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________________ धर्मोपदेशमाला केटलीय सरस कथाओने नाटकोमा अने सीनेमानी फिल्मोमां उतारवा ते विषयना निष्णातो ललचाय, तेवी तेनी उत्तम सङ्कलना छ । विवरणकारे प्रारम्भमां श्रुतदेवीनू मंगल स्मरण कर्यु छे, तेम प्रायः प्रत्येक विस्तृत कथाना अन्तमां पण तेनुं स्मरण करता ते ते कथाने श्रुतने अनुसारे रचेली जणावी छे. 'श्रुत' शब्दवडे अहिं जैन आगम-सिद्धान्त प्रकारान्तरे अन्यत्र सूचवेल छे । जैन सिद्धान्तने अनन्य निष्ठ रही, श्रुतदेवीना सान्निध्यथी आ विवरणनी अने तदन्तर्गत कथाओनी पोते रचना करी छे - एवं कविए आमां सूचन कर्यु छे । जैन आगमोमां जाणीती कथाओने कविए पोतानी सरस शैलीथी दर्शावी छ । आगमोमां मुख्यतया आवश्यक-विवरण, उत्तराध्ययन, ज्ञाताध्ययन, सूत्रकृतांग, दशवैकालिक, आचारकल्प, दश-कल्प, व्यवहार आदि सूत्रोनो आधार लीधेलो जणाय छे, केटलेक स्थळे तेनो नाम-निर्देश करेलो छ । गणि-पिटक ( द्वादशांगी ), दृष्टिवाद, आत्मप्रवाद पूर्व, सत्यप्रवाद पूर्व, प्रथमानुयोग आदि प्राचीन श्रुतोर्नु पण प्रासंगिक स्मरण कर्यु छे। ऋषि-चरित, नेमि-चरित,सनत्कुमार-चरित, वसुदेवहिंडी आदिना पण उल्लखो आमां छ । विशेष जाणवा माटे जेनो निर्देश अनेक वार करेलो छे, ते उपदेशमाला-व्याख्यान (विवरण ), तथा द्विमुनि-चरित (प्रा.), आ विवरणकारनी अन्य रचनाओ जणाय छे। उपर्युक्त सर्व साहित्य, प्रायः प्राकृत छे अने श्वेताम्बर जैनागम साथे सम्बन्ध धरावे छे, तथा तेनी अविच्छिन्न परम्पराने, प्राचीनताने अने प्रामाणिकताने प्रकाशित करे छे । ग्रन्थकारे सुप्रसिद्ध श्वेताम्बर जैनाचार्य सिद्धसेन दिवाकरनो, वाचक-मुख्य( उमास्वाति )नो, तथा अप्रसिद्ध वंदिकाचार्यनो निर्देश करी, तेमनी कृतियोमांथी अवतरणो दर्शाव्यां छे। जैनागम उपरान्त वेद, अक्षपाद, सुगत धर्मकीर्ति, कपिल, सांख्य, काणाद, भागवत आदि अन्य दर्शनोना मन्तव्योना अने रामायण, भारत, नीतिशास्त्र आदिना नाम-निर्देश साथे प्रासंगिक प्रकट उल्लेखो पण कर्या छ । आथी ग्रन्थकारनी बहुश्रुतता प्रकाशित थाय छे, जेनो लाभ समाजने आवी रीते आप्यो छे । अहिं दर्शावेल विषयानुक्रम जोवाथी आ ग्रन्थमांना विषयोनो, धर्मोपदेशोनो, तथा तेने अनुसरती कथाओनो सामान्य रीते ख्याल आवशे, अने यथायोग्य पठन-पाठन-परिशीलनथी ग्रन्थनी विशिष्टता सुज्ञोना लक्ष्यमा आवशे । ते साथे, विश्वमा सर्वत्र मैत्री विस्तारनार, अने शान्तिने स्थापनार, विश्वनुं कल्याण करनार, अहिंसा-लक्षण, सत्य-प्रतिष्ठित जैनधर्म तेना तत्त्वज्ञानमय उत्तम सदुपदेशोथी विश्व-धर्मनी वास्तविक प्रतिष्ठाने प्राप्त करे छे, तेवू समजाशे। भारतवर्षना प्रतिभाशाली सजनो अने परोपकार-परायण पवित्र जीवन गाळता धर्माचार्यो विश्वना विविध विषयोनुं केवं विशाल ज्ञान धरावता हता ? ते साथे पोताना विशिष्ट बुद्धि-वैभवनो, प्राप्त थयेली शक्तिनो, अने पोताना अमूल्य समयनो सदुपयोग तेओ केवां प्रशंसनीय कार्योमां करता हता? ते आवा ग्रन्थ जोवा-जाणवाथी समजाशे । आवी ग्रन्थ-रचना जोवा-जाणवाथी भारतीय श्रेष्ठ प्रतिभा प्रकाशमां आवशे, अने विचा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002785
Book TitleDharmopadeshmala Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1949
Total Pages296
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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