहीं होते ।" महाभारत ने बहुधा ब्राह्मणों का गुणगान किया है। आदिपर्व (२८।३-४) के अनुसार ब्राह्मण जब क्रुद्ध कर दिया जाता है तो वह अग्नि, सूर्य, विष एवं शस्त्र हो जाता है; ब्राह्मण सभी जीवों का गुरु है।" वनपर्व (३०३।१६ ) का कहना है कि ब्राह्मण अति उच्च तेज एवं अति उच्च तप है; ब्राह्मणों को प्रणाम करने के कारण ही सूर्य स्वर्ग में विराजमान है। अनुशासनपर्व ( ३३।१७ ) एवं शान्तिपर्व (५६।२२ ) में भी ब्राह्मणों की महत्ता का वर्णन है । ४२ ऐसी बात नहीं है कि ब्राह्मणों ने जान-बूझकर अपनी महत्ता बढ़ाने के लिए तथा अन्य वर्णों से महत्तर होने के लिए धर्मशास्त्रों एवं अन्य साहित्यिक ग्रन्थों में अपनी स्तुतियाँ कर डाली हैं, क्योंकि जब तक उन्हें अन्य वर्गों द्वारा ३८. भिक्षमाणो वा निमित्तान्तरं ब्रूयात् । न स्त्रीं नाप्राप्तव्यवहारान् । अपर्याप्तसंनिधानान् । अनुद्दिश्यानं भिक्षेत । यदर्थ भिक्षेत तमेवार्थं कुर्यात् । शेषमृत्विग्भ्यो निवेदयेत् । यो वान्यः साघुतमस्तस्मै दद्यात् । शंखलिखित (गृहस्थरत्नाकर, पृ० ४५७ ) ; अवता ह्यनधीयाना यत्र भैक्षचरा द्विजाः । तं ग्रामं दण्डयेद्राजा चोरभक्तप्रदो - हि सः ॥ वसिष्ठ ३।४ एवं पराशर ११६० । ३९. देवाः परोक्षदेवाः प्रत्यक्षदेवा ब्राह्मणः । ब्राह्मणंलका धार्यन्ते । ब्राह्मणानां प्रसादेन दिवि तिष्ठन्ति देवताः । ब्राह्मणाभिहितं वाक्यं न मिथ्या जायते क्वचित् ॥ विष्णुधर्मसूत्र १९ । २०-२२ । मिलाइए, तैत्तिरीय संहिता १२७।३।१; तंत्तिरीय आरण्यक २।१५; शतपथब्राह्मण १२|४|४|६; ताब्यमहाब्राह्मण ६ | ११६; उत्तररामचरित ५ । ४०. व्रतच्छिद्रं तपछि यच्छिद्रं यज्ञकर्मणि । सर्वं भवति निश्छिद्रं ब्राह्मणैरुपपादितम् ॥ ब्राह्मणा यानि भाषन्ते भाषन्ते तानि देवताः । सर्वदेवमया विप्रा न तद्वचनमन्यथा ॥ पराशर ६।५२-५३ । शातातप में कुछ अन्तर के साथ ये ही श्लोक हैं (१।३०-३१) । ४१. अग्निरको विषं शस्त्रं विप्रो भवति कोपितः । गुरुहिं सर्वभूतानां ब्राह्मणः परिकीर्तितः ॥ आदिपर्व २८ ३-४; देखिए, आदिपर्व ८१।२३ एवं २५; एवं मत्स्यपुराण ३०।२८ एवं २५ । ४२. ब्राह्मणो हि परं तेजो ब्राह्मणो हि परं तपः । ब्राह्मणानां नमस्कारः सूर्यो दिवि विराजते ॥ वनपर्व ३०३ । १६ । मिलाइए, शतपथब्राह्मण २|३|१|५; और देखिए, ॠग्वेद २।१५।२-९, ऋग्वेद ४१५०२७-९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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