________________
प्रास्ताविक
सिंघी जैन ग्रन्थमाळाना १२ मा मणि तरीके आजे महोपाध्याय मेघविजय गणिकृत
आ 'दिगविजय महाकाव्य प्रकाश पामे छे. आ महोपाध्यायनी आवी ज एक महाकाव्य स्वरूपनी प्रौढ ग्रन्थकृति, ग्रन्थमाळाना ७ मा मणि तरीके 'देवानन्दमहाकाव्य' नामे पूर्व प्रकाशित थएली छे. ए पूर्व प्रकाशित काव्यमां ग्रन्थकारे, मुख्य करीने विजयदेव सूरिनुं चरितवर्णन कयु छे त्यारे प्रस्तुत काव्यमां ए सूरिना पट्टधर विजयप्रभ सूरिनु चरित्र वर्णव्युं छे. महोपाध्याय मेघविजय गणि, पोताना गच्छपति आचार्य विजयदेव सूरि तथा तेमना पट्टधर विजयप्रभ सूरिना बहु ज भक्त जणाय छे. कारण के तेमणे ए आचार्योनुं गुणवर्णन करवा माटे नानां मोटां ३-४ काव्योनी रचना करी छे. 'देवानन्द काव्य' तथा प्रस्तुत 'दिग्विजय काव्य' उपरांत तेमनी मेघदूत-काव्यनी समस्यापूर्तिरूपे 'मेघदूतसमस्यालेख' नामनी पण एक काव्यात्मक रचना छे, जेमा विजयप्रभ सूरिनी गुणवर्णना करवामां आवी छे. ए उपरान्त 'विजयदेवमाहात्म्य' नामक चरित्रग्रन्थ के जेनी रचना खरतरगच्छीय श्रीवल्लभपाठके करी छे तेना उपर पण मेघविजयजीए विवरण लखीने ए चरित्रनायक प्रत्येनी पोतानी विशिष्ट भक्ति प्रदर्शित करी छे.
विजयदेव सूरि अने विजयप्रभ सूरिना परिचय माटे में देवानन्दकाव्यनी तेम ज विजयदेवमाहात्म्यनी प्रस्तावनामा संक्षेपमा केटलुक लख्युं छे तेथी फरी अहीं तेनी पुनरावृत्ति करवानी जरूर नथी.
महोपाध्याय मेघविजयजी पोताना समयना एक बहुश्रुत अने विशद प्रतिभावान् विद्वान् हता, ए तेमनी आवी अनेक कृतियोना अवलोकनथी स्पष्ट जणाई आवे छे. व्याकरण, काव्य, ज्योतिष, अध्यात्म विगेरे केटलाक विषयोना तेओ बहु ज समर्थ ज्ञाता अने प्रौढ ग्रन्थकार हता. ग्रन्थ-रचना विषयक तेमनो उद्योग पण अथक हतो एम तेमणे रचेला विविध विषयोना संख्याबन्ध ग्रन्थोनी नामावली उपरथी जोई शकाय छे. विविध विषयोना अनेक ग्रन्थोनी रचना करनारा जैन यतियोमा तेओ सौथी छेल्ला होय एम लागे छे. तेमना पछीना विगत अढीसो वर्षोमां एवो कोई समर्थ जैन ग्रन्थकार थयो नथी.
तेओ व्याकरण, काव्य विगेरे विषयोमां तो पारंगत हता ज परंतु ज्योतिष, निमित्त, रमल अने मंत्र-यंत्र शास्त्रोमां पण बहु निपुण हता अने ए विषयोनो तेमनो खास गंभीर अभ्यास हतो एम तेमना बनावेला वर्षप्रबोध, हस्तसंजीवन, रमलशास्त्र, यंत्रविधि, प्रश्नसुन्दरी विगेरे विगेरे ग्रन्थोना अवलोकनथी जागी शकाय छे. तेमनो रचेलो 'वर्षप्रबोध'-जेनुं बीजुं नाम 'मेघमहोदय' पण छे-ग्रन्थ तो जैनेतर विद्वानोमां पण खूब अभ्यसनीय थएलो छे, अने तेनुं प्रकाशन पण जैनेतर पण्डितोए करेलुं छे. हस्तरेखाविषयक 'हस्तसंजीवन' नामनो तेमनो बनावेलो ग्रन्थ पण एटलो ज उपयोगी अने विद्वत्प्रिय छे. हस्तरेखाने लगती अनेक एवी नवीन बाबतो ए ग्रन्थमा तेमणे आपेली छे जे बीजा ग्रन्थोमां उपलब्ध थती नथी. वर्षप्रबोध अने हस्तसंजीवन ए बन्ने ग्रन्थो, ए विषयना रसिक विद्वानोने खास अध्ययन करवा जेवा छे अने ते उपर तुलनात्मक दृष्टिए आलोचन-प्रत्यालोचन पण करवा जेवू छे. सिंघी जैन ग्रन्थमाळामां आ बन्ने ग्रन्थोनी संशोधित अने सुसंपादित आवृत्तियो प्रकट करवानो मनोरथ छे ज.
न्याय-व्याकरणतीर्थ पंडित श्री अम्बालाल प्रे. शाहाए आ दिग्विजय महाकाव्य, सुन्दर रीते संशोधन-संपादन करी तथा केटलाक विषमार्थ शब्दो उपर टिप्पणी आदि लखीने, ग्रन्थने सुपाठ्य बनाववानो योग्य प्रयास कर्यो छे. आशा छे के एना अभ्यासियोने ए अवश्य उपकारक थशे. श्रावणी पूर्णिमा, सं० २००१ ।
जिन विजय मुनि ता. २४-८-४५, भा. वि. भ. मंबई. ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org