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________________ वर्ण एवं स्मृतियों में वणित विभिन्न जातियों १३१ उल्लेख कर चाक्रिक और तैलिक को पृथक्-पृथक् उपजाति माना है। वैखानस (१०।१४) ने इसे शूद्र पुरुष एवं वैश्य नारी के प्रेम का प्रतिफल माना है और कहा है कि इसकी वृत्ति नमक, तेल एवं खली बेचना है। चाण्डाल--वैदिक साहित्य में इसका उल्लेख है (तैत्तिरीय ब्राह्मण ३।४।१४, ३।४।१७; छान्दोग्योपनिषद् ५।१०७) । गौतम (४।१५-१६), वशिष्ठधर्मसूत्र (१८११), बौधायनधर्मसूत्र (९१७), मनु (१०।१२), याज्ञवल्क्य (१।९३) एवं अनुशासनपर्व (४८।११) के अनुसार यह शूद्र द्वारा ब्राह्मणी से उत्पन्न प्रतिलोम सन्तान है। मनु (१०।१२) ने इसे निम्नतम मनुष्य माना है और याज्ञवल्क्य (१९३) ने सर्वधर्मबहिष्कृत घोषित किया है। यह कुत्तों एवं कौओं की श्रेणी में रखा गया है (आपस्तम्बधर्मसूत्र) २।४।९।५, गौतम १५।२५, याज्ञवल्क्य १।१०३)।" चाण्डाल तीन प्रकार के होते हैं (व्यासस्मृति ११९-१०)--(१) शूद्र एवं ब्राह्मणी से उत्पन्न सन्तान, (२) विधवा-सन्तान एवं (३) सगोत्र विवाह से उत्पन्न सन्तान। यम के अनुसार निम्न प्रकार प्रख्यात हैं--(१) संन्यासी होने के अनन्तर पुनः गृहस्थ होने पर यदि पुत्र उत्पन्न हो तो पुत्र चाण्डाल होता है, (२) सगोत्र कन्या से उत्पन्न सन्तान, एवं (३) शूद्र एवं ब्राह्मणी से उत्पन्न सन्तान । लघुसंहिता (५९) में भी यही बात पायी जाती है। मनु (१०५१-५६) में आया है कि चाण्डालों एवं श्वपचों को गाँव के बाहर रहना चाहिए, उनके बरतन अग्नि में तपाने पर भी प्रयोग में नहीं लाने चाहिए. उनकी सम्पत्ति कुत्ते एवं गदहे हैं, शवों के कपड़े ही उनके परिधान हैं, उन्हें टूटे-फूटे बरतन में ही भोजन करना चाहिए, उनके आभूषण लोहे के होने चाहिए, उन्हें लगातार घूमते रहना चाहिए, रात्रि में वे नगर या ग्राम के भीतर नहीं आ सकते, उन्हें बिना सम्बन्धियों वाले शवों को ढोना चाहिए, वे राजाज्ञा से जल्लाद का काम करते हैं, वे फाँसी पानेवाले व्यक्तियों के परिधान, गहने एवं शैया ले सकते हैं। उशना (९-१०), विष्णुधर्मसूत्र (१६।११. १४). शान्तिपर्व (१४१।२९-३२) में कुछ इसी प्रकार का वर्णन है। फाहियान (४०५४११ ई.) ने भी चाण्डालों के विषय में लिखा है कि जब वे नगर या बाजार में घुसते थे तो लकड़ी के किसी टुकड़े (डंडे ) से ध्वनि उत्पन्न करते चलते थे, जिससे कि लोगों को उनके प्रवेश की सूचना मिल जाय और स्पर्श न हो सके। चीन--मनु (१०।४३-४४) के अनुसार यह शूद्रों की स्थिति में उतरा हुआ क्षत्रिय है। सभापर्व (५१।२३), वनपर्व (१७७।१२) एवं उद्योगपर्व (१९।१५) में भी इसका उल्लेख हुआ है। चूञ्च--मनु (१०।४८) के अनुसार मेद, अन्ध्र, चुञ्चु एवं मद्गु की वृत्ति है जंगली पशुओं को मारना। कुल्लूक ने चूञ्चु को ब्राह्मण एवं वैदेहक नारी की सन्तान कहा है। चूचक--वैखानस (१०।१३) के अनुसार यह वैश्य पुरुष एवं शूद्र नारी की सन्तान है, और इसका व्यवसाय है पान, चीनी आदि का कय-विक्रय। चैलनिर्णेजक (या केवल निर्णेजक)--यह धोबी है (विष्णुधर्ममूत्र ५१११५, मनु ४।२१६)। विष्णु ने अलग से रजक का उल्लेख किया है। हारीत ने लिखा है कि रजक कपड़ा रंगने (रंगरेज) का काम करता है और निर्णेजक कपड़ा घोने का कार्य करता है। जालोपजीवी--यह कैवर्त के समान जाल द्वारा पशुओं को पकड़ने का व्यवसाय करता है। हारीत ने इसके विषय में लिखा है। ३३. व्यंगाः पतितचंडालग्राम्यसूकरकुक्कुटाः। श्वा च नित्यं विवाः स्युः परते धर्मतः समाः ॥ देवल (पराशरमाधवीय में उद्धृत)। ३४. देखिए, 'रिकार्ड्स आफ बुद्धिस्ट किंग्डम्स', लंग द्वारा अनूबित, प.० ४३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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