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धर्मशास्त्र का इतिहास नृसिंहप्रसाद में बहुत-से लेखकों एवं ग्रन्थों के नाम आये हैं। इसमें माधवीय एवं मदनपारिजात के अधिक उद्धरण मिलते हैं, अतः यह महाग्रन्थ १४०० ई० के उपरान्त ही प्रणीत हुआ होगा। शंकर भट्ट के द्वैतनिर्णय एवं नीलकण्ठ के मयूखों में यह ग्रन्थ प्रामाणिक माना गया है, अत: यह १५७५ ई० के पूर्व ही रचा गया होगा। विद्वानों के मत से यह १५१२ ई० के बाद की रचना नहीं हो सकती। अहमद निजामशाह (१४९०-१५०८ ई०) या उसके पुत्र बुर्हान निजामशाह (१५०८-१५३३ ई.) के समय में, और सम्भवतः प्रथम निजामशाह के शासनकाल में ही दलपति (?) ने नृसिंहप्रसाद की रचना की।
१००. प्रतापरुद्रदेव उड़ीसा में कटक नगरी (कटक) के गजपति कुल के राजा प्रतापरुद्रदेव ने सरस्वतीविलास नामक ग्रन्थ का सम्पादन किया। दक्षिण में सरस्वतीविलास का प्रभूत महत्त्व है, किन्तु इसका स्थान मिताक्षरा से नीचे है। इसमें मुख्य स्मृतियों एवं स्मृतिकारों के अतिरिक्त लगभग ३० अन्य प्रसिद्ध नाम आते हैं।
प्रतापरुद्रदेव ने १४९७ ई० से १५३९ ई० तक राज्य किया, अतः सरस्वतीविलास का प्रणयन १६वी शताब्दी के प्रथम चरण में हुआ होगा।
१०१, गोविन्दानन्द ___ गोविन्दानन्द ने कई ग्रन्थ लिखे हैं, जिनमें दानकौमुदी, शुद्धिकौमुदी, श्राद्धकौमुदी एवं वर्षक्रियाकौमुदी अति प्रसिद्ध हैं। अन्तिम ग्रन्थ में तिथिनिर्णय, व्रतों आदि के दिनों का विवेचन है। लगता है, गोविन्दानन्द के सभी ग्रन्थ क्रियाकौमुदी नामक निबन्ध के कतिपय प्रकरण मात्र हैं। गोविन्दानन्द ने श्रीनिवास की शुद्धिदीपिका एवं शूलपाणि की तत्त्वार्थकौमुदी के भाष्य भी लिखे हैं। इन्होंने बहुत-से लेखकों एवं पुस्तकों के उद्धरण दिये हैं, अतः इनका ग्रन्थ बहुत महत्त्वपूर्ण है। ये गणपति भट्ट के पुत्र थे और इनकी पदवी थी कविकंकणाचार्य। ये बंगाल के मिदनापुर जिले के बाग्री नामक स्थान के निवासी वैष्णव थे।
. गोविन्दानन्द ने मदनपारिजात, गंगारत्नावलि, रुद्रधर एवं वाचस्पति के नाम एवं उद्धरण लिये है, अतः वे १५वीं शताब्दी के उपरान्त हुए होंगे। रघुनन्दन ने अपने मलमासतत्त्व एवं आह्निकतत्त्व में उन्हें उल्लिखित किया है, अतः वे १५६० ई० के बाद नहीं जा सकते। उनकी शुद्धिकौमुदी में शकाब्द १४१४ से १४५७ तक के मलमासों का वर्णन है, अर्थात् उनमें १४९२ ई० से १५३५ ई० की चर्चा है। अतः स्पष्ट है कि उन्होंने १५३५ ई. के उपरान्त ही अपना ग्रन्थ लिखा। गोविन्दानन्द की साहित्यिक कृतियों का समय १५०० से १५४० ई० तक माना जा सकता है।
१०२. रघुनन्दन रघुनन्दन बंगाल के अन्तिम बड़े धर्मशास्त्रकार हैं। उन्होंने २८ तत्त्वों वाला स्मृतितत्त्व नामक धर्मशास्त्रसम्बन्धी बृहद् ग्रन्थ लिखा। उन्होंने अपने इस विश्वकोश-रूपी ग्रन्थ में लगभग ३०० लेखकों एवं ग्रन्थों के नाम
। कालान्तर में स्मति-सम्बन्धी अपनी विद्वत्ता के कारण वे स्मार्तभद्राचार्य के नाम से विख्यात हो गये। वीरमित्रोदय एवं नीलकण्ठ ने उन्हें स्मार्त नाम से पुकारा है। रघुनन्दन के विश्वकोश का संक्षिप्त विवरण देना यहाँ सम्भव नहीं है। स्मृतितत्त्व (२८ तत्त्वों) के अतिरिक्त रघुनन्दन ने अन्य ग्रन्थ भी लिखे हैं। दायभाग पर
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