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वर्ण; स्मृतियों में वर्णित विभिन्न जातियाँ
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सूचिक या सौचिक या सूची -जो सूई से कार्य करता है, अर्थात् दर्जी । यह वैदेहक पुरुष एवं क्षत्रिय नारी की प्रतिलोम सन्तान है ( वैखानस १०/१५ एवं उशना २२ ) और सूई का अर्थात् सीने-पिरोने का काम करता है। अमरकोश के अनुसार सौचिक मी तुन्नवाय ही है (देखिए ऊपर) और ब्रह्मपुराण में सूची भी तुन्नवाय ही कहा गया है।
सूत - वैदिक साहित्य ( तैत्तिरीय ब्राह्मण ३ | ४ | १ ) में भी यह नाम आया है। यह क्षत्रिय पुरुष एवं ब्राह्मण नारी की प्रतिलोम सन्तान है ( गौतम ४।१५; बौधायन १४९१९; वसिष्ठ १८२६; कौटिल्य ३।७; मनु १०।११; नारद, स्त्रीपुंस, ११०; विष्णु १६।६ ; याज्ञ० १।९३ एवं सूतसंहिता ) । स्तुति गान करने वाले सूत से यह मिन है, ऐसा कौटिल्य ने स्पष्ट कर दिया है। सूत का व्यवसाय है रथ हांकना, अर्थात् घोड़ा जोतना, खोलना आदि ( मनु १० १४७ ) । वैखानम (१०।१३ ) के अनुसार इसका कार्य है राजा को उसके कर्तव्यों की याद दिलाना एवं उसके लिए भोजन बनाना । कर्णपर्व ( ३२१४८ ) के अनुसार यह ब्राह्मण-क्षत्रियों का परिचारक है । वायुपुराण (जिल्द १1१1३३-३४, जिल्द २।१।१३९ ) ने इसे राजाओं एवं धनिकों की वंशावली, परम्पराओं की सुरक्षा करनेवाला कहा है । किन्तु यह वेदाध्ययन नहीं कर सकता एवं अपनी जीविका के लिए राजाओं पर आश्रित रहता है और रथों, घोड़ों एवं हाथियों की रखवाली करता है। यह जीविका के लिए दवा देने का कार्य भी कर सकता । वैखानस ( १० | १३) एवं सुतसंहिता में स्पष्ट शब्दों में आया है कि सूत एवं रथकार में अन्तर है, जिनमें सूत तो वैध विवाह की सन्तान है, किन्तु रथकार क्षत्रिय पुरुष एवं ब्राह्मण नारी के गुप्त प्रेम की सन्तान है ।
सूनिक या सौनिक (कसाई) 1--यह आयोगव पुरुष एवं क्षत्रिय नारी की सन्तान है ( उशना १४ ) । हारीत ने इसे रजक एवं चर्मकार की श्रेणी में रखा है। ब्रह्मपुराण ने इसे 'पशुमारक' कहा है। जातिविवेक के अनुसार यह 'खाटिक ) ' है ।
सैरिन्ध्र -- मन ( १०1३२ ) के अनुसार यह दस्यु पुरुष एवं आयोगव नारी की सन्तान है, पुरुषों एवं नारियों के केश विन्यास से अपनी जीविका चलाता है। यह दास ( उच्छिष्ट भोजन करनेवाला) नहीं है, हाँ, शरीर दबाने में का कार्य करता है। पाणिनि (४।३।११८) ने अपने 'कुलालादि गण' में इसे परिगणित किया है। महाभारत सैरिन्ध्री के रूप में द्रौपदी ने विराट-रानी की ये सेवाएँ की हैं-- केशों को सँवारना, लेपन करना, माला बनाना ( विराटपर्व ९१८ - १९ ) । इसी प्रकार दमयन्ती वेदिराज की माता की सैरिन्ध्री बनी थी ( वनपर्व ६५।६८७० ) । आदिपर्व के अनुसार सैरिन्ध्र मृगों को मारकर, राजाओं के अन्तःपुरों एवं छुटकारा पायी हुई नारियों की रखवाली करके अपनी जीविका चलाता है ( शूद्रकमलाकर में उद्धृत ) |.
सोपाक --- यह चण्डाल ( या चाण्डाल) पुरुष एवं पुक्कस नारी की सन्तान है ( मनु १० ३८ ) । यह राजा से afusa लोगों को फाँसी देते समय जल्लाद का कार्य करता है।
सौधन्वन --- देखिए, कामसूत्र ( १।५।३७ ) । इसे रथकार भी कहा जाता है ।
उपर्युक्त जाति सूची से व्यक्त होता है कि स्मृतियों में वर्णित कतिपय जातियाँ, यथा अम्बष्ठ, मागघ, मल्ल एवं वैदेहक, प्रदेशों से सम्बन्धित हैं ( अम्ब, मगध, विदेह आदि ) तथा कुछ जातियाँ आभीर, किरात एवं शक नामक विशिष्ट जातियों पर आधारित हैं। मनु ( १०१४३ - ४५ ) एवं महाभारत ( अनुशासनपर्व ३३।२१-२३, ३५।१७-१८) ने शकों, यवनों, कम्बोजों, द्रविड़ों, दरदों, शबरों, किरातों आदि को मूलतः क्षत्रिय माना है, किन्तु वे ब्राह्मणों के सम्पर्क से दूर हो जाने के कारण शूद्रों की स्थिति में परिवर्तित हो गये थे । यही बात विष्णुपुराण ( ४/४/४७-४८ ) में भी पायी जाती है । अयस्कार, कुम्भकार, चर्मकार, तक्षा, तैलिक, नट, रथकार, वेण आदि
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