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________________ १३६ धर्मशास्त्र का इतिहास मन् (१०।३६) ने मेद को वैदेहक पुरुष एवं निषाद नारी की सन्तान कहा है। मनु (१०।४८) ने इसके व्यवसाय को अन्ध्र, चूञ्चु एवं मद्गु का व्यवसाय अर्थात् जंगली पशुओं को मारना कहा है। मैत्र--मनु (१०।२३) ने इसे कारुष ही कहा है। मैत्रेयक--मनु (१०।२३) के अनुसार यह वैदेहक पुरुष एवं आयोगव नारी की.सन्तान है। इसकी जीविका है राजाओं एवं बड़े लोगो (धनिकों) की स्तुति करना एवं प्रातःकाल घण्टी बजाना। जातिविवेक ने इसे ढोकनकार कहा है। म्लेच्छ--मृतसंहिता के अनसार यह ब्राह्मण नारी एवं वैश्य पाप के गात प्रेम की सन्तान है। यवन--गौतम (४।१७) में उल्लिखित आचार्यों के मत से यह शद्र पूरुष एवं क्षत्रिय नारी से उत्पन्न प्रतिलोम जाति है। मन (२०१४३-४४) ने यवनों को शदों की स्थिति में पतित क्षत्रिय माना है। म शकों तथा अन्य अनार्यों के साथ वर्णित हैं (सभापर्व ३२।१६-१७; वनपर्व २५४।१८; उद्योगपर्व १९।२१; भीष्मपर्व २०११३; द्रोणपर्व ९३।४२ एवं १२१११३; कर्णपर्व ७३।१९; शान्तिपर्व ६५।१३; स्त्रीपर्व २२।११) । ज्ञात होता है कि सिन्धु एवं सौवीर के राजा जयद्रथ के अन्तःपुर में कम्बोज एवं यवन स्त्रियाँ थीं। पाणिनि (४।१५९), महाभाष्य (२।४।१०), अशोक-प्रस्तराभिलेख (५ एवं १३), विष्णुपुराण (४।३।२१) में यवनों की चर्चा हुई है। __ रंगावतारी (तारक)-मनु (४।२१५) के अनुसार यह शैलूष एवं गायन से भिन्न जाति है। शंख (१७।३६) एवं विष्णुधर्मसूत्र (५१।१४) ने भी इसकी चर्चा की है। ब्रह्मपुराण के अनुसार यह नट है जो रंगमंच पर कार्य करता है, वस्त्र एवं मुखाकृतियों के परिवर्तन आदि का व्यवसाय करता है । मैत्री नामक उपनिषद् में नट एवं भट के साथ रंगावतारी का उल्लेख है। रजक (धोबी)--बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं बंगाल (धौवा) में धोबी एक अछूत जाति है। कुछ आचार्यों के अनुसार यह सात अन्त्यजों में आता है। वैखानसं (१०।१५) के अनुसार यह पुल्कस (या वैदेहक) एवं ब्राह्मण स्त्री की सन्तान है। किन्तु उशना (१८) ने इसे पुल्कस पुरुष एवं वैश्य कन्या की सन्तान माना है। महाभाष्य (२।४।१०) ने इसे शूद्र कहा है। रजक (रंगसाज)---मनु (४।२१६) ने इसका उल्लेख किया है। उशना (१९) ने इसे शूद्र पुरुष एवं क्षत्रिय नारी के गुप्त प्रेम की सन्तान माना है। __ रथकार---वैदिक साहित्य में भी इसकी चर्चा आती है (नैत्तिरीय ब्राह्मण ३।।१)। बौधायनगृह्यसूत्र (२। ५।६) एवं भारद्वाजगृह्यसूत्र (१) के अनुसार इसका उपनयन वर्षा ऋतु में होता था। बौधायनधर्मसूत्र (१।९।६) ने इसे वैश्य पुरुष एवं शद्र नारी के वैध विवाह का प्रतिफल माना है। धर्मशास्त्रकारों ने इसकी उत्पत्ति के विषय में मतभेद प्रकट किया है। इसका व्यवसाय रथ-निर्माण है। रामक-~-वसिष्ठधर्मसूत्र (१८१४) ने इसे वैश्य पुरुष एवं ब्राह्मण नारी की प्रतिलोम सन्तान कहा है। इसी को गौतमधर्मसूर (१५) एवं बौधायनधर्मसूत्र के अनुसार क्रम से कुत एवं वैदेहक कहा जाता है । लुब्धक--मग का शिकार करनेवाला। इसको व्याव भी कहते हैं। लेखक-यदि यह जाति है, तो इसे कायस्थ ही समझना चाहिए। देखिए 'कायस्थ' जाति का विवरण । ३८. ये चान्य ह चाटजटनटभटप्रवजितरंगावतारिणो राजकर्मणि पतितावयः...... तैः सह न संवसेत् । मंत्री-उप० ७८। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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