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नाणपंचमीकहाओ भोगवांच्छु जीवे द्रव्यार्जन करवू ज रहूं. "Money makes the mare go" ए सत्य सनातन छे. "सर्वेः गुणाः कांचनमाश्रयन्ते” ए साध साचुं छे. बळी बेठा बेटा तो राजाना भंडार पण खूटी जाय एटले वडीलोपार्जित द्रव्य मळ्युं होय तो पण नवं धन कमावानो माणसे प्रामाणिक प्रयत्न करवो ज जोईए. "आसीनः भग आस्ते अने "चरन्वै मधु विंदति' ए सौ कोई जाणे छे. लेखक कहे छे:
___ "केण उवाएण पुणो दन्वं अजेमि भोयकारणयं ।
दव्याभावेण जओ भोयाण साहणं नस्थि" ॥ ४२१ ।। जैनधर्म कायरोने छे, संसारभीरुओनो छे, एवो आक्षेप वर्तमानकाळे जैन धर्म उपर छे. ए ज जैनधर्मनो अगीआरमी सदीनो एक विरक्त सूरि, गृहस्थाश्चम दीपाववो होय तो भोगकारण अने भोगसाधक पैसो अलबत्त कमायो जोईए, एवं पडकारीने कहे त्यारे इतिहास प्रसिद्ध साहसिक अने पोताना अभिप्रायने गमे ते भोगे वळगी रहेनार निडर अने रूढिच्छेदक सिद्धसेन सरि जेवा ज प्रतिभाशाली महेश्वर सूरि हशे एम आपणने जरूर लागवू जोईए.
भरत एक मुनि हता छतां 'नाट्यशास्त्र' लख्यु; वात्स्यायन अपि हता तो पण 'कामसूत्र ( कामशास्त्र)' लख्यु. धर्म - अर्थ-काम अने परंपराए मोक्ष ए हेतु शास्त्र प्रयोजनमां लीधो. तेवी ज रीते श्री महेश्वर सूरि, एक विरक्त जैन साधु होई, जैनोना ब्रह्मचर्य नामना प्रख्यात चोथा व्रतना सर्वथा संरक्षक होय ए खतः सिद्ध छे. छतां पण गृहस्थीओने अनुलक्षी तेओश्री, उपर्युक्त निडरताथी, रतिक्रीडा संबंधे कहे छे के रतिक्रीडा करनार माणसे रतिक्रीडा करवी ज होय तो केली, हास्यादि पांच प्रकारे ए सुरतोत्सव पूर भपकाथी उजववो जोईए. ए क्रियाने गधेडानी माफक जेम तेम आटोपी लेनाथी शुं फायदो ? ढूंकामां, ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, संन्यास अने वानप्रस्थ ए चार आश्रमो पैकी कोई पण आश्रममा माणस होय तेने तो ते आश्रमने सोए सो टका दीपाववानो ज छे. पोतपोताना वर्तुलमा रही पोते स्वीकारेल तत्कालिन धर्मने पूरेपूरो न्याय आपी उत्तरोत्तर प्रगति करी छेवटे सौए मोक्ष साधवानो छे. ए तद्दन साचुं छे के "स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः" आ हेतुथी ज लेखक कहे छः --
केली हासुम्मीसो पंचपयारेहिं संजुओ रम्मो ।
सो खलु कामो भणिओ अन्नो पुण रासहो कम्मो" ॥ ५/६६ ॥ वीरचंद्र जेवो दरिद्रनारायण दुनियान शुं दाळदर टाळशे, ए संबंधमा लेखक श्री महेश्वर सूरि छट्ठा आख्यानमां दरिद्रता उपर एक वास्तवदर्शी कटाक्ष फेंके छे. माता-पिता, भाई - भगिनी, बेटो-बेटी अने स्त्री पण – सारो लोक दरिद्रीथी विमुख थई जाय छे. दरिद्रीन मोढुं पण सवारमा जोवानुं कोई पसंद करतुं नथी. दरिद्रीनी वाणी धणी मीठी होय अने एणे आपेली सलाह पण घणी किंमती होय तोय भंगीना कुवानी माफक एनी बधी सारी बावतोनो सौ परित्याग करे छे. ज्ञान, कला, विज्ञान, विनय, शौर्य अने धैर्य ए बधा गुणो पुरुषना नकामा-एक जो दारिद्र्य दोष तेनामां होय तो. जुओः
"मित्तो सयणो धूया माया पिया य भाइमाईया। सब्वे वि होति विमुहा दालिद्दकलंकियतणूणं ॥ ६॥१९॥ गोट्ठी वि सुलु मिट्ठा दालिद्दविडंबियाण लोएहिं । वजिजइ दूरेणं सुसलिलचंडालकृवं च ॥ ६॥२३॥ नाणकलाविन्नाणं विणओ सुरत्तणं च धीरत्तं ।
दालि हनिवासाणं सव्वं पि निरत्यय होइ" ॥ ६॥२६ ॥ आ छेल्ला सुभाषितमा "दारिद्यदोषो गुणराशिनाशी" ए सूक्तिनो प्रतिध्वनि संभळाय छे.
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