________________
वर्ण; स्मृतियों में वर्णित विभिन्न जातियां
१३७ लोहकार (लोहार)-देखिए पीछे, 'कार' नारद (ऋणादान, २८८) ने इसकी चर्चा की है, यथा 'जात्यव लोहकारो यः कुशलश्चाग्निकर्मणि।' उत्तर प्रदेश एवं बिहार में इसे लोहार कहा जाता है।
बन्दी (वन्दना करनेवाला, भाट, 'बन्दी' भी कहा जाता है) हारीत ने इसे वैश्य पुरुष एवं क्षत्रिय नारी की प्रतिलोम सन्तान कहा है। ब्रह्मपुराण ने इसे लोगों की स्तुति या वन्दना करनेवाला माना है।
वराट-व्यास (१।१२-१३) ने इसे अन्त्यजों में परिगणित किया है।
वरुड (बांस का काम करनेवाला)--इसे बुरुड भी लिखा जाता है। महाभाप्य (४।१९७) ने वारुडकि ('वरुड' से बना हुआ) का उदाहरण दिया है। तैतिरीय संहिता (४।५।१) में 'विडलकार' (बाँस चीरनेवाला) एवं वाजसनेयी संहिता (३०१८) में 'विडलकारी शब्दों का प्रयोग हुआ है। उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों में बाँस के काम करनेवालों को धरकार भी कहा
वाटधान-मनु (१०।२१) ने इसे आवन्त्य माना है। देखिए ऊपर 'आवन्त्य।' विजन्मा--मनु (१०।२३) के अनुसार यह कारुष का ही द्योतक है।
वेण (वैण)---मनु (१०।१९) एवं बौधायन (१।९।१३) के अनुसार यह वैदेहक पुरुष एवं अम्बष्ठ नारी की सन्तान है। कौटिल्य (३७) ने वैण को अम्बष्ठ पुरुष एवं वैदेहक नारी की सन्तान माना है। मनु (१०।४९) ने इसे बाजा बजानेवाला कहा है। कुल्ला (मनु ४।२१५) ने इसे बुरुड की भाँति बाँस का काम करनेवाला माना है।
वेणुक-उशना (४) ने इसे सूत एवं ब्राह्मणी की प्रतिलोम सन्तान कहा है। वैखानस (१०।१५) ने इसे मद्गु एवं ब्राह्मणी की प्रतिलोम सन्तान कहा है। यह जाति वीणा एवं मुरली बजाने का कार्य करती है। सूतसंहिता ने इसे नाई (नापित) एवं ब्राह्मणी की सन्तान कहा है।
वेलव--सूतसंहिता ने इसे शूद्र पुरुष एवं क्षत्रिय नारी की सन्तान माना है।
वैदेहक-बौधायन (११९६८), कौटिल्य (३७), मनु (१०।११,१३,१७), विष्णु (१६६६), नारद (स्त्रीपुंस, १११), याज्ञ० (११९३), अनुशासन पर्व (४८।१०) के अनुसार यह वैश्य पुरुष एवं ब्राह्मण नारी की प्रतिलोम सन्तान है। किन्तु गौतम (४।१५) के अनुसार यह शूद्र पुरुष एवं क्षत्रिय नारी की सन्तान है। वैखानस (१०।१४) एवं कुछ आचार्यों के मत (गौतम ४।१७ एवं उशना २०) से यह शूद्र पुरुष एवं वैश्य नारी की सन्तान है। मनु (१०।४७) एवं अग्निपुराण (१५१।१४) के अनुसार इसका व्यवसाय है अन्तःपुर की स्त्रियों की रक्षा करना। किन्तु उशना (२०।२१) एवं वैखानस (१०.१४) ने इसे बकरी, भेड़, मैंस चरानेवाला तथा दूध, दही, मक्खन, धी बेचनेवाला कहा है। सूतसंहिता ने वैदेह एवं पुल्कस को समान माना है।
व्याध (शिकारी या बहेलिया)-सुमन्तु, हारीत, याज्ञ० (२।४८),आपस्तम्ब आदि ने इसका उल्लेख किया है।
व्रात्य-आपस्तम्बधर्मसूत्र (१११, १२२२-१, ११२।१०) तथा अन्य सूत्रों ने व्रात्य को ऐसी जाति वाला कहा है, जिसके पूर्वजों का उपनयन नहीं हुआ हो। किन्तु बौधायन (१।९।१५) में व्रात्य को वर्णसंकर कहा गया है।
___ शक-मनु (१०।४३-४४) ने शकों को यवनों के साथ वर्णित किया है और उन्हें शूद्रों की श्रेणी के पतित क्षत्रिय माना है। इस विषय में 'यवन' का वर्णन भी पढ़िए। महाभारत में भी इनका वर्णन है (समा० ३२।१६-१७; उद्योग० ४।१५, १९।२१; १६०।१०३; भीष्म० २०।१३; द्रोण० १२१११३) । पाणिनि (४।१।१७५) ने 'कम्बोजादि गण' में शक का उल्लेख किया है।
शबर--भिल्ल के समान जंगली आदिवासी। महाभारत में इनका वर्णन है (अनुशासनपर्व ३५।१७, शान्तिपर्व ६५।१३)।
शालिक-सूतसंहिता ने इसे मागध ही माना है। देखिए, ऊपर। १८
Jain Education International
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org