SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्मोपदेशमालायाम् पत्तो दसपुर-नयरे राया उवसामिओ तहा सयणो। मोत्तूण नियय-जणयं अन्नो पव्याविओ बहुओ ॥ छत्तय-सहियं जणयं पद्यावेऊण डिंभ-वयणेहिं । परिचत्त छत्तयाइं सुपसत्थो सो मुणी जाओ। दुब्बलिय-पूसमित्तो मेहावी चीवराणि गच्छस्स । उवणेइ वत्थमित्तो घयं तु घय-पूसमित्तो उ ।। गोट्ठा माहिलो सूरिस्स मामगो फग्गुरक्खिओ भाया। विंझो वि य मेहावी एए गच्छंमि जुग-सारा ॥ वक्खाण-मंडलीए विसरमाणस्स सूरिणा दिनो। दुब्बलिय-पुस्समित्तो विंझस्सच्छं(त्थं)तेण सो नवमं ॥ पम्हुढें खलु पुव्वं बंधव-गेहंमि जं च नो मु(गु)णियं । तेसिं विबोहणट्ठा चिंतेइ गुरू इमस्सावि ॥ सुरगुरु-समस्स पम्हुसइ सेस-साहूण पुव्व-नहूँ तु । ताहे 'पुढोऽणुओगे करेइ मइ-दुब्बले नाउं ॥ चरण-करणाणुओगे धम्मे काले तहेव दवंमि । आयाराईए सो चउविहो होइ अणुओगो॥ हरिणा 'निओअ-जीवा कहिया सीमंधरेण जिण-सिटुं। पुच्छइ सूरि पि हरी महुराए विहिय-दिय-वेसो ॥ दिन्नं दा(नाणं सह दसणेण चरणं च पालियं विहिणा । निप्फाइया य सीसा इहि गणहारिणं करिमो॥ परिभाविऊण गुरुणा गणेण पुढेण सूरिणो भाया। मामो य समाइट्ठो गुरुणा रागादि-रहिएण ॥ घय-तिल्ल-वल्ल-कुड-दरिसणेहिं दुब्बलिय-पूसमित्तं तु । ठविऊणं नियय-पए सूरी सग्गंमि संपत्तो ॥ महुराए जिणिऊणं नाहिय-बाई(ई) निसामए गोट्ठो। निप्फावग-दिटुंता दुब्बलियं गणहरं ताहे ॥ अट्ठम-णवमं पुर्व अणुवयमाणस्स सो उ विंझस्स । मिच्छाभिनिवेसेणं सत्तमओ "णिण्हवो जाओ। लेसुद्देसेण इमं सिटुं चरियं सवित्थरं जेण । सिहँ ति दुम्मुणिय-चरिए तत्तो च्चिय मुणह सविसेसं ॥ सुयदेवि-पसाएणं सुयाणुसारेण साहियं चरियं । संखित्तं निसुणंतो पावइ मोक्खं सया-सोक्खं । ॥ अजरक्खिय-क्खाणयं समत्तं ॥ २ क, ज. पुट्ठो। ३ ह. क, ज, नी । ४ क. ज, वियं । ५ क. ज. नि। . १ क. ज. म। ६ह. क. ज. संम। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002785
Book TitleDharmopadeshmala Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1949
Total Pages296
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy