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शीले राजीमती-कथा। पणमिऊणं तित्थंकरं पविट्ठा णगरं । ततो पुच्छिऊण जणणि-जणयाइणो, दाऊण महादाणं, काऊण सब-जिणाययणेसु अट्टाहिया-महिमं, अणेग-नरेंद-सेणावइ-मंतिसत्थाह-सेटि-बालिया-सहिया महाविच्छड्डेणं पहाविया राईमई तित्थयरेण । इत्थंतरम्मि य सको संवेग-सारं थुणियं(उ) पयत्तो त्ति । अवि य
जय सुरसेल-विभूसण! जय जय इंदंक-वड्डियाणंद !।। जय णिवत्तिय-मजण! जय जय सुर-सुंदरी-पणय।॥ जय हरिचंदण-चच्चिय! जय जय मणि-मउड-भूसिय-सरीर।। जय सेयंवर-धारय! जय जय सियकुसुम कय-सोह! ॥ जय इंदावलि-संथुय! जय जय जणणीप(ए)वाडियाणंद ! । जय बाल ! अबाल-विसिट्ठ-चेट्ट! जय जोवणं पत्त! ॥ जय रायलच्छि-भूसिय! जयसि दसारोह-णहयल-मियंक ! । जय सिवदेवी गंदण! जय दाविय कण्ह-णिय-वीरिय! ॥ जय अकय-दार-संगह! जय जय उज्जेंत-गहिय-सामन्न!। जय देवदस-धारय! जय जय सुर-मणुय-णय-चलण! ॥ जय चउणाणि-मुणीसर! जय जय उवसग्ग-दलण-मुणिचंद ।। जय केवललच्छी -वरिय-वरय! जय देव-णय-चलण!॥ जय दढ-पाव-णिसूडण! जय जय सुर-सिद्ध-पणय-कम-कमल!। जय गय-गमण ! सुरचिय! जय लोह-समुद्द-गय-पार ॥ जय मयणानल-जलहर! जय जय णेद्दलिय-गरुय दढ-माण! जय सिद्ध ! सिद्ध-सासण! जय जय भुवणम्मि सुपसिद्ध !॥ जय इंदीवर-विम्भम! जय जय गुण-यय-सागर! मुर्णिद।। जय पाउस-जलय-समाण-सह! जय पउम-कय-चलण!॥ जय गोविंद-णमंसिय! जय जय नीसेस-बंधण-विमुक्क!। जय नाह ! णाण-सागर! जय पणयासेस-वर-फलय!॥ जय तव-लच्छि -सुसंगय! ईसाइ व राइलच्छि-परिमुक्क! । जय सिद्धत्थ-नरामर! जय जय कोवाहि-वर-मंत! ॥ जय सिद्ध ! बुद्ध ! गुण-णिहि ! पसत्थ-कल्लाण-मंगलाययण!।
जय सिदयालु-महागुण! पुरिसोत्तम-पुरिस-कय-पूय।। एवं च सह अट्ठारसहि' समण-सहस्सेहिं भगवंतं अरेटणेमि थोऊण राइमई च अणलिय-गुण-संथवेण पविट्ठा सह जायव-चक्क-पुर-लोएणं वारवई बलदेव-वासुदेवाइणो।"
राइमईए वि पवद ()माण-संवेगाइसि(स)याए नाणाविह-तवो-विसेस-ताइय-तणूए रग्ग-मग्गावडियाए जहुत-संजमाणुट्ठाण-पराए कमेण य अहि जियाणि इकारस अंगाणि । कालंतरेण य पुणरवि समोसरिओ भगवं वारवईए । समाढत्ता धम्म-कहा। संबुद्धा पाणिणो । उहिउ(ओ) तित्थ[य]रो णिव(स)नो देवच्छंदए । दुइय-पोरिसीए समादत्ता धम्मकहा गणहरेणं ति ।
म.तिद। २ प. सिद्ध । ३ प. मेहि ।
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