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________________ रघुनन्दन, नारायण भट्ट, टोडरानन्द ९१ उनका एक भाष्य है। तीर्थतत्त्व, द्वादशयात्रातत्त्व, त्रिपुष्करशान्ति तत्त्व, गया श्राद्धपद्धति, रासयात्रापद्धति आदि उनके अन्य ग्रन्थ हैं । रघुनन्दन के ग्रन्थ अधिकतर बंगाल में ही उपलब्ध होते हैं । रघुनन्दन बन्धघटीय ब्राह्मण हरिहर भट्टाचार्य के सुपुत्र थे। ऐसी किंवदन्ती है कि रघुनन्दन एवं वैष्णव सन्त चैतन्य महाप्रभु दोनों वासुदेव सार्वभौम के शिष्य थे । वासुदेव सार्वभौम नव्यन्याय के प्रसिद्ध प्रणेता कहे जाते हैं । यदि यह बात सत्य है तो रघुनन्दन लगभग १४९० ई० में उत्पन्न हुए होंगे, क्योंकि चैतन्य महाप्रभु का जन्म १४८५-८६ ई० में हुआ था। वे सम्भवतः १४९० - १५७० के मध्य में उपस्थित थे, ऐसा कहना सत्य से दूर नहीं है । १०३. नारायण भट्ट नारायण भट्ट बनारस (वाराणसी) के प्रसिद्ध भट्टकुल के सर्वश्रेष्ठ लेखक माने जाते हैं। नारायण भट्ट के पिता रामेश्वर भट्ट प्रतिष्ठान ( पैठन) से बनारस आये थे । रामेश्वर भट्ट बड़े विद्वान् थे । उनकी विद्वत्ता से आकृष्ट होकर दूर-दूर से शिष्यगण आया करते थे । नारायण भट्ट के पुत्र शंकर भट्ट ने अपने पिता का जीवन चरित्र लिखा है, जिसके अनुसार उनका जन्म १५१३ ई० में हुआ था । नारायण भट्ट अपने पिता के समान बड़े पण्डित हो गये। धीरे-धीरे मट्ट-कुल बहुत ही प्रसिद्ध हो गया । नारायण भट्ट को जगद्गुरु की पदवी मिल गयी थी । मट्टकुल की परम्पराओं के कारण ही बनारस में दक्षिणी ब्राह्मण इतने प्रतिष्ठित हो सके और उनका लोहा सभी मानने लगे। नारायण भट्ट ने धर्मशास्त्र सम्बन्धी बहुत-से ग्रन्थ लिखे हैं, जिनमें अन्त्येष्टिपद्धति, त्रिस्थलीसेतु, ( प्रयाग, काशी तथा गया नामक तीर्थों के विषय में ) एवं प्रयोगरत्न बहुत ही प्रसिद्ध हैं । अन्तिम पुस्तक में वर्णन है। उन्होंने कई एक भाष्य भी लिखे हैं । नारायण भट्ट ने लेखकों को प्रभावित किया। उनकी कृतियों का काल १५४० से गर्भाधान से विवाह तक के सारे संस्कारों का अपने पुत्रों एवं पौत्रों द्वारा सारे भारतवर्ष के १५७० तक माना जाता हैं । १०४. टोडरानन्द अकबर बादशाह के वित्तमंत्री राजा टोडरमल ने धन एवं धर्म सम्बन्धी व्यवहार, ज्योतिष एवं औषधि पर एक बृहद् ग्रन्थ लिखा है। टोडरमल ( टोडरानन्द) के विश्वकोश के कतिपय भाग, यथा - आचार, व्यवहार, दान, श्राद्ध, विवेक, प्रायश्चित्त, समय आदि सौख्य के नाम से विख्यात हैं। किसी एक सौख्य का कुछ संक्षिप्त विवरण दे देना अनुचित न होगा । व्यवहारसौख्य शिव की अभ्यर्थना से आरम्भ होकर पारसीक सम्राट् ( (अंकबर) के विषय में चर्चा करता और व्यवहार विधि के विभिन्न अंगों पर प्रकाश डालता है, यथा—कलहों के प्रति राजा के कर्तव्य, सभा, प्राड्विवाक, 'व्यवहार' शब्द का अर्थ, १८ व्यवहारपदों की परिगणना, व्यवहार के लिए समय एवं स्थान, अभियोग (भाषा), उत्तर, प्रतिनिधि, प्रत्याकलित आदि । प्रमुख स्मृतियों के अतिरिक्त कल्पतरु, पारिजात, भवदेव, मिताक्षरा, रत्नाकर, हरिहर एवं हलायुध का उल्लेख टोडरानन्द ने किया है । ग्रन्थ के कतिपय प्रकरण 'हर्ष' कहे गये हैं । विवाहसौख्य में २३ निबन्धकारों एवं निबन्धों के नाम आये हैं। श्राद्धसौख्य में श्राद्ध सम्बन्धी बातें हैं। ज्योतिःसौख्य में ज्योतिष सम्बन्धी विवेचन है और ग्रहों, नक्षत्रों, राशियों की व्याख्या है । ज्योतिः सौख्य की रचना सन् १५७२ ई० में हुई थी । टोडरमल, निस्सन्देह एक महान् विद्वान् ग्रन्थकार थे । वे एक कुशल सेनापति, मंत्री एवं राजनीतिज्ञ थे । वे जाति के खत्री थे । उनका जन्म अवध इलाके के लहरपुर में हुआ था और मृत्यु सन् १५८९ ई० में लाहौर में हुई । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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