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________________ वर्ण एवं स्मृतियों में वर्णित विभिन्न जातियां १२७ यह शूद्र पुरुष तथा वैश्य नारी से उत्पन्न प्रतिलोम सन्तान है, किन्तु बौधायनधर्मसूत्र (१।९।७), उशना (१२), वैखानस (१०।१४) के अनुसार यह वैश्य पुरुष एवं क्षत्रिय नारी से उत्पन्न प्रतिलोम सन्तान है। भनु (१०।४८) के अनुसार आयोगव की वृत्ति लकड़ी काटना है तथा उशना के अनुसार यह जुलाहा है या ताम्र-कांस्यकार है, या वान उत्पन्न करनेवाला है, या कपड़े का व्यापारी है। विष्णुधर्मसूत्र (१६१८) एवं अग्निपुराण (११५।१५) के अनुसार यह अभिनय-वृत्ति करता है। सह्याद्रिखण्ड (२६।६८-६९) से पता चलता है कि यह पत्थरों, ईंटों का काम करता है, फर्श बनाता है तथा दीवारों पर चूना लगाता है। यह दक्षिण में आजकल पाथर्वट कहलाता है। आवन्त्य--यह भूर्जकण्ट (मनु १०।२१) के समान है। आश्विक--वैखानस (१०।१२) के अनुसार यह क्षत्रिय पुरुष एवं वैश्य नारी के गुप्त प्रेम का प्रतिफल है आर घोड़ों का व्यापार करता है। ___ आहिण्डिक--मन (१०।२७) के अनुसार यह निषाद पुरुष एवं वैदेही नारी की सन्तान है अर्थात् दोहरी प्रतिलोम जाति का है। मनु (१०।३६) ने इसे ही चर्मकार का कार्य करने के कारण कारावर कहा है। कुल्लूक ने उशना के मत का उल्लेख करते हए इसे बन्दीगृह में आक्रामकों से बन्दियों की रक्षा करनेवाला कहा है। उन- इसको चर्चा वैदिक साहित्य में भी है (छान्दोग्य ५।२४।४; बृहदारण्यकोपनिषद् ३१८।२ तथा ४।३।२२)। बांधायनधमंगूत्र (१९९५), भनु (१०।९), कौटिल्य (३।७), याज्ञवल्क्य (११९२), अनुशासनपर्व (४८१७) के अनुसार यह क्षत्रिय पुरुष एवं शूद्र नारी से उत्पन्न अनुलोम सन्तान है। किन्तु उशना (?) ने इसे ब्राह्मण पुरुष एवं शूद्र नारी की सन्तान कहा है । गौतम (४११४) की व्याख्या करते हुए हरदत्त ने उन को वैश्य एवं शूद्रा नारी की सन्तान कहा है। मनु (१०।४९) के अनुसार उग्र बिलों में रहनेवाले जीवों को मारकर खानेवाले मनुष्य हैं, किन्तु उशना (४१) के अनुसार ये राजदण्ड को ढोते हैं, जल्लाद का कार्य करते है। सह्याद्रिखण्ड एवं शूद्रकमलाकर में उग्र को 'गजपूत' कहा गया है। जातिविवेक में वह 'रावत' भी कहा गया है। उद्वन्धक--उशना (१५) के अनुसार यह एक मूनिक एवं क्षत्रिया नारी की सन्तान है, कपड़ा स्वच्छ करने को वृत्ति करता है और अरपृश्य है। वैखानस (१०।१५) के अनुसार यह एक खनक एवं क्षत्रिया नारी की सन्तान है। उपक्रुष्ट--आश्वलायनश्रौतसूत्र (२१) के अनुसार यह द्विजाति नहीं है, किन्तु अग्न्याधान नामक वैदिक क्रिया कर सकता है। इसके भाष्य में लिखा है कि यह बढ़ई की वृत्ति करनेवाला वैश्य है। ओड़--मनु (१०।४३-४४) को देखिए। ओड्र आधुनिक उड़ीसा को कहते हैं। कटकार--यह उशना (४५) एवं वैखानस (१०।१३) के अनुसार वैश्य पुरुष एवं शूद्र नारी के चोरिक विवाह (गुप्त सम्बन्ध) से उत्पन्न सन्तान है। करण--यह गौतम (४।१७) एवं याज्ञवल्क्य (११९२) के अनुसार वैश्य पति एवं शूद्र पत्नी का अनुलोम पुत्र है। मनु (१०।२२) ने लिखा है कि एक क्षत्रिय व्रात्य (जिसका उपनयन संस्कार नहीं हुआ है) का उसी प्रकार की नारी से जब सम्बन्ध होता है तो उसकी सन्तान को झल्ल; मल्ल, निच्चिवि (लिच्छवि ?), नट, करण, खश, द्रविड़ कहते हैं। आदिपर्व (११५।४३) के अनुसार धृतराष्ट्र की वैश्य नारी से युयुत्सु नामक एक करण सन्तान थी। अमरकोश की व्याख्या करते समय क्षीरस्वामी ने कहा है कि करण कायस्थों एवं अध्यक्षों के समाज, राजकर्मचारियों के एक दल का परिचायक है। सह्याद्रिखण्ड (२६।४९-५१) के अनुसार करण चारण सा वैतालिक के समान है जो ब्राह्मणों एवं राजाओं का स्ततिगान करता है और काम-सम्बन्धी विज्ञान का अध्ययन करता है। कर्मकार-विष्णुधर्मसूत्र (५१३१४) में यह जाति वणित है। सम्भवतः यह कार ही है। किन्तु शंख ने दोनों को पृथक्-पृथक् लिखा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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