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________________ वर्ण एवं स्मृतियों में वर्णित विभिन्न जातियाँ १२९ कारष--मनु (१०।२३) के अनुसार इसकी उत्पत्ति व्रात्य वैश्य एवं उसी के समान नारी के सम्मिलन से होती है। इस जाति को सुधन्वाचार्य, विजन्मन, मैत्र एवं सात्वत भी कहते हैं । किरात-वैदिक साहित्य (तैत्तिरीय ब्राह्मण ३।४।१२; अथर्ववेद १०।४।१४) में भी यह नाम आया है। ध्यास (१११०-११) ने इसे शूद्र की एक उपशाखा माना है। मनु (१०१४३-४४) के अनुसार यह शूद्र की स्थिति में आया हुआ क्षत्रिय है। यही बात अनुशासनपर्व (३५।१७-१८) में मेकलों, द्रविड़ों, लाटों, पौण्ड्रों, यवनों आदि के बारे में कही गयी है। कर्णपर्व (७३।२०) में किरात आग्नेय शक्ति के द्योतक माने गये हैं। आश्वमेधिक पर्व (७३।२५) में वर्णन है कि अर्जुन को अश्वमेधीय घोड़े के साथ चलते समय किरातों, यवनों एवं म्लेच्छों ने भेटें दी थीं। अमरकोश में किरात, शबर एवं पुलिन्द म्लेच्छ जाति की उपशाखाएँ कही गयी हैं। कुक्कुट--बौधायनधर्मसूत्र (१८१८ एवं १।८।१२) के अनुसार यह क्रम से प्रतिलोम जाति एवं शूद्र तथा निषाद स्त्री की सन्तान कही गयी है।" यही बात मनु (१०।१८) में भी है। कौटिल्य (३७) में यह उग्र पुरुष एवं निषाद की गन्तान है। शूद्रकमलाकर में उद्धृत आदित्यपुराण के अनुसार कुक्कुट तलवार तथा अन्य अस्त्रशस्त्र बनाता है और राजा के लिए मुर्गों की लड़ाई का प्रबन्ध करता है। कुण्ड-मनु (३।१७४) के अनुसार जीवित ब्राह्मण की पत्नी तथा किसी अन्य ब्राह्मण के गुप्त प्रेम से उत्पन्न सन्तान है। कुकुन्द-यह सूतसंहिता के अनुसार मागध एवं शूद्र नारी की सन्तान है। कुम्भकार--पाणिनि के कुलालादि गण (४।३।११८) में यह शब्द आया है। उशना (३२-३३) के अनुसार यह ब्राह्मण एवं वैश्य नारी के गुप्त प्रेम का प्रतिफल है। वैखानस (१०।१२) उशना की बात मानते हैं और कहते हैं कि ऐसी सन्तान कुम्भकार या नाभि के ऊपर तक बाल बनानेवाली नाई जाति होती है। व्यास (१११०-११), देवल आदि ने कुम्भकार को शूद्र माना है। मध्यप्रदेश में यह जाति परिगणित जाति है। कुलाल-वैदिक साहित्य (तैत्तिरीय ब्राह्मण ३४१) में यह वर्णित है। पाणिनि (४।३।११८) ने 'कुलालकम्' (कुम्हार द्वारा निर्मित) की व्युत्पत्ति समझायी है। आश्वलायनगृह्यसूत्र (४।३।१८) में ऐसा आया है कि एक मृत अग्निहोत्री के सभी मिट्टी के बरतन उसके पुत्र द्वारा संजोये जाने चाहिए। कुम्हारों के दो नाम अर्थात् कुम्भकार एवं कुलाल क्यों प्रसिद्ध हुए, यह अभी तक अज्ञात है। कुलिक-अपरार्क ने शंख द्वारा वर्णित इस जाति का नाम दिया है और इसे देवलक माना है। कुशीलव-बोधायन के अनुसार यह अम्बष्ठ पुरुष एवं वैदेहक नारी की सन्तान है। अमरकोश में इसे चारण कहा गया है। कौटिल्य (३७) ने इसे वैदेहक पुरुष एवं अम्बष्ठ नारी की सन्तान कहा है (बौधायन का सर्वथा विरोधी भाव)। कौटिल्य ने अम्बष्ठ पुरुष एवं वैदेहक नारी की सन्तान को वैण कहा है। रुत-गौतम (४।१५) के अनुसार वैश्य एवं ब्राह्मणी की सन्तान कृत है, किन्तु याज्ञवल्क्य (११९३) तथा अन्य लोगों के मत से इस जाति को वैदेहक कहा जाता है। कैवर्त-आसाम की एक घाटी में कैवर्त नामक एक परिगणित जाति है। इस विषय में ऊपर अन्त्यज के बारे में जो लिखा है उसे भी पढ़िए। मेधातिथि (मनु० १०।४) ने इसे मिश्रित (संकर) जाति कहा है। मनु (१०।३४) ३२. प्रसिलोमास्स्वायोगवमागवणक्षेत्रपुल्कसकुक्कुटबैदेहकचण्डालाः। निषादात्तु तृतीयायां पुल्कसः विपर्यये कुस्कुटः। बौ०५० सू० ११८८; ७११-१२; शूद्राभिषायां कुक्कुटः। बौ० १० सू० १२९।१५। धर्म० १७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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