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धर्मशास्त्र का इतिहास
आम्बष्ठ्य ( राजा ? ) शब्द को अम्बष्ठ ( एक देश ) से सिद्ध किया है। अम्बष्ठों की जाति किसी देश से सम्बन्धित है कि नहीं, यह एक प्रश्न है । कर्णपर्व ( ६ । ११ ) में एक अम्बष्ठ राजा का वर्णन है। बौधायनधर्मसूत्र ( १/९/३ ) मनु ( १०१८ ), याज्ञवल्क्य (१।९१), उशना (३१), नारद ( स्त्रीपुंस, ५।१०७ ) में अम्बष्ठ ब्राह्मण एवं वैश्य नारी की अनुलोम सन्तान कहा गया है। गौतम ( ४ । १४ ) की व्याख्या करते हुए हरदत्त ने अम्बष्ठ को क्षत्रिय एवं वैश्य नारी की सन्तान कहा है । मनु ( १०/४७ ) ने अम्बष्ठों के लिए दवा-दारू का व्यवसाय बताया है तथा उगना ( ३१-३२) ने उन्हें कृषक या आग्रेयनर्तक या ध्वजविश्रावक या शल्यजीवी (चीर-फाड़ करनेवाला ) कहा है। १७ हरदत्त ने आपस्तम्बधर्मसूत्र ( १।६।१९।१४ ) की व्याख्या करते हुए अम्बष्ठ और शल्यकृत् को समानार्थक माना है । बंगाल के वैद्य मनु के अम्बष्ठ ही हैं । "
अयस्कार -- ( लोहार) वैदिक साहित्य में 'अयस्ताप' (अयस् को गर्म करनेवाला) शब्द मिलता है। आगे के कर्मकार एवं कर्मार शब्द भी देखिए । पतञ्जलि ( पाणिनि २|४|१० पर) ने अयस्कार को तक्षा के साथ शूद्र कहा है।
अवरीट -- अपरार्क द्वारा उद्धृत देवल के कथन से पता चलता है कि यह एक विवाहित स्त्री तथा उसी जाति के किसी पुरुष के गुप्त प्रेम की सन्तान तथा शूद्र है। शूद्रकमलाकर में भी यही बात पायी जाती है ।
अविर -- सूतसंहिता के अनुसार यह एक क्षत्रिय पुरुष एवं वैश्य स्त्री के गुप्त प्रेम का प्रतिफल है। आपीत -- सूतसंहिता के अनुसार यह एक ब्राह्मण एवं दौष्यंती की सन्तान है ।
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आभीर -- मनु (१०।१५ ) के अनुसार यह एक ब्राह्मण एवं अम्बष्ठ कन्या की सन्तान है। महाभारत (मौसलपर्व ७।४६-६३ एवं ८।१६-१७) में आया है कि आमीर दस्यु एवं म्लेच्छ हैं, जिन्होंने पंचनद के युद्ध के उपरान्त अर्जुन पर आक्रमण किया और वृष्णि-नारियों को उठा ले गये । सभापर्व (५१।१२ ) में आभीर पारदों के साथ वर्णित . आश्वमे ० पर्व (२९।१५-१६) का कथन है कि आमीर, द्रविड़ आदि ब्राह्मणों से सम्बन्ध न रहने पर शूद्र हो गये। महाभाष्य में वे शूद्रों से पृथक् माने गये हैं। कामसूत्र (५/५/३०) ने कोट्टराज नामक आभीर राजा का उल्लेख किया है । अपने काव्यादर्श (१/३६ ) में दण्डी ने अपभ्रंश को आभीरों की भाषा कहा है। अमरकोश में आभीर गाय चरानेवाले कहे गये हैं और महाशूद्र की आभीर पत्नी को आभीरी कहा गया है। कालान्तर में आभीर हिन्दू समाज में ले लिये गये, जैसा कि कुछ शिलालेखों से पता चलता । रुद्रभूति नामक एक आभीर सेनापति ने सन् १८१-८२ ई० में रुद्रदामन के पुत्र रुद्रसिंह के शासन काल में एक कूप बनवाया (एपिग्रैफिया इण्डिका, जिल्द १६, पृ० २३५ ) । नासिक की गुफा के १५ वें उत्कीर्ण अभिलेख से पता चलता है कि ईश्वरसेन नामक एक आभीर राजा था, जो आभीर शिवदत्त एवं माठरी ( माठर गोत्र वाली ) का पुत्र था। आजकल आभीर को अहीर कहा जाता है। "
आयोग — वैदिक साहित्य में 'आयोग' शब्द आया है ( तैत्तिरीय ब्राह्मण ३|४|१) । गौतम (४।१५), विष्णुधर्मसूत्र (१६/४), मनु (१०।१२), कौटिल्य (३७), अनुशासनपर्व (४८।१३ ) तथा याज्ञवल्क्य ( ११९४ ) के अनुसार
२७. कृष्णाजीवो भवेत्तस्य तथैवाग्नेयनर्तकः । ध्वजविभावका वापि अम्बष्ठाः जीविनः ? ) ।। उशना ३१-३२ ।
२८. देखिए, रिसली की 'पीपुल आफ इण्डिया, पू० ११४ ।
२९. देखिए J. B. BRA, Sजि० २१ पृ० ४३०, ४३३, एन्थोवेन को 'ट्रिब्स एण्ड कास्ट आफ बाम्बे', जि० १० पू० १७ ॥
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शस्त्रजीविनः (शल्य
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