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________________ हरदत्त, हेमाद्रि, कुल्लूक भट्ट हरदत्त का काल-निर्णय कठिन है। वीरमित्रोदय ने हरदत्त की गौतम वाली टीका मिताक्षरा से बहुधा उद्धरण लिये हैं। नारायण भट्ट (जन्म, १५१३ ई०) ने अपनी प्रयोगरत्न नामक पुस्तक में हरदत्त.की मिताक्षरा एवं उज्ज्वला के नाम लिये हैं। हरदत्त १३०० ई. के बाद नहीं माने जा सकते। विज्ञानेश्वर के उपरान्त हरदत्त को छोड़कर किसी भी लेखक ने विधवा को इनके जैसा स्थान नहीं दिया, अतः हरदत्त ११०० ई० के बहुत बाद नहीं जा सकते। उन्हें हम ११००-१३०० ई. के बीच में कहीं रख सकते हैं। बहुत-से अन्य ग्रन्थ हरदत्त द्वारा लिखे हुए कहे जाते हैं, किन्तु अभी इस विषय में कोई निर्णय नहीं किया जा सका है। ८७. हेमाद्रि दक्षिणी धर्मशास्त्रकारों में हेमाद्रि एवं माधव के नाम अति प्रसिद्ध हैं। हेमाद्रि ने विशाल ग्रन्थ का प्रणयन किया है। उनकी चतुर्वर्गचिन्तामणि प्राचीन धार्मिक कृत्यों का विश्वकोश ही है। व्रत, दान, श्राद्ध, काल आदि हेमाद्रि के महामन्य के प्रकरण हैं। हेमाद्रि ने जिस विषय को उठाया है, उसे पूर्ण करने एवं अत्युत्तम बनाने का भरसक प्रयत्न किया हैं। उन्होंने स्मृतियों, पुराणों एवं अन्य ग्रन्थों से पर्याप्त उद्धरण लिये हैं। वे पूर्वमीमांसा के गम्भीर ज्ञाता थे, और इसी से बिना पूर्वमीमांसा के कतिपय न्यायीं को जाने, उनके श्राद्ध-कालविषयक विवेचनों को समझना. कठिन है। हेमाद्रि ने अपरार्क (बहुत अधिक), आपस्तम्बधर्मसूत्र, कर्कोपाध्याय (अधिकतर), गोविन्दराज, गोविन्दोपाध्याय, त्रिकाण्डमण्डन, देवस्वामी (अधिकतर), निर्णयामृत, न्यायमञ्जरी, पण्डितपरितोष, पृथ्वीचन्द्रोदय, बृहत्कथा, बृहद्वार्तिक, मवदेव, मदननिघण्टु, मधुशर्मा, मेधातिथि, वामदेव, विधिरत्न, विश्वप्रकाश, विश्वरूप, विश्वादर्श, शंखधर (बहुत अधिक), शम्भु, वृद्धशातातपमाष्यकार, शिवदत्त, श्रीधर, सोमदत्त, स्मृतिचन्द्रिका (बहुत अधिक), स्मृतिप्रदीप, स्मृतिमहार्णवप्रकाश (बहुत अधिक), स्मृत्यर्थसार, हरिहर (बहुत अधिक) को उद्धृत किया है। किन्तु आश्चर्य है कि इन्होंने विज्ञानेश्वर की मिताक्षरा का नाम ही कहीं नहीं लिया। हेमाद्रि ने अपना परिचय दिया है। वे वत्सगोत्र के वासुदेव के पुत्र कामदेव के पुत्र थे। उन्होंने अपना गुणगान किया है और अपने को देवगिरि के यादवराज महादेव का मंत्री एवं राजकीय लेखप्रमाणों का अधिकारी लिखा है। इससे सिद्ध होता है कि वे सम्भवतः १२६०-१२७० ई० के लगभग हुए थे। हेमाद्रि महादेव के उत्तराधिकारी रामचन्द्र के भी मन्त्री थे, ऐसा एक अभिलेख से पता चलता है। हेमाद्रि ने कई एक ग्रन्थ लिखे हैं, यथा-शौनकप्रणवकल्प का भाष्य, कात्यायन के नियमानुकूल श्राद्धकल्प, मुग्धबोध व्याकरण के प्रणेता वोपदेव के मुक्ताफल नामक ग्रन्थ पर कैवल्यदीपक नामक भाष्य। वोपदेव हेमाद्रि की छत्रच्छाया में ही प्रतिफलित हुए थे। वाग्भट के अष्टांगहृदय पर भी हेमाद्रि ने आयुर्वेदरसायन नामक टीका लिखी। निस्सन्देह हेमाद्रि एक विलक्षण प्रतिमा वाले व्यक्ति थे। हेमाद्रि एक विचित्र शैली वाले मन्दिरों के निर्माता के रूप में सारे महाराष्ट्र देश में प्रसिद्ध हैं। उन्होंने मोड़ि लिपि का भी आविष्कार किया था। सम्पूर्ण दक्षिण में उनकी कृतियाँ सम्मानित थीं, विशेषतः उनकी चतुर्वर्गचिन्तामणि के दान एवं व्रत नामक प्रकरण। माधव ने अपने कालनिर्णय में हेमाद्रि के व्रतखण्ड की चर्चा की है। इसी प्रकार बहुत-से लेखकों एवं राजाओं ने उनके व्रत, दान, श्राद्ध एवं काल के खण्डों का उल्लेख किया है। ८८. कुल्लूक भट्ट मनु पर जितने भाष्य हुए हैं, उनमें कुल्लूक की मन्वर्थमुक्तावली नामक टीका सर्वश्रेष्ठ है। इसके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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