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धर्मशास्त्र का इतिहास
पुल्कस एवं पौल्कस को एक समान कहा है। यह निषाद पुरुष एवं शूद्र नारी की सन्तान है ( बौधायन १।९।१४, मनु० १०।१८ ) । सूतसंहिता एवं वैखानस में यह शराब बनाने और बेचनेवाला कहा गया है।" अग्निपुराण में पुक्कसों को शिकारी कहा गया है। किन्तु धर्मशास्त्रकारों में पुल्कसों की उत्पत्ति के विषय में बड़ा मतभेद है।
पुष्कर -- यह एक अन्त्यज है ( व्यासस्मृति १।१२ ) ।
पुष्पध - - मन् (१०/२१ ) के अनुसार यह आवन्त्य का दूसरा नाम है ।
पौण्ड्रक ( या पौण्ड ) -- देखिए 'गुण्डू' ।
पौल्कस —— देखिए, ऊपर 'पुल्कस' ।
बन्दी - देखिए, नीचे 'बन्दी' ।
बर्बर - - मेधातिथि ( मनु० १०१४ ) ने बर्बरों को 'संकीर्णयोनि' कहा है। महाभारत में बर्बरों को शक, शबर, यवन, पत्र आदि अनार्य जातियों में गिना गया है ( सभा० ३२।१६-१७, ५१।२३; वन० २५४ । १८; द्रोण० १२१।१३ ; अनुशासन ० ३५।१७ शान्ति० ६५।१३ ) ।
बाह्य -- देखिए ऊपर 'अन्त्य' ।
बुरुड (बाँस का काम करनेवाला). ) - यह सात अन्त्यजों में एक है। यह 'वरुड' भी लिखा जाता है। उड़ीसा में यह अछूत जाति है।
भट - - व्यास ( १।१२ ) के अनुसार यह अन्त्यज है। देखिए, नीचे 'रंगावतारी' ।
भिल्ल --- यह अन्त्यज है (अंगिरा, अत्रि १९९, यम ३३) ।
भिषक् -- उशना (२६) के अनुसार यह ब्राह्मण पुरुष एवं क्षत्रिय कन्या के गुप्त प्रेम का प्रतिफल है, और आयुर्वेद को आठ भागों में पढ़कर अथवा ज्योतिष फलित ज्योतिष, गणित के द्वारा (२७) अपनी जीविका चलाता है। अपरार्क के अनुसार यह चीर-फाड़ एवं रोगियों की सेवा कर अपनी जीविका चलाता है।
भूप — यह एक वैश्य पुरुष एवं क्षत्रिय नारी की संतान है ( कृत्यकल्पतरु में उद्धृत यम के अनुसार ) 1 भूर्जकण्टक -- मनु (१०१२१ ) के अनुसार यह व्रात्य ब्राह्मण एवं ब्राह्मणी की सन्तान है। कई प्रदेशों में यह आवन्त्य या वाटधान एवं पुष्पध या शैख नाम से विख्यात है ।
भृज्जकण्ठ (अम्बष्ठ ) -- गौतम में उल्लिखित कई आचार्यों (४।१७ ) के अनुसार यह वैश्य पुरुष एवं ब्राह्मण नारी की सन्तान है।
भोज -- सुतसंहिता के अनुसार यह क्षत्रिय स्त्री एवं वैश्य पुरुष की सन्तान है ।
मद्गु--मनु (१०।४८) के अनुसार यह जंगली पशुओं को मारकर अपनी जीविका चलाता है। कुल्लुक ने मनु के इस श्लोक की व्याख्या करते हुए कहा है कि यह ब्राह्मण एवं बन्दी नारी की सन्तान है। किन्तु वैखानस ( १०।१२ ) के अनुसार यह क्षत्रिय पुरुष एव वैश्य नारी की वैध सन्तान है, और लड़ने का व्यवसाय न करके श्रेष्ठी (व्यापार) का काम करता है।
मणिकार -- उशना ( ३९-४० ) के अनुसार यह क्षत्रिय पुरुष एवं वैश्य नारी के गुप्त प्रेम का प्रतिफल है और मोतियों, सौपियों एवं शंखों का व्यवसाय करता है। सुतसंहिता के अनुसार यह वैश्य पुरुष एवं वैश्य नारी के गुप्त प्रेम का प्रतिफल है ।
३६. शूद्रात्क्षत्रियायां पुल्कसः कृतकां वा वार्शी सुरां हत्वा पाचको विक्रीणीते । वैखानस १०।१४।
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