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________________ प्रस्तावना महेश्वर सूरिनो संसारनो तथा समाजनो अभ्यास केटलो वेधक अने विशाळ हतो ते तेमणे वापरेल सातमा आख्यानना एक व्यावहारिक सुभाषित उपरथी आपणने जाणवा मळे छे. तेओ माने छे के संसार उपर ज वर्ग अने. नरकनो अनुभव थई रहे छे, तो पछी शास्त्रमा वापरेल वर्ग अने नरकना अस्तित्वसूचक परोक्ष कथनो विषे शा माटे अविश्वास धरावत्रो जोईए? Insteal of going to heaven we can bring down heaven on cirth. संसारमा स्वर्गनां सुख अनुभवयां होय, देवलोकना दिव्यानंद अने मजा-मस्ती बँटवा होय तो एक तो खराब स्त्री न होवी जोई ए, बीजु दारिद्य न होवु जोईए, श्रीजुं व्याधिओ न होवा जोईए अने चोधु संतानमां कन्या बाहुल्य न हो, जोईए. आटलां वानां होय तो संसार ए खर्गतुल्य ज छ; अन्यथा ते नरक समान छे. आ चार वस्तु जेनी पासे होय ते जीवननो रसास्वाद माणी शके. सातमा आख्यानमां पद्माभ नामना द्विजने तेनी स्त्री धन्या पासे निमोक्त गाथा तेओ कहेवडावे छेः - "दुकलतं दालिई वाही तह कन्नधाण वाहलं । पञ्चक्खं नरयमिणं सत्थुवाइच विपशेकर"॥७॥६॥ जैन साधु माटे लगभग अस्पृश्य गणाता राजनीति जेबा गहन विषय उपर पण पोतानो द्रढ अने अनुभवसूचक अभिप्राय सूरिचर्ये जणाव्यो छे, तेओ कहे छे के कर्णधार विनाना वहाण जेवी स्थिति अमात्य अने शिष्टजन विनाना राज्यनी छेः-- "कण्णद्धारविहीणं बोहित्थं जह जलंसि डोल्लेइ । सिट्टमहंतयरहियं रज पि हु तारिसं होइ" ॥ ८॥२१॥ शकुन शास्त्र जेवा व्यावहारिक विषयना संबंधमां परापूर्वथी चाली आवेली एक रूढिने सूरिवर्ये सूक्तिमां सुंदर रीते गुंथी काढी छे. आंधळो, कुष्ठना रोगवाळो, लंगडो, होठ कपलो, नाक-कान विनानोआटलाने प्रस्थान करती वखते शुभ फळनी आशा सेवनारे प्रयत्न पूर्वक वर्जवाः "अंधो कुट्टी पंगू छिन्नोट्टो छिन्नकन्ननासो य । पढम चिय चलिएणं बज्जेयव्वा पयलेणं" ॥ १।१०॥ कामदेवना सर्वविजयीपणा विपे अने संगीतशास्त्रनी प्रासादिकता विषे सूरिश्री दसमा आख्यानमा कहे छे के संगेमरमरनी पूतळी सदृश कोई नाजुकनयनीना हावभावथी अने संगीतना मधुर आलापथी जेनुं हृदय मुग्ध थतुं नथी ते कां तो पशु छे अथवा देव छः "वरजुवइविलसिएणं गंधव्वेणं च एत्थ लोयमि । जस्स न हीरइ हिययं सो पसुओ अहव पुण देवो" ॥ १०॥२९४ ॥ आटली चर्चा पछी आपणे एम कहेवानी स्थितिमां जरूर छीए के "नाणपंचमी" एक एनीज जातिनो अलौकिक पर्वकथा ग्रन्थ छे. तेना विद्वान लेखक श्री महेश्वर सूरि एक प्रकांड पंडित, कुशळ कवि, अठंग अभ्यासी अने निपुण निरीक्षक हता. प्राकृत भाषा अने संघ विषेना महेश्वर सूरिनां "नाणपंचमी” कथान्तर्गत मन्तव्यो प्राकृत भाषा "नाणपंचमी"कथाना लेखक श्री महेश्वर सूरिनो प्राकृतभाषा तरफ पक्षपात हतो. "मंदबुद्धिवाळा मनुष्यो संस्कृत काव्यना अर्थने जाणी शकता नथी तेथी सौ कोईथी सुखेथी समजी शकाय तेवं आ प्राकृत रच्यु छे. गूढार्थवाळा देशी- प्राकृत शब्दोथी रहित, अत्यंत सुंदर वर्णोथी रचेलं, आनंददायक प्राकृत काव्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002786
Book TitleGyanpanchami Katha
Original Sutra AuthorMaheshwarsuri
AuthorJinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1949
Total Pages162
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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