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१३.
धर्मशास्त्र का इतिहास ने कैवतं को निषाद एवं आयोगव की सन्तान माना है। इसे हो मनु ने मार्गव एवं दास (दाश ? ) भी कहा है। कैवर्त लोग नौका-वृत्ति करते हैं। शंकराचार्य (वेदान्तसूत्र २॥३॥४३) ने दाश एवं कैवर्त को समान माना है। जातकों में कैवर्त को केवत्त (केवट) कहा गया है।
कोलिक-व्यास ने इसे अन्त्यजों में गिना है। मध्यप्रदेश में कोलि एवं उत्तर प्रदेश में काल परिगणित जाति है।
सत्ता-वैदिक साहित्य में भी इसका उल्लेख है। बौधायन (१।९।७), कौटिल्य (३७), मनु (१०।१२, १३,१६), याज्ञवल्क्य (११९४) एवं नारद (स्त्रीपुंस, ११२) में इसे शूद्र पिता एवं क्षत्रिय माता की प्रतिलोम संतान कहा गया है। मनु (१०।४९-५०) इसके लिए उग्र एवं पुल्कस की वृत्ति की व्यवस्था करते हैं। वसिष्ठधर्ममृत (१८०२) में यह वैण कहा गया है। अमरकोश ने क्षत्ता के तीन अर्थ किये हैं-रथकार, द्वारपाल नथा इस नाम की जाति। छान्दोग्योपनिषद् (४११५,७,८) में इसे द्वारपाल कहा गया है। सह्याद्रिखण्ड (२६।६३-६६) में क्षत्ता को निषाद कहा गया है, जो जालों से पकड़ता है, जंगल में जंगली पशओं को मारता है तथा रात्रि मलोगों को जताने के लिए घण्टी बजाता है।।
खनक--वैखानस (१०।१५) के अनुसार यह आयोगव पुरुष एवं क्षत्रिय स्त्री की सन्तान है और खोदकर अपनी जीविका चलाता है।
खश या खस-मनु (१०।२२) के अनुसार इसका दूसरा नाम है करण। किन्तु मनु (१०।८३-८४) ने खशों को क्षत्रिय जाति का माना है, जो कालान्तर में संस्कारों एवं ब्राह्मणों के सम्पर्क के अभाव के कारण शूद्र की श्रेणी में आ गये। देखिए समापर्व (५२॥३) एवं उद्योगपर्व (१६०।१०३) ।
गृहक--सूतसंहिता के अनुसार यह श्वपच पुरुष एवं ब्राह्मण स्त्री की सन्तान है। गोज-(या गोद) उशना (२८-२९) के अनुसार यह क्षत्रिय पुरुष एवं स्त्री के गुप्त प्रेम का प्रतिफल है।
गोप--यह आज की ग्वाला जाति (गव्ली) एवं शूद्र उपजाति है। काममूत्र (११५१३७) न गोपालक जाति का उल्लेख किया है। याज्ञवल्क्य (२०४८) ने कहा है कि गोप-पत्नियों का ऋण उनके पतियों द्वारा दिया जाना चाहिए, क्योंकि उनका पेशा एवं कमाई इन स्त्रियों पर ही (उनकी पत्नियों पर ही) निर्भर होती है।
गोलक-ब्राह्मण पुरुष एवं विधवा ब्राह्मणी के चोरिका-विवाह (गप्त प्रेम) की सन्तान गोलक है। देखिए, मनु (३३१७४), लघु-शातातप (१०५), सूतसंहिता (शिव, १२।१२)।
चक्री--यह शूद्र पुरुष एवं वैश्य स्त्री की सन्तान (उशना २२-२३) है, और तेल, खली या नमक का व्यवसाय करती है। सम्भवतः यह तैलिक (तेली) जाति है। हारीत एवं ब्रह्मपुराण के अनुसार यह तिल का व्यवसाय करने वाली जाति है। वैग्वानस (१०।१३) के अनुसार यह जाति वश्य पुरुष एवं ब्राह्मणी के गुप्त प्रेम का प्रतिफल है, और नमक एवं तेल का व्यवसाय करती है।
चर्मकार--यह अन्त्यज है। विष्णुधर्मसूत्र (५१।८), आपस्तम्बधर्मसूत्र (१९३२), पराशर (६।४४) में इसका उल्लेख है। उशना ने इसे शूद्र एवं क्षत्रिय कन्या (४) की तथा वैदेहक एन ब्राह्मण कन्या (२१) की सन्तान माना है। दूसरी बात वैखानस (१०।१५) में भी पायी जाती है। मनु (१२१८) ने इसे चर्मावकर्ती माना है । कतिपय स्य॒त्यनुसार यह सात अन्त्यजों में एक है। सूतसंहिता के अनुसार यह ब्राह्मण स्त्री से आयोगव की सन्तान है। पश्चिमी भारत में इसे चाम्भार एवं अन्य प्रान्तों में चमार कहा जाता है। यही जाति मोची मी कही जाती है।
चाक्रिक--अमर ० के अनुसार यह घण्टी बजानेवाला व्यक्ति है। क्षीरस्वामी ने इसे राजा के आगमन पर घण्टी बजानेवाला और वंतालिक के सदृश कहा है; अपरार्क ने शंख (गद्य) और सुमन्तु का
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