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________________ धर्मशास्त्र का इतिहास कई प्रकाशन भी हो चुके हैं। कुल्लूक का भाष्य संक्षिप्त, स्पष्ट एवं उद्देश्यपूर्ण है। इन्होंने सदैव विस्तार से बचने का उपक्रम किया है, किन्तु इनमें मौलिकता की कमी पायी जाती है। इन्होंने मेधातिथि, गोविन्दराज के भाष्यों से बिना कृतज्ञता-प्रकाशन के उद्धरण ले लिये हैं। कहीं-कहीं इन भाष्यकारों की इन्होंने कटु आलोचनाएँ भी की हैं। इन्होंने अपने भाष्य की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। कुल्लूक ने निम्नलिखित लेखकों के नाम लिये हैं--गोविन्दराज, धरणीधर, भास्कर (वेदान्तसूत्र के भाष्यकार), भोजदेव, मेधातिथि, वामन (काशिका के लेखक), भट्टवार्तिक-कृत्, विश्वरूप। इन्होंने अपने बारे में भी तनिक लिख दिया है। ये बंगाल के बारेन्द्र कुल के नन्दननिवासी मट्टदिवाकर के पुत्र थे। इन्होंने पण्डितों की संगति में काशी में अपना भाष्य लिखा। कुल्लक ने स्मृतिसागर नामक एक निबन्ध लिखा, जिसके केवल अशौचसागर एवं विवादसागर नामक प्रकरणों के अंश अभी तक प्राप्त हो सके हैं। श्राद्धसागर में पूर्वमीमांसा-सम्बन्धी विवेचन भी है। कुल्लक ने लिखा है कि उन्होंने अपने पिता के आदेश से विवादसागर, अशौचसागर एवं श्राद्धसागर लिखे। इनमें महाभारत के प्रमुख उद्धरण हैं। महापुराणों, उपपुराणों, धर्मसूत्रों एवं अन्य स्मृतियों की चर्चा यथास्थान होती चली गयी है। भोजदेव, हलायुध, जिकन, कामधेनु, मेधातिथि, शंखधर आदि के नाम भी आये हैं। कुल्लूक की तिथि का प्रश्न कठिन है। बुहलर एवं चक्रवर्ती ने उन्हें १५वीं शताब्दी में रखा है। कुल्लूक ने भोजदेव, गोविन्दराज, कल्पतरु एवं हलायुध की चर्चा की है, अतः वे ११५० ई० के बाद ही हुए होंगे। रघुनन्दन. ने अपने दायतत्त्व एवं व्यवहारतत्त्व में तथा वर्धमान ने अपने दण्डविवेक में उनके मतों की चर्चा की है। अतः कुल्लूक १३०० ई० के पूर्व हुए होंगे। वे सम्भवतः ११५०-१३०० ई० के बीच कभी हुए होंगे। ८९. श्रीदत्त उपाध्याय धर्मशास्त्र-साहित्य में मिथिला ने बड़े-बड़े मूल्यवान् एवं सारयुक्त ग्रन्थ जोड़े हैं। याज्ञवल्क्य से लेकर आधुनिक काल तक मिथिला ने महत्त्वपूर्ण लेखक दिये हैं। मध्ययुगीन मैथिल निवन्धकारों में श्रीदत्त उपाध्याय अति प्राचीन हैं। इन्होंने कई एक ग्रन्थ लिखे हैं। श्रीदत्त के आचारादर्श में आह्निक धार्मिक कृत्यों का वर्णन है। यह ग्रन्थ यजुर्वेद की वाजसनेयी शाखा वालों के लिए है। इसमें आचमन, दन्तधावन, प्रातःस्नान, सन्ध्या, जप, ब्रह्मयज्ञ, तर्पण, नित्य देव-पूजा, वैश्वदेव, अतिथि-भोजन आदि पर विवेचन हुआ है। बहुत-से ग्रन्थों एवं लेखकों की चर्चा हुई है। इस ग्रन्थ पर दामोदर मैथिल द्वारा लिखित आचारादर्शबोधिनी नामक टीका भी है। सामवेदियों के लिए उन्होंने छन्दोगाह्निक नामक आचार-पुस्तक लिखी है। इस पुस्तक का उल्लेख उनकी समयप्रदीप एवं पितृभक्ति नामक पुस्तकों में हुआ है। यजुर्वेद के अनुयायियों के लिए पितृभक्ति नामक श्राद्ध-सम्बन्धी पुस्तक है। पितृभक्ति कर्क की टीका सहित कातीयकल्प, गोपाल एवं भूपाल (भोजदेव) के ग्रन्थों पर आधारित है। रुद्रधर के श्राद्धविवेक में इस ग्रन्थ की चर्चा हुई है। सामवेदी विद्यार्थियों के लिए उन्होंने श्राद्धकल्प नामक ग्रन्थ लिखा। उनके समयप्रदीप नामक ग्रन्थ में व्रतों के समय का विवेचन है। श्रीदत्त ने कल्पतरु, हरिहर एवं हलायुध की कृतियों के नाम लिये हैं, अत: वे १२०० ई. के बाद ही हुए होंगे। चण्डेश्वर ने उनका उल्लेख किया है। अत: वे १४वीं शताब्दी के प्रथम चरण के पूर्व ही हुए होंगे। ९०. चण्डेश्वर मिथिला के धर्मशास्त्रीय निबन्धकारों में चण्डेश्वर सर्वश्रेष्ट हैं। उनका स्मृतिरत्नाकर या केवल रत्नाकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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