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________________ प्रस्तावना रक सुज्ञोना अन्तःकरणोमांथी शतशः सहज धन्यवादना उद्गारो प्रकट करावशे । वर्तमान धर्माचार्योने निज कर्तव्योनी उच्च प्रकारनी प्रेरणा आपशे । आवी श्रेष्ठ सरस कृति, आपणा प्रमादथी अने बेदरकारीथी अत्यार सुधी अन्धकारमा रही गई, प्रकाशमां न आवी शकी, एथी एना लाभथी आपणे वंचित रह्या-ए माटे आपणे सखेद शरमा जोइए । एक हजार वर्षों उपरान्त लगभग एक सो वर्षों वीती जवा छतां सद्भाग्ये आ रचना सुरक्षित रही प्रजा-स्वातत्र्यना वर्तमान युगमां, अभिनव गूजरात विश्व-विद्यालयना प्रादुर्भाववाळा शुभ वातावरणमा प्रकाशमां आवे छे, एथी आपणे आनन्द मानीए । उत्तम धर्मोपदेशोनी आ माला, विद्वज्जनोना कर-कमलने, तथा कण्ठ-कमलने विभूषित करशे, एटलं ज नहि, सहृदयोनां हृदय-कमलोने उल्लसित करवा पण समर्थ थशे-एवी आशा अस्थाने नथी । विवरणकार जयसिंहसूरि ए ज मूलकार मालामा सामान्य रीते १०८ मणका, रत्नो, किंवा पुष्पो होवानी मान्यता छे, परन्तु आ धर्मोपदेशमाला मूल ग्रन्थमां प्राकृत ९८ गाथा ज मळे छे । आ ग्रन्थनी पाछलथी रचाएली बीजी बे विवरण-वृत्तियोना अन्तमा ४ गाथा अधिक मळे छे, ते प्रक्षिप्त जणाय छ । जयसिंहसूरिना सं. ९१५ मां रचायेला ५७७८ श्लोक-प्रमाण आ विवरणमां, ते गाथाओनो निर्देश के तेनी व्याख्या दर्शावेल नथी। मूल ग्रन्थकार कोण ? एनुं सूचन एमांथी मळतुं नथी । जयसिंह सूरिए मूलनुं कर्तृत्व पोतार्नु होवानुं स्पष्ट सूचव्युं नथी । आ विवरणना प्रारम्भमां- 'मङ्गलं च प्रदर्शयन् गाथाद्वयमाह प्रकरणकारः'-एवी रीते उल्लेख करी मूल प्रकरण, कर्तृत्व अन्य- होय तेवी रीते तटस्थ सूचन कर्यु छे; तेम छतां मूलमां आवता सुयदेवी, विमलगुण वगेरे सूचक शब्दोने विवरणकार जयसिंहसूरिए प्रायः प्रत्येक कथाना अन्तमा, अने गणधरस्तव, जिनेन्द्र-जयशब्द-कुसुममाला आदि प्रसङ्गोना अन्तमां पोताना अभिज्ञान तरीके सूचव्या छे' । मूलनी प्रथम गाथामां 'जय-पडाय व्व' विशेषणमां १ “सिज्झउ मज्झ वि सुयदेवि ! तुज्झ भरणाउ सुंदरा झत्ति । धम्मोवएसमाला विमलगुणा जय-पडाय व्व ।।" (मूलगाथा १) पृ. १ "सुयदेवि-पसाएणं सुयाणुसारेण" - विवरणमा पृ. ५, २१, २३, २६, २९, ३०, ३२, ४१, ४६, ५२, ५३, ५४, ५७, ५८, ६० वगेरे "नमिऊण महावीरं सह सुयदेवीए गणहरे थुणिमो।" पृ. २२६ "चरम-सरीरा मोक्खं विमलगुण-गणहरा दितु।" पृ. २२७ "नमिऊण महावीर सह सुयदेवीए...." पृ. २२७ "विमलगुणं पढमाणो लहइ नरो सासयं ठाणं ॥" पृ. २२८ "तस्स सुर-मणुय-संथुय-चलण-द्विय-पंसुरेण असमेण । सीसावयवेण कयं जयसिंहायरियनामेणं ॥... धम्मोवएसमाला-विवरणमहियागमाणुसारेण । सुयदेविपसाएणं विमलगुणं कुसुमदाम व ॥ सुयदेवी-गुणिणो खमिऊण करितु सुसिलिटुं। जो सुयदेवि-सण्णेज्झ-विरइयं चिंतिऊण वाएइ॥" पृ. २२९ "इय जय-पयड-कण्हमणि-सीस-जयसिंहसरिणा रायं । धम्मोवएसमाला-विवरणमिह विमलगण-कलियं ॥" पृ.२३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002785
Book TitleDharmopadeshmala Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1949
Total Pages296
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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