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________________ मदनपाल एवं विश्वेश्वर भट्ट, मदनरत्न, शूलपाणि अन्य के कई स्थलों से प्रकट हो जाता है। इसके लेखक विश्वेश्वर भट्ट थे, इसमें कोई सन्देह नहीं है। इसमें ९ स्तवक (टहनियाँ या अध्याय) हैं, यथा ब्रह्मचर्य, गृहस्थधर्म, आह्निक कृत्य, गर्भाधान से लेकर आगे के संस्कार, जन्म-मरण पर अशुद्धि, द्रव्य-शुद्धि, श्राद्ध, दायभाग एवं प्रायश्चित्त। दायभाग के अध्याय में यह ग्रन्थ मिताक्षरा से बहुत मिलता-जुलता है। इसकी शैली सरल एवं मधुर है। इसमें हेमाद्रि, कल्पवृक्ष (कल्पतरु), अपरार्क, स्मृतिचन्द्रिका, मिताक्षरा, आचारसागर, गांगेय, गोविन्दराज, चिन्तामणि, धर्मविवृति, नारायण, मण्डन मिश्र, मेधातिथि, रत्नावलि, शिवस्वामी, सुरेश्वर, स्मृतिमंजरी एवं स्मृतिमहार्णव के नाम आये हैं। विद्वानों का मत है कि मदनपाल के आश्रय में तिथिनिर्णयसार, स्मृतिकौमुदी, स्मृतिमहार्णव नामक ग्रन्थों का प्रणयन विश्वेश्वर भट्ट ने ही किया। विश्वेश्वर भट्ट ने धर्मशास्त्र-सम्बन्धी 'सुबोधिनी' नामक एक अन्य ग्रन्थ लिखा। यह सुबोधिनी विज्ञानेश्वर की मिताक्षरा की टीका मात्र है। विश्वेश्वर भट्ट द्रविड़ देश के निवासी थे। सुबोधिनी के लेखन के उपरान्त सम्भवतः वे उत्तर भारत में चले आये। आधुनिक हिन्दू कानून की बनारसी शाखा के विश्वेश्वर भट्ट एक नामी प्रामाणिक लेखक माने जाते हैं। दिल्ली के उत्तर यमुना के सन्निकट काष्ठा (कठ) के टाक राजवंश में मदनपाल हुए थे। मदनपाल ने सम्भवतः स्वयं भी कुछ लिखा। उनका एक ग्रन्थ सूर्यसिद्धान्तविवेक नाम से प्रसिद्ध है, जिसमें वे सहारण (साधारण) के पुत्र कहे गये हैं। मदनपाल राजा भोज की भाँति एक महान् साहित्यिक थे, इसमें कोई मन्देह नहीं है। उन्होंने मदनविनोद निघण्टु नामक एक ओषधि-ग्रन्थ भी लिखा है। यह एक विशाल ग्रन्थ है। इसी प्रकार मदनपाल आनन्दसंजीवन (नृत्य, संगीत, राग-रागिनी आदि पर) नामक ग्रन्थ के भी प्रणेता कहे जाते हैं। मदनपाल के कुछ ग्रन्थों की प्रतिलिपि सन् १४०२-३ ई० में की गयी थी। मदनपारिजात में हेमाद्रि की चर्चा हुई है, अत: वे १३०० ई० के उपरान्त ही हुए होंगे। मदनपारिजात का उल्लेख रघुनन्दन की पुस्तकों में हुआ है अत: मदनपाल १५०० ई० के पूर्व ही हुए होंगे। स्पष्ट है, मदनपाल और विश्वेश्वर भट्ट १४वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में कभी हुए होंगे। अतः सम्भवतः हम उन्हें १३६०-१३९० के आसपास रख सकते हैं। ९४. मदनरत्न ___ मदनरत्न (मदनरत्नप्रदीप या मदनप्रदीप) एक बृहद् निबन्ध है। इसमें सात उद्योत (प्रकरण या भाग) हैं, यथा--समय (काल), आचार, व्यवहार, प्रायश्चित्त, दान, शुद्धि एवं शान्ति। मदनरत्न की हस्तलिखित प्रतियों से विदित होता है कि यह शक्तिसिंह के पुत्र मदनसिह के आश्रय में प्रणीत हुआ था। समयोद्योत में दिल्ली देश के महीपालदेव का नाम आता है और उन्हीं के कुल में उनसे छठी पीढ़ी में मदनसिंह हुए थे। मदनरत्न में ऐसा आया है कि मदनसिंह ने रत्नाकर, गोपीनाथ, विश्वनाथ एवं गंगाधर को बुलाकर इस निबन्ध के प्रणयन का भार उन पर सौंप दिया। एक प्रति के शान्त्युद्योत में इसके लेखक का नाम विश्वनाथ कहा गया है। यही बात प्रायश्चित्तोद्योत में भी पायी जाती है। मदनरत्न में मिताक्षरा, कल्पतरु एवं हेमाद्रि के नाम उल्लिखित है, अतएव यह १३०० ई० के उपरान्त ही प्रणीत हुआ होगा। १६वीं एवं १७वीं शताब्दी के नारायण भट्ट, कमलाकर भट्ट, नीलकण्ठ एवं मित्रमिश्र ने इसका उल्लेख किया है। अतः मदनरत्न की रचना सन् १३५०-१५०० ई० के बीच कभी हुई होगी। ९५. शूलपाणि बंगाल के धर्मशास्त्रकारों में जीमूतवाहन के उपरान्त शूलपाणि का ही नाम लिया जाता है। शूलपाणि Jain Education International For Private & Personal Use Only Education International www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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