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धर्मशास्त्र का इतिहास
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अतः इनकी तिथि ११५० ई० के बाद ही आती है। हेमाद्रि, समयप्रदीप, श्रीदत्त के आचारादर्श एवं हरिनाथ
स्मृतिसार में इनके मत उद्धृत हैं, अतः ये १२५० ई० के पूर्व आते हैं। लगता है कि प्राड्विवाक हरिहर एवं भाष्यकार हरिहर दोनों एक ही थे, ऐसा कहा जा सकता है। बहुत से हरिहर हो गये हैं, यथा बंगाल के निबन्धलेखक रघुनन्दन के पिता हरिहर मट्टाचार्य, ज्योतिष ग्रन्थ 'समयप्रदीप' के लेखक हरिहराचार्य आदि ।
८५. देवण भट्ट की स्मृतिचन्द्रिका
यह धर्मशास्त्र पर अति प्रसिद्ध निबन्ध है। यह आकार में बहुत बड़ा ग्रन्थ है । निबन्धों में कल्पतरु को छोड़कर इसकी हस्तलिखित प्रति सर्वप्रथम प्राप्त हुई थी। इसमें संस्कार, आह्निक, व्यवहार, श्राद्ध एवं अशौच पर काण्ड हैं। हो सकता है कि देवण्ण भट्ट ने प्रायश्चित्त पर भी लिखा हो। इनका नाम कई प्रकार से लिखा पाया जाता है, यथा----देवण्ण, देवण, देवनन्द या देवगण । ये केशवादित्य भट्ट के पुत्र एवं सोमयाजी भी कहे गये हैं।
स्मृतिचन्द्रिका ने बहुत-से स्मृतिकारों का उल्लेख किया है और हमें लुप्तप्राय स्मृतियों के पुनर्गठन एवं उद्धार में इससे बहुत मूल्यवान् सहायता मिली है। इसने कात्यायनं एवं बृहस्पति से व्यवहार सम्बन्धी लगभग ६०० श्लोक उद्धृत किये हैं। इसने निम्नलिखित ग्रन्थों, माष्यकारों एवं निबन्धकारों के नाम गिनायें हैं—अपरार्क, त्रिकाण्डी, देवराट, देवस्वामी, आपस्तम्बकल्पभाष्यार्थकार, धारेश्वर, धर्मभाष्य, धूर्तस्वामी, प्रदीप, भवनाथ, आप ' स्तम्बधर्मसूत्रभाष्य, धर्मदीप या प्रदीप, भाष्यार्थसंग्रहकार, मनुवृत्ति, मेधातिथि, मिताक्षरा, वैजयन्ती (शब्दकोश), विश्वरूप, विश्वादर्श, शम्भु, श्रीकर, शिवस्वामी, स्मृतिभास्कर, स्मृत्यर्थसार । स्मृतिचन्द्रिका में उपर्युक्त ग्रन्थों तथा लेखकों का खण्डन, समर्थन या आलोचना हुई है। देवण्ण भट्ट दक्षिणी लेखक थे और दक्षिण में उनकी स्मृतिचन्द्रिका व्यवहार-सम्बन्धी एवं न्याय सम्बन्धी बातों में प्रामाणिक मानी जाती रही है। स्मृतिचन्द्रिका में जो विषय आये हैं, वे पुरातन काल से चले आये धर्मशास्त्र सम्बन्धी विषय हैं।
स्मृतिचन्द्रिका ने विज्ञानेश्वर का नाम बड़े आदर से लिया है किन्तु कई स्थलों पर इसने मिताक्षरा से विरोघ प्रकट किया है। स्मृतिचन्द्रिका में मिताक्षरा, अपरार्क एवं स्मृत्यर्थसार का उल्लेख हुआ है, अतः यह ११५० ई० के ऊपर नहीं जा सकती । हेमाद्रि ने स्मृतिचन्द्रिका के मतों का उल्लेख किया है, अतः यह १२२५ ई० के कम-से-कम एक शताब्दी पूर्व रची गयी होगी। सरस्वतीविलास, वीरमित्रोदय तथा अन्य निबन्धों ने इसका उल्लेख किया है। कुछ अन्य लोगों ने भी 'स्मृतिचन्द्रिकाएँ' लिखी हैं, यथा— शुकदेव मिश्र की स्मृति - चन्द्रिका, आपदेव एवं वामदेव भट्टाचार्य की स्मृतिचन्द्रिकाएँ ।
८६. हरदत्त
टीकाकार के रूप में हरदत्त की बड़ी ख्याति रही है । इन्होंने कई व्याख्याएँ लिखी हैं, यथा - आपस्तम्बगृह्यसूत्र पर अनाकुला नामक आपस्तम्बीय मन्त्रपाठ पर भाष्य, आश्वलायनगृह्यसूत्र पर अनाविला नामक, गौतमधर्मसूत्र परमिताक्षरा नामक, आपस्तम्बधर्मसूत्र पर उज्ज्वला नामक । इनकी ये व्याख्याएँ आदर्श भाष्य मानी जाती हैं। हरदत्त ने धर्मसूत्रों के भाष्य में कतिपय स्मृतियों से उद्धरण लिये हैं, किन्तु निबन्धकारों की चर्चा नहीं की है।
कई प्रमाणों से सिद्ध किया जा सकता है कि हरदत्त दक्षिण भारत के निवासी थे। उन्होंने दक्षिणी प्रयोगों, नदियों, स्थानों आदि के नाम दिये हैं। वीरमित्रोदय ने हरदत्त एवं स्मृतिचन्द्रिकाकार ( दवण्ण भट्ट) को दक्षिणी निबन्धकार माना है। हरदत्त शिव के उपासक थे ।
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