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________________ ८६ धर्मशास्त्र का इतिहास उपरान्त उन्हीं का स्थान है। उन्होंने अपने भाई सायण तथा अन्य लोगों को संस्कृत-साहित्य में बृहद ग्रन्थों के प्रणयन के लिए उद्वेलित किया। वे क्या नहीं थे? प्रकाण्ड विद्वान्, दूरदर्शी राजनीतिज्ञ, विजयनगर राज्य के आरम्भिक दिनों के स्तम्भ, वृद्धावस्था में एक पहुँचे हुए संन्यासी और दिन-रात उत्तम कार्य में संलग्न माधवाचार्य जी हमारे लिए एक विलक्षण उदाहरण हैं। उनकी अन्यतम कृतियों में हम यहाँ दो के नाम लेंगे; पराशरमाधवीय एवं कालनिर्णय। पराशरमाधवीय का प्रकाशन कई बार हो चुका है। यह केवल पराशरस्मृति पर एक भाष्य ही नहीं है, प्रत्युत आचार-सम्बन्धी निबन्ध भी है। दक्षिणावर्तीय भारत के व्यवहारों में पराशरमाधवीय का प्रभूत महत्व है। इसकी शैली सरल एवं मीठी है। इसमें पुराणों एवं स्मृतिकारों के अतिरिक्त निम्नलिखित लेखकों एवं कृतियों के नाम आये हैं-अपरार्क, देवस्वामी, पुराणसार, प्रपंचसार, मेधातिथि, विवरणकार (वेदान्तसूत्र पर), विश्वरूपाचार्य, शम्भु, शिवस्वामी, स्मृतिचन्द्रिका। पराशरमाधवीय के उपरान्त माधवाचार्य ने कालनिर्णय लिखा। इसमें पाँच प्रकरण हैं-(१) उपोद्घात, (२) वत्सर, (३) प्रतिपत्प्रकरण, (४) द्वितीयादि-तिथि-प्रकरण एवं (५) प्रकीर्णक। प्रथमन प्रकरण में काल और उसके स्वरूप के विषय में विवेचन है। दूसरे प्रकरण में वर्ष एवं इसके चान्द्र, सावन या सौर, दो अयनों, ऋतुओं एवं उनकी संख्या, चान्द्र एवं सौर मासों, मलमासों (अधिक मासों), दोनों पक्षों आदि भागों का विवेचन है। तीसरे प्रकरण में तिथि-शब्द के अर्थ, तिथि-अवधि, एक पक्ष की १५ तिथियां, शुद्ध एवं विद्धा नामक तिथियों के दो प्रकार, तिथियों पर क्रिया करने के नियमादि, रात और दिन के १५ मुहूतों आदि की चर्चा है। चौथे प्रकरण में प्रतिपदा से अन्य तिथियों (दूसरी से १५वीं) तक के नियम-प्रयोग हैं (अर्थात् कौन-सा व्रत कब किया जाय, यथा गौरीव्रत तीसरी तिथि, जन्माष्टमी आठवीं तिथि पर)। पांचवें प्रकरण में विभिन्न प्रकार के कार्यों के नक्षत्र-निर्णय के विषय में नियमों का प्रतिपादन, यथा-योगों, करणों तथा संक्रान्ति, ग्रहणों आदि के विषय में नियमादि बताये गये हैं। कालनिर्णय ने बहुत-से ऋषियों, पुराणों एवं ज्योतिष शास्त्रज्ञों के नामों के अतिरिक्त कालादर्श, भोज, मुहूर्तविधानसार, वटेश्वरसिद्धान्त, वासिष्ठ रामायण, सिद्धान्तशिरोमणि एवं हेमाद्रि नामक ग्रन्थों एवं ग्रन्थकारों के नाम लिये हैं। __ माधवाचार्य के जीवन-वृत्त के विषय में हमें उनकी कृतियों से बहुत कुछ सामग्री प्राप्त होती है। वे यजुर्वेद के बौधायन-चरण वाले भारद्वाज गोत्र के ब्राह्मण थे। उनके माता एवं पिता क्रम से श्रीमती एवं मायण थे। उनके दो प्रतिभाशाली भाई भी थे, जिनमें सायण तो अपने वेद-माष्य के लिए अमर हो गये हैं। माधवाचार्य राजा बुक्क (बुक्कण) के कुलगुरु एवं मन्त्री थे। ये वृद्धावस्था में विद्यारण्य नाम से संन्यासी हो गये थे। अभिलेखों से पता चला है कि ये १३७७ ई० में संन्यासी हुए थे। किंवदन्तियों से पता चलता है कि इनकी मृत्यु ९० वर्ष की अवस्था में १३८६ ई० में हुई। अतः माधवाचार्य के साहित्यिक कर्मों को १३३०१३८५ ई. के मध्य में रख सकते हैं। ९३. मदनपाल एवं विश्वेश्वर भट्ट मदनपाल के आश्रय में विश्वेश्वर भट्ट ने मदनपारिजात नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ लिखा। मदनपाल राजा भोज की मांति एक विद्याव्यसनी राजा थे। उनके राजत्वकाल में मदनपारिजात, स्मृतिमहार्णव (मदनमहार्णव), तिथिनिर्णयसार एवं स्मृतिकौमुदी नामक चार ग्रन्थ लिखे गये। मदनपारिजात के लेखक मदनपाल नहीं थे, यह इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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