________________
वर्ण; स्मृतियों में णित विभिन्न जातियां
१४१ आहितुण्डिक-निषाद एवं वैदेहक नारी से उत्पन्न। इसे गारुडी भी (मराठी में) कहते हैं।
औरभ-मराठी में इसे धंगर कहते हैं। यह भेड़, बकरी चराता है। उत्तर प्रदेश, बिहार में इसे गड़रिया कहा जाता है।
कटधानक-आवर्तक पुरुष एवं ब्राह्मण नारी की सन्तान । कुन्तलक-यह नापित (नाई) के समान है। कुरुविन्द-कुम्भकार एवं कुक्कुटी नारी से उत्पन्न। शूद्रकमलाकर के अनुसार यह आज का शाली है। घोलिक-व्याध पुरुष एवं गारुडी नारी की सन्तान । दुर्भर-आयोगव एवं घिग्वण नारी की सन्तान। इसे अब डोहोर या डोर कहते हैं। पौष्टिक---ब्राह्मण एवं निषादी नारी से उत्पन्न। अब इसे कहार या पालकी ढोनेवाला या भोई कहा जाता है। प्लव-चाण्डाल एवं अन्ध्र नारी की सन्तान। यह आज का 'हाडी' है।
बन्धुल-मैत्रेय एवं जांघिका स्त्री की सन्तान। इसे अब झारेकरी (जो मिट्टी या राख से सोने के कण बटोर कर सोनार के पास ले जाता है) कहते हैं।
भस्मांकुर---च्युत शैव संन्यासी एवं शूद्र वेश्या की सन्तान। जातिविवेक में इसे गुरव कहा गया है। मन्यु-वैश्य एवं क्षत्रिय नारी की सन्तान। इसे तावडिया (चोर पकड़नेवाला) भी कहते हैं। रोमिक-मल्ल एवं आवर्तक नारी की सन्तान। अब इसे लोणार (नमक बनानेवाला) कहा जाता है। शालाक्य या शाकल्य--मालाकार और कायस्थ नारी की सन्तान। अब इसे मनियार कहते हैं। शुख-मार्जक-माण्डलि, जो गा-बजाकर जीविका चलाते हैं। सिन्दोलक या स्पन्दालिक-शूद्र एवं मागध नारी की सन्तान । इसे रंगारी अर्थात् रंगनेवाला कहा जाता है।
आधुनिक काल में प्रमुख वर्गों में बहुत-सी उपजातियाँ हैं, जो प्रदेश, व्यवसाय, धार्मिक सम्प्रदाय तथा अन्य कारणों से एक दूसरे से भिन्न हैं, उदाहरणार्थ, ब्राह्मण प्रथमतः १० श्रेणियों में विभाजित हैं, जिनमें ५ गौड़ हैं और ५ द्रविड़ है। ये १० ब्राह्मण कतिपय श्रेणियों, उपजातियों एवं वर्गों में विभाजित हैं। द्रविड़ ब्राह्मणों में महाराष्ट्र ब्राह्मण चितपावन (या कोंकणस्थ), कर्हाडे, देशस्थ, देवरुखे आदि कई उपजातियों में विभाजित हैं। कहा जाता है कि गुजरात में ब्राह्मणों की ८४ उपजातियाँ हैं। पुनः एक ही उपजाति में कई विभाजन पाये जाते हैं। पंजाब के सारस्वतों में लगभग ४७० उपविभाग हैं। इसी प्रकार कान्यकुब्जों में भी सैकड़ों श्रेणियाँ हैं। अति प्राचीन काल में भी उत्तर के ब्राह्मणों ने मगध आदि देशों के ब्राह्मणों को ऊंची दृष्टि से नहीं देखा था। मत्स्यपुराण (१६३१६) में आया है कि वैसे ब्राह्मण जो म्लेच्छ देशों में, त्रिशंकु, बर्बर, ओड्र (उड़ीसा), अन्ध्र (तेलंगाना), टक्क, द्रविड़ एवं कोंकण में रहते हैं, उन्हें श्राद्ध के समय निमन्त्रित नहीं करना चाहिए।
क्षत्रियों में भी कतिपय उपजातियाँ पायी जाती हैं, यथा सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी तथा अग्निकुल वाले। परमारों में ३५, गुहिलोतों में २४, चाहमानों में २६, सोलंकियों में १६ शाखाएँ हैं। इसी प्रकार अन्य वर्गों में भी बहुतसी शाखाएँ एवं उपशाखाएँ हैं।
४५. द्राविडाश्चैव तैलंगाः कर्नाटा मध्यदेशगाः। गुर्जराश्चय पञ्चते कय्यन्ते द्राविडा द्विजाः॥ सारस्वताः कान्यकुब्जा उत्कला मैथिलाश्च ये। गौडाश्च पञ्चधा चैव दश विप्राः प्रकीर्तिताः॥ सह्याद्रिखण्ड (स्कन्दपुराण)।
४६. कृतघ्नानास्तिकांस्तद्वन्म्लेच्छदेशनिवासिनः। त्रिशंकुबर्बरोडान्ध्रान् टक्कद्रविड़कोंकणान् ॥ मत्स्यपुराण १६१६।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org