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गुरुपद - कर्तव्ये आर्यरक्षित-कथा ।
रागादिविरहितेन आचार्येण गुणवान् निजपदे कार्य इत्याहरागाइ-विरहिएहिं गुणवंतो गुरु-पयम्मि कायवो । जह अज्जर क्खिएहिं एवं चिय सेस - सूरीहिं ॥ २८ [ रागादि - विरहितैर्गुणवान् गुरु- पदे कर्त्तव्यः । यथाऽऽर्यरक्षितैरेवमेव शेषसूरिभिः ॥ २८]
[ ३४. गुरुपद - कर्तव्ये आर्यरक्षित-कथा ] दसपुर - उपपत्तिं साहिऊण तत्थेव सोमदेवस्स । भट्टस्स रुसोमा जाया जिणसासण - विह (हि) ण्णू ॥ ताणरक्खियओ पाडलिपुत्ताओ' गहिय-बहुविओो । निय - नयरं संपत्ती आनंदिय-राय-नरलोगो ॥ मज्झागमेण तुट्टो सव्वो च्चिय जंपिया य [ जणणी ] । arite सो भणिओ - 'किमधीओ वच्छ ! तए दिट्टिवाओ ?' त्ति ॥ तस्स करण पट्टो उच्छू - सउणेण गहिय- परमत्थो । ढढर-सय-सहिओ 'अल्लीणो गुरु- समीवंमि' ॥ कत्तो पत्तो धम्मो ? गुरुणा पुढेण साहियं सव्वं । पढिहामि दिद्विवायं अह गुरुणा सो इमं भणिओ ॥ दिखाए सो लब्भइ 'एवं चिय होउ' गहिय - सामन्नो । सह (T) इ भएण गओ गुरुणा सह सो उ अन्नत्थ ॥ गुरुणो गहिए नाणे वइर- सभीवंमि वच्चमाणो उ । निज़विय-भद्दगुत्तो संपत्ती वर - पामि ॥ किं चूण-पय-पडिग्गह- सुमिणय-दाणेण सूइओ पत्तो । बाहिर-वसहिं कुच्छो गुरुणो सो पाय- मूलम्मि ॥ अन्न-वसहीए भव (ण) णं सम्मं किह होइ ? जंपिए गुरुणा । ते विसो विभत्तो आणेसा भद्दगुत्ताणं ॥ 'जो मे सर्द्धि निवसर, सो मं अणुमरई' तेण कज्रेण । गुरुणा एस निसिद्धो 'एवं चिय कुणसु को दोसो ?' ॥ दसमंमि समादत्ते पुग्वे जणयाइएहिं से भाया । आगमणत्थं तुरिअं पट्ठविओ सो गुरुं भगइ || कित्तिय मित्तं चि पुव्वस्स इमस्स : सरिसव - गिरीहिं । दिट्ठमि उ ग (क) हिओ (ए) गुरुणा सोगाउरो निचं ॥ गमण-कणं पुच्छर वोच्छिजिस्सर इमं पि य ममाओ । नाऊणं पट्टविओ वाविय - भायरो एसो ॥
१ क. ज. उ ।
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२ ज. अली । ३ क. वं ।
४. ज. 'हो ण ।
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५ क. ज, वच्छो ।
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