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धर्मशास्त्र का इतिहास स्तरों, पूर्वपक्ष, प्रतिमू, पूर्वपक्ष-दोष, उत्तर (प्रतिवादी का उत्तर), चार प्रकार के उत्तर, उत्तर-दोष, क्रिया (सिद्ध करने का प्रमाण), देवी एवं मानवी (मानुषी) प्रमाण (यथा-दिव्य, अनुमान, साक्षियाँ, लेखप्रमाण, स्वत्व) एवं साक्षियों के योग्य व्यक्तियों की चर्चा है। व्यवहारमातृका (न्यायमातृका या न्यायरत्नमालिका) में लगभग २० स्मृतिकारों के नाम आये हैं, यथा उशना, कात्यायन, बृहत्कात्यायन, कौण्डिन्य, गौतम, नारद, पितामह, प्रजापति, बृहस्पति, मनु, यम, याज्ञवल्क्य, लिखित, बृहद्वसिष्ठ, विष्णु, व्यास, शंख, वृद्धशातातप, संवर्त एवं हारीत, जिनमें कात्यायन, बृहस्पति एवं नारद के नाम बहुत बार आये हैं। इसमें निम्नलिखित निबन्धकारों के नाम आये हैं-जितेन्द्रिय, दीक्षित, बाल (बालक), भोजदेव, मञ्जरीकार (गोविन्दराज), योग्लोक, विश्वरूप, श्रीकर (श्रीकर मिश्र)। जीमूतवाहन ने योग्लोक एवं श्रीकर की आलोचना की है और योग्लोक की स्थान स्थान पर भर्त्सना भी की है। इन्होंने विश्वरूप तथा अन्य प्राचीन निबन्धकारों की प्रशंसा भी की है। रघुनन्दन ने अपने व्यवहारतत्त्व एवं दायतत्त्व में व्यवहारमातृका की चर्चा की है।
जीमूतवाहन का तीसरा ग्रन्थ दायभाग सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वप्रसिद्ध है। हिन्दू कानूनों में, विशेषतः रिक्थ, विभाजन, स्त्रीधन, पुनर्मिलन आदि में दायभाग ने बहुत योग दिया है। बंगाल तथा वहाँ, जहाँ मिताक्षरा का प्रभाव नहीं है, इन विषयों में दायभाग ही एक मात्र प्रमाण माना जाता रहा है। दायभाग के कई भाप्यकार हो गये हैं। दायमाग की विषय-वस्तु यों है-दाय की परिभाषा, पूर्वजों की सम्पत्ति पर पिता का प्रभाव या स्वत्व, पिता एवं पितामह की सम्पत्ति का विभाजन, पिता की मृत्यु के उपरान्त भाइयों में बँटवारा, स्त्रीधन की परिभाषा, श्रेणीकरण एवं निक्षेपण, असमर्थता के कारण बसीयत (दाय) एवं बँटवारे से कौन लोग पृथक किये जा सकते हैं, निक्षेपण योग्य सम्पत्ति, पुत्रहीन के उत्तराधिकार की विधि, पुनर्मिलन, गुप्त धन प्राप्त होने पर रिक्चाधिकारियों में बँटवारा, विभाजन-प्रकाशन ।
बाग और मिताक्षराके मख्य विमेद निम्न हैं। दायभाग में पत्रों का जन्म से पैतक सम्पत्ति में अधिकार नहीं है, पिता के स्वत्व के बिनाश पर ही (अर्थात् पिता की मृत्यु पर, पतित हो जाने पर या संन्य पर ही) पुत्र दाय पर अधिकार पा सकते हैं, या पिता की इच्छा पर उसमें और पुत्रों में विभाजन हो सकता है। पति के अधिकार पर विधवा का अधिकार हो जाता है, भले ही पति एवं उसके भाई का संयुक्त धन हो। रिक्षाधिकार मृत व्यक्ति को पिण्डदान करने पर निर्भर रहता है, यह सगोत्रता पर, मिताक्षरा के मतानुसार नहीं निर्भर रहता।
दायमाग में स्मृतिकारों, महाभारत एवं मार्कण्डेय पुराण के अतिरिक्त निम्न लेखकों के नाम आये हैं; उद्ग्राहमल्ल, गोविन्दराज (मनुटीका के लेखक), जितेन्द्रिय, दीक्षित, बालक, भोजदेव या धारेश्वर, विश्वरूप एवं श्रीकर। ___ जीमूतवाहन ने अपने बारे में न-कुछ-सा कहा है। उन्होंने अपने को पारिभद्र कुल में उत्पन्न माना है। उनका जन्म-स्थान सम्भवतः राढा था। जीमूतवाहन की तिथि के विषय में भी निश्चित रूप से कुछ कहना कठिन ही है। ११वीं शताब्दी से १६वीं शताब्दी तक खींचातानी होती रही है। जीमूतवाहन ने धारेश्वर भोजदेव एवं गोविन्दराज का उल्लेख किया है, अतः वे ११वीं शताब्दी के पूर्व नहीं रखे जा सकते। इसी प्रकार उनके उद्धरण शूलपाणि, वाचस्पति मिश्र एवं रघुनन्दन की कृतियों में पाये जाते हैं, अतः वे १५वी शती के मध्य भाग के बाद नहीं जा सकते। कालविवेक की एक हस्तलिखित प्रति में पटकसिंह नामक व्यक्ति के पुत्र की कुण्डली है, जिस पर शक संवत् १४१७ (अर्थात् १४९५ ई०) अंकित है। अत: जीमूतवाहन १४०० ई० के बाद नहीं जा सकते, क्योंकि उपर्युक्त हस्तलिखित प्रति के बहुत पहले ही तो जीमृतवाहन प्रसिद्ध हो सके होंगे।
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