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________________ धर्मशास्त्र का इतिहास १०५. नन्द पण्डित नन्द पण्डित धर्मशास्त्र पर विस्तारपूर्वक लिखनेवाले एक धुरन्धर लेखक थे। उन्होंने पराशरस्मृति पर विद्वन्मनोहरा नामक टीका लिखी है। उन्होंने अपने भाष्य में लिखा है कि उन्होंने माधवाचार्य का सहारा लिया है। उन्होंने विज्ञानेश्वर की मिताक्षरा पर एक संक्षिप्त भाष्य लिखा, जिसे प्रमिताक्षरा या प्रतीताक्षरा कहा जाता है। उन्होंने अपनी शुद्धिचन्द्रिका एवं वैजयन्ती में श्राद्धकल्पलता नामक कृति की चर्चा की है। उन्होंने गोविन्दपण्डित की श्राद्धदीपिका के ऋण का उल्लेख किया है। वे साधारण (सहारनपुर ? ) के सहगिल कुल के परमानन्द के आश्रित थे। स्मृतियों पर उनका एक निवन्ध स्मृतिसिन्धु है, जिस पर लगता है, उन्होंने स्वयं तत्त्वमुक्तावली नामक टीका लिखी । नन्द पण्डित की एक प्रसिद्ध पुस्तक है वैजयन्ती या केशव - वैजयन्ती । यह विष्णुधर्मसूत्र पर एक भाष्य है । यह भाष्य उन्होंने अपने आश्रयदाता केशव नायक के आग्रह पर लिखा था, इसी से इसे केशव - वैजयन्ती भी कहा जाता है। वैजयन्ती में उनके छः ग्रन्थों का उल्लेख हुआ है, यथा--- विद्वन्मनोहरा, प्रमिताक्षरा, श्राद्धकल्पलता, शुद्धि चन्द्रिका, दत्तकमीमांसा । आधुनिक हिन्दू कानून की बनारसी शाखा में वैजयन्ती का प्रमुख हाथ रहा है। नन्द पण्डित ने यद्यपि मिताक्षरा का अनुसरण किया है, किन्तु उन्होंने स्थान-स्थान पर इसके लेखक विज्ञानेश्वर का खण्डन भी किया है। नन्द पण्डित की सबसे प्रसिद्ध पुस्तक है दत्तक-मीमांसा, जिसमें गोद लेने पर पूर्ण विवेचन है । इस पुस्तक की चर्चा आधुनिक युग में पर्याप्त रूप से हुई है । अंग्रेजी प्रभुत्व के काल में प्रिवी कौंसिल तक इसका हवाला दिया जाता रहा है। नन्द पण्डित के जीवनचरित के विषय में हमें कुछ संकेत मिलता है। नन्द पण्डित दक्षिणी थे और उनके पूर्वपुरुष दक्षिण से ही बनारस आये थे। नन्द पण्डित कभीकभी बहुत-से आश्रयदाताओं के यहाँ आते-जाते रहते थे, जैसा कि उनकी कतिपय कृतियों के लेखन - स्थान से पता चलता है। उन्होंने साधारण (सहारनपुर ? ) के सहगिल कुल के परमानन्द के आग्रह पर श्राद्धकल्पलता का, महेन्द्रकुल के हरिवंशवर्मा के आग्रह पर स्मृतिसिन्धु का एवं मधुरा ( मदुरा ) के केशव वैजयन्ती का प्रणयन किया। श्री मण्डलिक के मतानुसार उन्होंने १३ पुस्तकें लिखी हैं। नायक के आग्रह पर ९२ नन्द पण्डित की वैजयन्ती, सम्भवतः, उनकी अन्तिम कृति थी। इसकी रचना बनारस में सन् १६२३ ई० में हुई । अनुमान के आधार पर कहा जा सकता है कि उनकी कृतियों का रचनाकाल १५९५ ई० से १६३० ई० तक है। १०६. कमलाकर भट्ट कमलाकर भट्ट भट्ट-कुल के प्रसिद्ध भट्टों में गिने जाते हैं। वे नारायण भट्ट के पुत्र रामकृष्ण भट्ट के पुत्र थे। कमलाकर भट्ट बड़े ही उद्भट विद्वान् थे। उन्होंने सभी शास्त्रों पर कुछ-न-कुछ अवश्य लिखा । वे तर्क, न्याय, व्याकरण, मीमांसा ( कुमारिल एवं प्रभाकर की दोनों शाखाओं में ), वेदान्त, साहित्य-शास्त्र, धर्मशास्त्र एवं वैदिक यज्ञों के मर्मज्ञ थे। उनके विवादताण्डव में यह उल्लिखित है कि उन्होंने कुमारिल - कृत मीमांसा ( शास्त्रतत्त्व ) के वार्तिक पर निर्णयसिन्धु नामक एक भाष्य लिखा। इसके अतिरिक्त उन्होंने २० पुस्तकें लिखीं, ऐसा भी विवादताण्डव में आया है। कहीं-कहीं उनके २२ ग्रन्थ भी उपलब्ध हैं। इनमें आधी पुस्तकों का सम्बन्ध है धर्मशास्त्र-सम्बन्धी बातों से, यथा — निर्णयसिन्धु, दानकमलाकर, शान्तिरत्न, पूर्तकमलाकर, व्रतकमलाकर, प्रायश्चित्तरत्न, विवादताण्डव, बह्वचाह्निक, गोत्रप्रवरदर्पण, कर्मविपाकरत्न, शूद्रकमलाकर, सर्वतीर्थविधि । इनमें शूद्रकमलाकर, विवादताण्डव एवं निर्णयसिन्धु अति ही प्रसिद्ध रहे हैं। इन कृतियों का वर्णन करना यहाँ सम्भव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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