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वर्ण एवं स्मृतियों में गणित विभिन्न नातियाँ
१३३ नर्तक-उशना (१९) के अनुसार यह वैश्य नारी एवं रंजक की सन्तान है। बृहस्पति ने नट एवं नर्तकों को अलग-अलग रूप से उल्लिखित किया है। ब्राह्मणों के लिए इनका अन्न अभोज्य था। अत्रि (७।२) ने भी दोनों की पृथक्-पृथक् चर्चा की है।
नापित (नाई)-चूडाकर्म संस्कार में शांखायनगृह्यसूत्र (१२२५) में इसका नाम लिया है। उशना (३२३४) एवं वैखानस (१०।१२) ने इसे ब्राह्मण पुरुष एवं वैश्य नारी के गुप्त प्रेम का प्रतिफल माना है। उशना ने इसके नाम की व्याख्या करते हुए कहा है कि यह नाभि से ऊपर के बाल बनाना है, अत: यह नापित है।" वैखानस (१०।१५) ने लिखा है कि यह अम्बष्ठ पुरुष एवं क्षत्रिय नारी की मन्तान है और नाभि से नीचे के बाल बनाता है। इसी प्रकार कई एक धारणाएँ उल्लिखित मिलती हैं।
निच्छिवि--मनु (१०।२२) के अनुभार यह करण एवं खश का दूसरा नाम है। सम्भवतः यह लिच्छवि या लिच्छिवि का अपभ्रंश है।
निषाद--वैदिक साहित्य में भी यह शब्द आया है (तैत्तिरीय संहिता ४।५।४।२)। निरुक्त (३।८) ने ऋग्वेद (१०५३।४) के "पंचजना मम होनं जपध्वम्" की व्याख्या करते हए कहा है कि औषमन्यव के अनुसार पाँच (जनों) लोगों में चारों व्रणों के साथ पाँचवी जाति निपाद भी सम्मिलित है। इससे स्पष्ट है कि औपमस्यव ने निपादों को शूद्रों के अतिरिक्त एक पृथक् जाति में परिगणित किया है। वौधायन (१।२।३), वसिष्ठ (१८१८), मनु (१०८), अनशासनपर्व (४८१५),याज्ञवल्क्य (१०९१) के अनसार निषाद ब्राह्मण पूरुप एवं शद्र स्त्री से उत्पन्न अनलोम सन्तान है। इसका दूसरा नाम है पारशव। कतिपय धर्मशास्त्रकारों ने निपादों की उत्पत्ति के विषय में विभिन्न बातें लिखी हैं। रामायण में निषादों के राजा गुह ने गंगा पार करने में राम को सहायता की थी।
पलव--मनु (१०१४३-४४) ने इसे शूद्रो की स्थिति में आया हुआ क्षत्रिय माना है। महाभारत ने पह्नवों, पारदों एवं अन्य अनार्य लोगों का उल्लेख किया है (सभापर्व ३२॥३६-१७, उद्योगपत्र ४।१५, भीमपर्व २०।१३)।
पाण्डुसोपाक--मनु (१०।३७) के अनुसार यह एक चाण्डाल पुरुष एवं वैदेहक नारी को सन्तान है और बाँसों का व्यवसाय करता है। यह बुरुड ही है।
पारद---जैसा कि पह्नवों की चर्चा करते हुए लिखा गया है, यह महाभारत में अनार्यों एवं म्लेच्छों में परिगणित हुआ है (सभापर्व ३२-१६, ५१।१२, ५२।३; द्रोणपर्व १३:४२ एवं १२१११३)। देखिए. 'यवन' भी।
पारशव--आदिपर्व (१०९।२५) में विदुर को पारशव कहा गया है और उनका विवाह पारशव राजा देवक की पुत्री से हुआ था।
पिंगल--सुतसंहिता के अनुसार यह ब्राह्मण पुरुष एवं आयोगव नारी की सन्तान है। पुण्ड या पौण्डक--महाभारत में यह अनार्यों में परिगणित है (द्रोण ० ९३।४४, आश्वमेधिव० २९।१५-१६) ।
पुलिन्द --वैदिक साहित्य में इसकी चर्चा हुई है (ऐतरेय ब्राह्मण ३३।६), यह किरातों या गवरों की भांति पर्वतीय जाति थी। वनपर्व (१४०।२५) में पुलिन्दों, किरातों एवं तंगणों को हिमालयवासी कहा गया है। उशना
१५) ने पुलिन्द को वैश्य पुरुष एवं क्षत्रिय नारी की अवैव मन्नान कहा है और पशुओं को पालनेवाला एवं जंगली पशुओं को मारकर खानेवाला कहा है। यह बात वैखानस (? ०।१८) में भी है।
पुल्कस (पौल्कस)--यह पुकारा भी लिखा गया है। वृहदारण्यकोपनिषद्-माप्य (४।३।२२) में शंकराचार्य ने
३५. नाभेरूध्वं तु वपनं तस्मान्नापित उच्यते। उशना (३४)।
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