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________________ श्रीधर, अनिरुद्ध, बल्लालसेन, हरिहर की है। बौधायन एवं गोविन्दराज के भी यथास्थान उल्लेख हुए हैं। अब्धि, सम्भवतः, हेमाद्रि, विवादरत्नाकर तथा अन्य ग्रन्थों में वर्णित स्मृतिमहार्णव ही है। श्रीधर दक्षिणी ब्राह्मण-से लगते हैं। श्रीधर ने मिताक्षरा, कामधेनु, कल्पतरु एवं गोविन्दराज के नाम लिये हैं, अतः इनकी तिथि ११५० ई० के बाद ही होगी। स्मृतिचन्द्रिका एवं हेमाद्रि में उद्धरण आने के कारण ऐसा लगता है कि श्रीधर की कृति ११५०-१२०० ई० , के मध्य में कमी रची गयी होगी। ८२. अनिरुद्ध अनिरुद्ध बंगाल के एक प्राचीन एवं प्रसिद्ध धर्मशास्त्रकार हैं। उनके दो ग्रन्थ हारलता एवं पितृदयिता अथवा कर्मोपदेशिनी पद्धति अति प्रसिद्ध हैं। हारलता में श्राद्ध-सम्बन्धी तथा अन्य बातों की भरपूर चर्चा है। पितृदयिता सामवेद के अनुयायियों के लिए लिखी गयी है। ये दोनों ग्रन्थ आचार-सम्बन्धी बातों पर ही प्रकाश डालते हैं। ___ अनिरुद्ध गंगा के तट पर विहारपाटक नामक स्थान के निवासी थे। वे कुमारिल भट्ट के सिद्धान्तों के समर्थक थे। हारलता एवं पितृदयिता के अन्तिम पद्यों से पता चलता है कि वे बगाल के एक चाम्पाहट्टीय ब्राह्मण एवं धर्माध्यक्ष थे। बल्लालसेन के दानसागर से पता चलता है कि अनिरुद्ध बंगाल के राजा के गुरु थे और उन्होंने उनकी कृति की रचना दानसागर में उन्हें सहायता भी दी। यह रचना ११६९ ई० में हुई। इससे स्पष्ट है कि अनिरुद्ध सन् ११६८ ई० के आसपास अपनी प्रसिद्धि के उच्च शिखर पर थे। ८३. वल्लालसन बंगाल के इस राजा ने चार ग्रन्थों का सम्पादन किया है। वेदाचार्य के स्मृतिरत्नाकर में एवं मदनपारिजात में बल्लालसेन के आचारमागर का वर्णन है। प्रतिष्ठासागर उनकी दूसरी कृति है। तीसरी कृति दानसागर है, जिसमें १६ बड़े-बड़े दानों एवं छोटे-छोटे दानों का वर्णन है। दानसागर में महाभारत एवं पुराणों के विषय में प्रभूत चर्चा की गयी है। दानसागर पूर्व दोनों कृतियों के बाद की रचना है। चण्डेश्वर के दानरत्नाकर में एवं निर्णयसिन्धु में दानसागर का उल्लेख अस्या है। बल्लालसेन की चौथी कृति है अद्भुतसागर, जिमका उल्लेख टोडरानन्दसंहिता-सौख्य एवं निर्णयसिन्धु में हुआ है। यह कृति अधूरी रह गयी थी और उनके पुत्र लक्ष्मणमेन ने उसे पूरा किया। बल्लालसेन ने अपना दानसागर शकाब्द १०९० में आरम्भ कर शकाब्द १०९१ में पूरा किया, अतः स्पष्ट है, उनका साहित्यिक काल १२वीं शताब्दी ई० के तीसरे चरण में रखा जा सकता है। रघुनन्दन के कथनानुसार दानसागर अनिरुद्ध भट्ट द्वारा लिखा गया है। किन्तु ऐसी बात नहीं है, क्योंकि दानसागर में स्वयं बल्लालसेन ने ऐसा लिखा है कि यह ग्रन्थ इन्होंने अपने गुरु (अनिरुद्ध) की देखरेख में लिखा है। बल्लालसेन की उपाधियाँ हैं महाराजाधिराज एवं निःगंकशंकर । ८४. हरिहर विवादरत्नाकर के उद्धरण से पता चलता है कि हरिहर ने व्यवहार पर लिखा है। हरिहर ने पारकरगृह्यसूत्र पर एक भाष्य लिखा है और अपने को अग्निहोत्री कहा है। इस भाष्य की एक प्रति में ये विज्ञानेश्वर के शिष्य कहे गये हैं। इन्होंने कर्कोपाध्याय, कल्पतरुकार, रेणुदीक्षित एवं विज्ञानेश्वराचार्य के नाम लिये हैं धर्म--१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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